क्या भारत, पाकिस्तान बड़ी ताकतों का छद्म युद्ध लड़ रहे हैं?
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बीच दोनों देशों के हथियारों की खरीद और वैश्विक भू-राजनीति का विश्लेषण हो रहा है। भारत ने पश्चिमी देशों से कई सटीक हथियार खरीदे हैं, जबकि पाकिस्तान चीन पर निर्भरता बढ़ा...

भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े हुए तनाव के बीच दोनों देशों के हथियारों को लेकर चर्चा चल रही है.जानकारों का कहना है कि ये हथियार दोनों देशों ने किन किन देशों से खरीदे हैं, यह देखने से वैश्विक भू-राजनीति की झलक मिलती है.छह और सात मई के बीच की रात पाकिस्तान में भारतीय सेना की कार्रवाई को लेकर अभी तक भारत ने यह जानकारी नहीं दी है कि उसने हमलों में किस तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया था.आधिकारिक बयान में बस इतना बताया गया कि सेना ने "प्रिसिजन स्ट्राइक्स" यानी सटीक हमले किए थे.यह भी बताया गया कि "नीश-टेक्नोलॉजी" या विशिष्ट तकनीक वाले हथियारों के साथ सावधानी से चुने गए वारहेड का इस्तेमाल किया गया था, जिससे लक्ष्य के आस पास ज्यादा नुकसान ना हो.इसी बयान के आधार पर कुछ समीक्षकों ने अंदाजा लगाने की कोशिश की है कि भारत ने किन हथियारों का इस्तेमाल किया होगा.भारत बना पश्चिम का खरीदारइंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक भारत के पास इस तरह के कई सटीक हथियार हैं. इनमें फ्रांस का "हैमर" वेपन सिस्टम, यूरोपीय बहुराष्ट्रीय कंपनी की "स्कैल्प" मिसाइल, एक और यूरोपीय बहुराष्ट्रीय कंपनी का "मीटियोर" मिसाइल सिस्टम, रूसी मदद से बनी "ब्रह्मोस" मिसाइल और कई देशों से खरीदे ड्रोन शामिल हैं.इसके अलावा भारत के राफेल लड़ाकू जहाज फ्रांस के हैं.इसके अलावा भारत ने कुछ ही सालों पहले अमेरिकी प्रतिबंधों की धमकी के बीच रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था.कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि आठ मई की देर शाम से लेकर नौ मई की सुबह तक भारत-पाकिस्तान सीमा पर इसी सिस्टम के इस्तेमाल से भारत ने कई पाकिस्तानी मिसाइलें और ड्रोन गिराए.डीडब्ल्यू इन दावों को सत्यापित नहीं कर पाया है, लेकिन इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के मुताबिक, भारतीय थल सेना के बख्तरबंद वाहनों में से 90 प्रतिशत, वायु सेना और नौसेना के लड़ाकू जहाजों में से 69 प्रतिशत और नौसेना की पनडुब्बियों और जंगी जहाजों में से 44 प्रतिशत रूस में बने हुए हैं.65 प्रतिशत जंगी जहाजों में जो मिसाइलें लगी हुई हैं वो भी रूसी हैं.इसके विपरीत पाकिस्तानी सेना की हथियारों को लेकर चीन पर निर्भरता काफी बढ़ गई है. स्टॉकहोल्म इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (सिपरी) के डाटा के मुताबिक बीते पांच सालों में पाकिस्तान ने जितने विदेशी हथियार खरीदे हैं, उनमें से 81 प्रतिशत चीन के हैं.चीन ने बढ़ाई पाकिस्तान की ताकतइनमें लंबी दूरी तक सर्वेक्षण करने वाले ड्रोन, गाइडेड मिसाइल वाले जंगी जहाज, "हैंगोर टू" पनडुब्बियां, जासूसी जहाज, वीटी-फोर टैंक, "जे-10सीई" लड़ाकू जहाज, सतह से हवा में दागी जाने वाली मिसाइल, मिसाइल डिफेंस सिस्टम आदि शामिल हैं.जानकारों का मानना है कि यह तस्वीर दक्षिण एशिया और पूरब और पश्चिम की बड़ी ताकतों के बीच बदलते समीकरण की कहानी है.न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख के मुताबिक 2010 तक रूस भारत का मुख्य हथियार आपूर्तिकर्ता हुआ करता था, लेकिन अब भारत पश्चिमी देशों से ज्यादा खरीदता है.इसके उलट, पाकिस्तान 2010 तक पश्चिमी देशों से बड़ी मात्रा में हथियार खरीदता था लेकिन अब वह अपने अधिकांश हथियार चीन से खरीदता है.तो क्या भारत और पाकिस्तान एक तरह से बड़ी ताकतों का छद्म युद्ध लड़ रहे हैं?भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के मनोहर परिकर इंस्टिट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज में एसोसिएट फेलो प्रियंका सिंह कहती हैं कि भारत पहले के मुकाबले आज पश्चिम की तरफ ज्यादा देख रहा है और उसने पिछले कुछ सालों में अमेरिका, फ्रांस और इस्राएल से प्रमुख रक्षा खरीद की है.सिंह ने डॉयचे वेले को बताया कि इसके बावजूद तेजी से किए विविधीकरण के बाद भी, 36 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ रूस आज भी भारत का बड़ा डिफेंस सप्लायर है. क्या यह बड़ी ताकतों का छद्म युद्ध है?सिंह का मानना है कि यह कहना ठीक नहीं होगा कि यह किसी का छद्म युद्ध है क्योंकि दोनों देश अपने अपने सुरक्षा और कूटनीतिक हितों की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं.उन्होंने कहा कि इस प्रांत में वास्तविक दुश्मनी है और भारत और पाकिस्तान के एक दूसरे के खिलाफ खतरे वास्तविक और प्रत्यक्ष हैं.वही, वरिष्ठ पत्रकार नीलोवा रॉयचौधरी का कहना है कि भारत की तरफ से किया गया विविधिकरण बहुध्रुवीयता का एक ऐसा स्तर दिखाता है जो भारत काफी समय से हासिल करना चाह रहा है.मतलब एक ऐसी स्थिति जिसमें हथियारों का कोई एक स्रोत ना हो जो अगर किसी बात पर भारत से नाराज हो जाए या प्रतिबंध लगा दे तो उससे भारतीय सेना की तैयार रहने की क्षमता पर असर पड़े.छद्म युद्ध के विचार से नीलोवा सहमत हैं और उन्होंने डॉयचे वेले से कहा एक तरह से यह दुनिया की कहानी रही है कि सभी छद्म युद्धों को हथियारों को बेचने के लिए करवाया गया है.नीलोवा ने आगे कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से खास कर, चाहे कांगो हो, रवांडा हो, सीरिया हो, अमेरिका और उसका डिफेंस ब्लॉक ने किसी को किसी के खिलाफ हथियारों से लैस किया है और इस तरह अपने हथियार बेचे हैं.