डीयू के शिक्षकों ने यूजीसी विनियमन मसौदे को खारिज किया
नई दिल्ली। प्रमुख संवाददाता दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने शनिवार को इंडिया

नई दिल्ली। प्रमुख संवाददाता दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने शनिवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में यूजीसी विनियमन का मसौदा --2025 पर सम्मेलन आयोजित कर शिक्षकों से विचार जाने । इस कार्यक्रम में अधिकांश शिक्षकों ने इस मसौदे की आलोचना की और कहा कि इसमें सुधार की आवश्यकता है । शिक्षकों से बिना राय जाने लागू न किया जाए । सम्मेलन के शुरूआत में डूटा अध्यक्ष प्रो. ए.के. भागी ने कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण में कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) को नवाचार और प्रौद्योगिकी केंद्रों (आईटीसी) की तुलना में शिक्षण अधिगम केंद्रों (टीएलसी) को प्राथमिकता देनी चाहिए खासकर देश भर में कई संस्थानों के सामने आने वाली बुनियादी ढांचागत चुनौतियों के मद्देनजर। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि नियुक्ति और पदोन्नति के मानदंड अधिक कठोर नहीं होने चाहिए । उन्होंने शैक्षणिक संदर्भों की विविधता को समायोजित करने के लिए लचीलेपन का आह्वान किया।
ज्ञात हो कि यूजीसी विनियमन मसौदा 2025 यूजीसी ने 6 जनवरी 2025 को शिक्षकों और शैक्षणिक स्टाफ की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के उपाय को जारी किया था। यह मसौदा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लक्ष्यों के अनुरूप उच्च शिक्षा संस्थानों में नियुक्ति, पदोन्नति और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में व्यापक बदलाव प्रस्तावित करता है। लेकिन इसके कई प्रावधानों पर शिक्षकों को आपत्ति है।
कार्यक्रम में वक्ता के तौर पर डॉ संजय पासवान ने समावेशिता के आह्वान को दोहराया और जोर दिया कि नियामक ढांचे को भारत के विस्तृत और विविध उच्च शिक्षा परिदृश्य में संस्थानों और व्यक्तियों की विभिन्न जरूरतों को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
पूर्व डूटा अध्यक्ष डॉ नंदिता नारायण ने अकादमिक इकाई को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक वित्त पोषित शिक्षा प्रणाली और यूजीसी की भूमिका और इस संबंध में प्रस्तावित नियमों की विफलता पर जोर दिया।
विचार सम्मेलन के दूसरे सत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति --2020 के उद्देश्यों के साथ मसौदा विनियमों के संरेखण को स्वीकार करते हुए डूटा ने अकादमिक स्वायत्तता, भर्ती, पदोन्नति और संस्थागत विविधता पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की। सम्मेलन के दौरान पारित किए गए प्रमुख प्रस्तावों में उनके वर्तमान स्वरूप में मसौदा विनियमों की स्पष्ट अस्वीकृति शामिल थी जिसमें मांग की गई थी कि उन्हें 8 वें वेतन आयोग के ढांचे में एकीकृत किया जाए और व्यापक हितधारक परामर्श के माध्यम से संशोधित किया जाए। प्रमुख सिफारिशों में एमफिल और पीएचडी वेतन वृद्धि जारी रखना, पदोन्नति के लिए पिछली सेवा की उचित मान्यता, समयबद्ध और पारदर्शी पदोन्नति प्रक्रिया, शोध अवकाश के लिए बढ़ा हुआ समय और वरिष्ठ प्रोफेसरों की नियुक्तियों पर मनमानी सीमा हटाना शामिल था ।
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