कारगिल युद्ध के बाद ही बन गया था चिनाब ब्रिज का प्लान, क्यों घबरा गए हैं पाकिस्तान और चीन?
कारगिल युद्ध के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी थी। चिनाब ब्रिज चीन और पाकिस्तान दोनों को टेंशन देने वाला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल चिनाब ब्रिज जनता को समर्पित कर दिया है। एफिल टावर से भी ऊंचा यह पुल 359 मीटर की ऊंचाई पर बना है। इसकी लंबाई 1315 मीटर है। चिनाब ब्रिज की परिकल्पना भारत में लगभग 130 साल पहले ही हो गई थी। हालांकि यह सपना आज साकार हो पाया है। यह पुल 40 किलो विस्फोटक और 8 रिक्टर स्केल तक के भूकंप को आसानी से झेलने की क्षमता रखता है।
कारगिल के युद्ध के बाद ही मिल गई थी मंजूरी
भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने USBRL रेल प्रोजेक्ट को केंद्र के तहत डाल दिया। कारगिल युद्ध के बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी को इस पुल की जरूरत महसूस होने लगी थी। 2003 में कश्मीर घाटी के सुदूर हिस्सों को जोड़ने के लिए चिनाब ब्रिज को मंजूरी दी गई। प्लान यह था कि 6 साल में ही इस पुल को बनाकर तैयार कर दिया जाएगा। हालांकि इसका काम समय पर नहीं पूरा हो पाया। कारगिल युद्ध के 26 साल बाद यह पुल बनकर तैयार हो गया है ।
क्यों परेशान हैं पाकिस्तान और चीन?
जानकारों का कहना है कि भारत का यह प्रोजेक्ट चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए दुखदायी है। इस प्रोजेक्ट से दोनों ही सदाबहार दोस्त सकते में आ गए हैं। दरअसल पीर -पंजाल के इलाके को आतंकियों का गेट भी कहा जाता है। पाकिस्तान से इस रास्ते घुसपैठ होती है। इस पुल के बनने से आईएसआई, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर जैसे आतंकियों और खुफिया एजेंसियों का नेटवर्क धराशायी हो जाएगा। आतंकी अकसर इसी इलाके में छिप जाते थे या फिर पाकिस्तान वापस भाग जाते थे। वहीं इस रेल लिंक से हर मौसम में सेनाओं और लॉजिस्टिक का सीमा पर पहुंचना आसान होगा।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सीमा तक सेना और साजोसामान को पहुंचाना आसान हो जाएगा। इसलिए इस ब्रिज से चीन को भी टेंशन है। कश्मीर में पर्यटन के बढ़ने से भी आतंकियों को परेशानी होती है। आतंकी और पाकिस्तान नहीं चाहता है कि कश्मीर समृद्ध हो। गरीब युवाओं को भटकाना उनके लिए आसान होता है। हिमालय के पीर पंजाल इलाके में घुसपैठ को रोकने से कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी आएगी। इसके अलावा आतंकियों से निपटने के लिए तुरंत रैपिड फोर्स भी भेजी जा सकेगी।
इस ब्रिज के माध्यम से कश्मीर घाटी अब रेल नेटवर्क से जुड़ गई है। यह 272 किलोमीटर लंबे उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक का हिस्सा है। इसे जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में बनाया गया है। यह ब्रिज दो पहाड़ों की बीच बना है। यह ब्रिज 260 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार को भी सह सकता है। यह पुल आधुनिक इंजीनियरिंग का शानदार नमूना है।