Indian Government Defends Constitutional Validity of Waqf Amendment Act 2025 in Supreme Court वक्फ संशोधन कानून किसी के मौलिक अधिकारों का नहीं करता है हनन- केंद्र सरकार, Delhi Hindi News - Hindustan
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वक्फ संशोधन कानून किसी के मौलिक अधिकारों का नहीं करता है हनन- केंद्र सरकार

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध किया है। सरकार ने कहा कि यह संशोधन किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता और...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 25 April 2025 08:09 PM
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वक्फ संशोधन कानून किसी के मौलिक अधिकारों का नहीं करता है हनन- केंद्र सरकार

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए, इसे खारिज करने की मांग की है। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में अपना आरंभिक जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि संशोधित वक्फ अधिनियम किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता है।

केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव शेरशा सी शेख मोहिद्दीन के जरिए दाखिल 1332 पन्नों के जवाब में केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से वक्फ संशोधन कानून 2025 पर पूरी तरह से या आंशिक रूप से रोक नहीं लगाने का आग्रह किया है। सरकार ने कहा है कि संसद द्वारा पारित कानून की संवैधानिक वैधता अनुमानित है और अदालत द्वारा इस पर किसी तरह की रोक लोगों, यहां तक के मुस्लिम समुदाय के भी लोगों के अधिकारों पर प्रतिकूल परिणाम होगा। अपने आरंभिक जवाब में सरकार ने कानून की वैधता को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं में संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों के इर्द-गिर्द ‘शरारतपूर्ण और झूठी धारणा फैलाने के बारे में भी इशारा किया है। केंद्र सरकार ने 17 अप्रैल को शीर्ष अदालत को यह भरोसा दिया था कि मामले की अगली सुनवाई 5 मई तक न तो केंद्रीय वक्फ परिषद या बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगी और न ही उपयोगकर्ता द्वारा घोषित वक्फ की संपत्तियों को गैर अधिसूचित करेगी। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र के इस बयान को आदेश में दर्ज करते हुए, नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।

वक्फ परिषद या बोर्डों में मुस्लिम अल्पमत में नहीं- सरकार

सरकार ने 8 अप्रैल तक वक्फ बाय यूजर यानी उपयोगकर्ता द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों के आवश्यक पंजीकरण पर तर्कों का भी विरोध किया। सरकार ने कहा है कि यदि अंतरिम आदेश द्वारा प्रावधान में हस्तक्षेप किया गया, तो यह ‘न्यायिक आदेश द्वारा विधायी व्यवस्था बनाने के जैसा होगा। सरकार ने अपने हलफनामे में उन दलीलों का खंडन किया है जिसमें कहा गया था कि वक्फ कानून में बदलाव के कारण केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में मुस्लिम अल्पमत में हो सकते हैं। सरकार ने गैर-मुसलमानों को वक्फ निकायों में शामिल करने के कारण मुसलमानों के अल्पसंख्यक होने के दावों का विरोध करते हुए कहा कि कुल 22 में से केवल चार गैर-मुसलमान सदस्य केंद्रीय वक्फ परिषद का हिस्सा हो सकते हैं। जबकि राज्यों के वक्फ बोर्डों में, 11 सदस्यों में से अधिकतम तीन सदस्यों के गैर-मुस्लिम होने की संभावना है (यदि पदेन सदस्य गैर-मुस्लिम होता है)।

सरकार ने कहा है कि जब विधायिका ने एक कानून बनाया है, जिसे संवैधानिक माना जाता है, तो इसे बदलना या इस पर रोक लगाना अनुचित होगा। अपने जवाब में सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगे गए किसी भी प्रकार के आदेश से संसद द्वारा अंतरिम रूप से पारित संशोधन अधिनियम पर रोक लग जाएगी, जो संविधान के तहत परिकल्पित न्यायिक समीक्षा के दायरे में अस्वीकार्य है। सरकार ने कहा है कि प्रमुख कानूनी मुद्दों को हटाकर, अधिनियम ने कानूनी मानकों और न्यायिक निगरानी के अधीन करके वक्फ संपत्ति की पहचान, वर्गीकरण और विनियमन की पुष्टि की है। सरकार ने दावा किया है कि संशोधित कानून यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को अदालतों तक पहुंच से वंचित न किया जाए और संपत्ति के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक दान को प्रभावित करने वाले निर्णय निष्पक्षता और वैधानिकता की सीमाओं के भीतर किए जाएं।

सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा है कि कानून विधायी शक्ति का एक वैध और वैधानिक प्रयोग है, जो वक्फ संस्था को मजबूत करता है और इसे संवैधानिक सिद्धांतों के साथ जोड़ता है। सरकार ने कहा है कि समकालीन युग में वक्फ के समग्र कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करता है। केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा है कि कानून में यह स्थापित सिद्धांत है संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी। सरकार ने कहा है कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है। जिसके अनुसार अगर किसी कानून को अदालत में चुनौती दी जाती है, तो अदालत सामान्यतः यह मानकर चलती है कि वह संवैधानिक है और उसे केवल तभी असंवैधानिक ठहराया जाता है, जब वह स्पष्ट रूप से संविधान का उल्लंघन करता हो। साथ ही कहा है कि संवैधानिकता के अनुमान, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के पीछे अंतर्निहित मूल्य और किसी भी अंतरिम आदेश को पारित करने से पहले पूरी की जाने वाली उच्च सीमा के स्थापित संवैधानिक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, किसी भी अंतरिम आदेश पारित करने की मांग को अस्वीकार करना ही उचित होगा।

वक्फ संपत्तियों में 116 फीसदी की बढ़ोतरी

केंद्र ने अपने जवाब में, शीर्ष अदालत को बताया है कि 2013 से अब तक वक्फ संपत्तियों में 116 फीसदी की चौंकाने वाली बढ़ोतरी हुई है। केंद्र ने अपने हलफनामे में निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण करने के लिए वक्फ के प्रावधानों के ‘कथित दुरुपयोग का जिक्र करते हुए कहा है कि ‘मुगल काल से पहले, देश के स्वतंत्रत होने से पहले और बाद में, कुल वक्फ संपत्तियां की संख्या 18,29,163.896 एकड़ थी। सरकर ने कहा है कि लेकिन 2013 के बाद इसमें बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया है कि चौंकाने वाली बात यह है कि वक्फ भूमि में 2013 के बाद 20,92,072.536 एकड़ की वृद्धि हुई है।

सरकार ने कहा है कि प्रावधान में बदलाव के जरिए संशोधन अधिनियम न्यायिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्षता लाता है। सरकार ने कहा है कि संशोधित कानून किसी के भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। साथ ही कहा है कि यह संशोधन संविधान द्वारा अधिकृत वक्फ प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष, प्रशासनिक पहलुओं को वैध रूप से विनियमित करते हुए आस्था और पूजा के मामलों को अछूता रखते हुए मुस्लिम समुदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करता है। सरकार ने कहा है कि संसद ने अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर संशोधन किया है। ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि वक्फ जैसी धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन इस तरह से हो कि उनमें आस्था रखने वालों और बड़े पैमाने पर समाज का भरोसा बना रहे और धार्मिक स्वायत्तता का हनन न हो।

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