क्या है हाजी पीर दर्रा, आतंक के लिए कैसे खुरामीन? ताशकंद समझौता रद्द कर अपनी ही कब्र खोदेगा पाक
10 जनवरी, 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में हुए समझौते के तहत भारतीय और पाकिस्तानी सेना को 5 अगस्त, 1965 से पहले की स्थिति में वापस लौटने पर सहमति बनी थी। इसी वजह से हाजी पीर दर्रा छोड़ना पड़ा था।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर से रिश्ते तल्ख हो गए हैं। भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त ऐक्शन लेते हुए सिंधु जल समझौता स्थगित कर दिया है और बॉर्डर सील करने समेत कई अन्य कदम उठाए हैं। इससे पड़ोसी देश बौखला उठा है। पाकिस्तान ने शिमला समझौता निलंबित करने का फैसला किया है और ताशकंद समझौते को भी रद्द करने की सोच रहा है। ताशकंद समझौता 10 जनवरी, 1966 को उज्बेकिस्तान में हुआ था। 1965 की जंग के बाद सोवियत संघ की मौजूदगी में यह समझौता हुआ था, जिसमें भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान की तरफ से तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे।
इसी समझौते के तहत भारत ने हाजी पीर दर्रा पर से अपना कब्जा हटा लिया था और 5 अगस्त 1965 से पहले की यथास्थिति बहाल करने पर तैयार हो गया था। इसे 60 साल पहले भारत की एक बड़ी चूक कहा जाता है। अब जब फिर से पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत पाकिस्तान की नकेल कसना चाह रहा है तो हाजी पीर दर्रा की बात अनायास सामने आ जा रही है क्योंकि यह वही दर्रा है, जहां से पाकिस्तान भारत में अपनी आतंकियों की सप्लाई करता है। अगर 60 साल पहले भारत ने वह चूक नहीं की होती, तो आज कश्मीर में पाकिस्तान आतंक न फैला रहा होता।
क्या है हाजी पीर दर्रा?
हाजी पीर दर्रा हिमालय पर्वतमाला की पीर पंजाल श्रेणी में स्थित है। यह जम्मू-कश्मीर स्थित पूंछ को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) के रावलकोट से जोड़ता है। 2,637 मीटर यानी 8,652 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित यह रणनीतिक दर्रा न केवल पूरे पाक अधिकृत कश्मीर घाटी पर नजर रखता है बल्कि कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकियों की घुसपैठ का मुख्य मार्ग भी यही है।
अगर भारत ने 60 साल पहले इस दर्रे को पाकिस्तान को नहीं सौंपा होता तो पाक आतंकियों की कश्मीर में सप्लाई रोक सकता था और इस्लामाबाद की नकेल भी कस सकता था। इसके अलावा इस दर्रे पर भारत का कब्जा होने से पूंछ और उरी के बीच की दूरी भी 282 किलोमीटर से घटकर सिर्फ 56 किलोमीटर रह जाती। देश का बंटवारा होने से पहले जम्मू घाटी और कश्मीर घाटी को जोड़ने वाली मुख्य सड़क इसी दर्रे से होकर गुजरती थी लेकिन 1948 में पाकिस्तान द्वारा PoK और हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लेने के बाद से यह रास्ता अनुपयोगी हो गया है।
पूरी रात बारिश के बीच की थी चढ़ाई
1965 के भारत-पाक जंग में भारतीय सेना ने हाजी पीर दर्रे के पास स्थित तीन ऊंची पहाड़ियों पूर्व में बेदोरी (3760 मीटर), पश्चिम में सांक (2895 मीटर) और दक्षिण-पश्चिम में लेडवाली गली (3140 मीटर) पर कब्जा कर लिया था, जो इस दर्रे से मात्र 10 से 14 किसोमीटर की दूरी पर था। 27 अगस्त 1965 को मेजर रणजीत सिंह दयाल ने पूरी रात बारिश होने के बावजूद भारी बाधाओं को पार करते हुए तीव्र पहाड़ी पर चढ़ाई की थी और 28 अगस्त, 1965 को इस रणनीतिक दर्रे पर कब्जा कर लिया था। 29 अगस्त को पाकिस्तानी सेना ने फिर से इसे अपने कब्जे में करने की कोशिश की लेकिन भारतीय जवानों ने पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया था।
1920 वर्ग किलोमीटर भूभाग लौटाना पड़ेगा
हालांकि, जब 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में भारत-पाकिस्तान के बीच समझौता हुआ तो भारत ने हाजी पीर दर्के पर से अपना कब्जा छोड़ दिया और समझौते के मुताबिक 5 अगस्त, 1965 की यथास्थिति पर लौट गया। इस तरह एक बार फिर इस रणनीतिक दर्रे पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया। भारत ने उस जंग में पाकिस्तान के 1920 वर्ग किलोमीटर भूभाग पर भी कब्जा कर लिया था। इसके तहत सियालकोट, लाहौर और कश्मीर घाटी के उपजाऊ क्षेत्र और हाजी पीर दर्रा शामिल था लेकिन सब कुछ लौटाना पड़ गया। अगर पाकिस्तान ने ताशकंद समझौता तोड़ा तो एक बार फिर इस पर भारत का कब्जा हो जाएगा।