मॉनसून के जल्दी आने से किसानों को फायदा या नुकसान? किन राज्यों पर सबसे ज्यादा असर
मॉनसून 2025 समय से पहले 24 मई को केरल पहुंचा, जिससे किसानों को समय पर बुवाई और अच्छी पैदावार की उम्मीद है, लेकिन बाढ़ का खतरा भी बना हुआ है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने घोषणा की है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2025 में समय से पहले, यानी 24 मई को ही केरल तट पर दस्तक दे चुका है। यह सामान्य तारीख (1 जून) से लगभग सात दिन पहले है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मॉनसून 13 मई को ही प्रवेश कर चुका था, और अब यह तेजी से देश के अन्य हिस्सों की ओर बढ़ रहा है। मौसम विभाग के अनुसार, इस साल मॉनसून सामान्य से अधिक बारिश ला सकता है, जिसका अनुमान दीर्घकालिक औसत (87 सेंटीमीटर) का 105% है। यह खबर किसानों, अर्थव्यवस्था और गर्मी से राहत की उम्मीद कर रहे लोगों के लिए सकारात्मक संकेत दे रही है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने सोमवार को कहा कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अपनी सामान्य तारीख से 16 दिन पहले मुंबई पहुंच गया है और 1950 के बाद से पहली बार इसका इतनी जल्दी आगमन हुआ है। मानसून ने शनिवार को केरल में दस्तक दी, जो 2009 के बाद से भारत की मुख्य भूमि पर इतनी जल्दी इसका पहली बार आगमन है। उस साल यह 23 मई को इस राज्य में पहुंचा था। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून आमतौर पर एक जून तक केरल में प्रवेश करता है, 11 जून तक मुंबई पहुंचता है और 8 जुलाई तक पूरे देश को कवर कर लेता है। यह 17 सितंबर के आसपास उत्तर-पश्चिम भारत से लौटना शुरू कर देता है और 15 अक्टूबर तक पूरी तरह से लौट जाता है।
किसानों पर प्रभाव: फायदा या नुकसान?
मॉनसून का जल्दी आगमन और सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान किसानों के लिए ज्यादातर सकारात्मक है, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं।
फायदे:
समय पर बुवाई: जल्दी मॉनसून का मतलब है कि किसान खरीफ फसलों (जैसे धान, मक्का, बाजरा, कपास, और दालें) की बुवाई जल्द शुरू कर सकते हैं। इससे फसलों को बढ़ने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा, जिससे पैदावार में वृद्धि हो सकती है।
पानी की उपलब्धता: सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान जलाशयों और नदियों को भरने में मदद करेगा, जिससे सिंचाई के लिए पानी की कमी नहीं होगी। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में फायदेमंद है जहां सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं।
अच्छी पैदावार की उम्मीद: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और उत्तर प्रदेश जैसे कृषि-प्रधान राज्यों में समय पर और पर्याप्त बारिश फसलों की उत्पादकता बढ़ा सकती है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
नुकसान:
बाढ़ का खतरा: कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण बाढ़ की आशंका है, जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है। विशेष रूप से निचले इलाकों में, जैसे बिहार और असम, बाढ़ से फसलों को नुकसान और मिट्टी का कटाव हो सकता है।
अनियमित बारिश का जोखिम: जल्दी मॉनसून का मतलब यह नहीं कि पूरे देश में बारिश एकसमान होगी। कुछ क्षेत्रों में कम बारिश या अनियमित बारिश फसलों को प्रभावित कर सकती है।
प्याज जैसी फसलों पर असर: महाराष्ट्र में प्याज की कीमतों में हालिया गिरावट का एक कारण बेमौसम बारिश थी, जिसने फसलों को नुकसान पहुंचाया। जल्दी मॉनसून से भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्य
मॉनसून का जल्दी आगमन और सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान विभिन्न राज्यों को अलग-अलग तरह से प्रभावित करेगा।
केरल: मॉनसून की शुरुआत केरल से होती है, और इस बार 24 मई को ही इसने दस्तक दे दी। भारी बारिश के कारण तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा हो सकता है, लेकिन यह चाय, कॉफी, और मसालों की खेती के लिए फायदेमंद होगा।
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में मॉनसून की धमाकेदार एंट्री हुई है, जिससे मुंबई, पुणे, और नासिक जैसे क्षेत्रों में भारी बारिश दर्ज की गई। यह खरीफ फसलों के लिए फायदेमंद है, लेकिन बाढ़ और जलभराव से जनजीवन और कुछ फसलों को नुकसान हो सकता है।
मध्य प्रदेश: सीहोर जैसे क्षेत्रों में मॉनसून 18 जून तक हल्की से मध्यम बारिश ला सकता है। यह धान और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए अनुकूल होगा, लेकिन किसानों को बुवाई की तैयारी जल्द करनी होगी।
उत्तराखंड: मॉनसून 10 जून के बाद उत्तराखंड पहुंच सकता है। प्री-मॉनसून बारिश ने पहले ही तापमान कम किया है, जो फसलों और पर्यटन के लिए सकारात्मक है। हालांकि, भूस्खलन का खतरा बना रह सकता है।
उत्तर प्रदेश और बिहार: इन राज्यों में मॉनसून जून के मध्य तक पहुंच सकता है। सामान्य से अधिक बारिश धान और गन्ने की खेती के लिए फायदेमंद होगी, लेकिन बाढ़ का खतरा भी बना रहेगा।
पूर्वोत्तर राज्य (असम, मेघालय): इन राज्यों में भारी बारिश की संभावना है, जो चाय की खेती के लिए अच्छी है, लेकिन बाढ़ और भूस्खलन की आशंका चिंता का विषय है।
मॉनसून के जल्दी आने के कारण
मॉनसून का समय से पहले आगमन कई मौसमी और वैश्विक कारकों का परिणाम है।
ला नीना का प्रभाव: ला नीना, जो अल नीनो का उलटा प्रभाव है, इस साल मॉनसून को मजबूती दे रहा है। यह समुद्री सतह के तापमान में ठंडक लाता है, जिससे बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में नमी युक्त हवाओं का प्रवाह बढ़ता है। इससे मॉनसून की गति तेज हो जाती है।
बंगाल की खाड़ी में अनुकूल परिस्थितियां: बंगाल की खाड़ी में समुद्री हवाओं की गति और नमी की मात्रा इस बार मॉनसून को जल्दी लाने में सहायक रही। मजबूत दक्षिण-पश्चिमी हवाएं मॉनसून को केरल तक तेजी से ले आईं।
पश्चिमी विक्षोभ की कमजोर उपस्थिति: सामान्यतः पश्चिमी विक्षोभ मॉनसून की प्रगति को बाधित कर सकते हैं, लेकिन इस बार इनका प्रभाव कम रहा, जिससे मॉनसून की प्रगति निर्बाध रही।
जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय कारक: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में अनिश्चितता बढ़ रही है। इस बार अनुकूल परिस्थितियों, जैसे समुद्री सतह का तापमान और हवाओं का पैटर्न, ने मॉनसून को जल्दी सक्रिय कर दिया।
मॉनसून का जल्दी आना: कैसे होता है?
मॉनसून एक जटिल मौसमी प्रणाली है, जो मुख्य रूप से समुद्री और वायुमंडलीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
समुद्री सतह का तापमान: गर्म समुद्री सतह नमी को बढ़ावा देती है, जिससे बादल बनते हैं और मॉनसून की शुरुआत जल्दी होती है।
हवाओं का पैटर्न: दक्षिण-पश्चिमी हवाएं जब बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नमी लेकर तेजी से भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती हैं, तो मॉनसून जल्दी सक्रिय हो जाता है।
वायुमंडलीय दबाव: निम्न दबाव वाले क्षेत्र (जैसे बंगाल की खाड़ी में चक्रवातीय गतिविधियां) मॉनसून को तेजी से खींच सकते हैं।
एल नीनो/ला नीना: इस बार अल नीनो का प्रभाव नगण्य है, और ला नीना की उपस्थिति मॉनसून को मजबूत और जल्दी लाने में सहायक रही।
मॉनसून 2025 का जल्दी आगमन और सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान भारत के कृषि क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह किसानों को समय पर बुवाई और अच्छी पैदावार का अवसर देगा, खासकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में। हालांकि, बाढ़ और अनियमित बारिश का खतरा कुछ क्षेत्रों में चुनौतियां पैदा कर सकता है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे मौसम विभाग के अलर्ट पर नजर रखें और बुवाई व अन्य कृषि गतिविधियों की तैयारी पहले से करें। मौसम विभाग की उन्नत तकनीक, जैसे सचेत ऐप, किसानों और आम लोगों को मौसम की ताजा जानकारी प्राप्त करने में मदद करेगी।