नौकरियों की कमी और सीमित अवसरों के चलते योग्य लोगों को नहीं मिल रहे हैं रोजगार- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता के 80 सालों के बाद भी, सरकारी नौकरी पाने के इच्छुक योग्य उम्मीदवारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं। न्यायालय ने कहा कि सरकारी रोजगार की...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘स्वतंत्रता के 80 साल पूरे होने को है, इसके बावजूद, सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त नौकरियां पैदा करना और सरकारी नौकरी पाने के इच्छुक लोगों को आकर्षित कर सकें, अब भी एक मायावी लक्ष्य बना हुआ है। जबकि देश में सरकारी नौकरी पाने के लिए इच्छुक योग्य उम्मीदवारों की कोई कमी नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि सार्वजनिक रोजगार की तलाश, पर्याप्त रोजगार के अवसरों की कमी के कारण विफल हो रही है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने देश में सरकारी नौकरियों की कमी और सीमित अवसरों के कारण योग्य उम्मीदवारों को रोजगार नहीं मिलने को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए यह टिप्पणी की है। पीठ ने उपरोक्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘यह मान लेना, जैसा कि बिहार सरकार (प्रतिवादी संख्या-1) की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति किसी विशेष संवर्ग (चौकीदार) में रोजगार प्राप्त करने में रुचि नहीं रखेगा और आम जनता नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चौकीदार के रूप में रोजगार लेने में रुचि नहीं रखती है, यह केवल एक अनुमान है। पीठ ने कहा कि सरकार की ओर अपनी दलीलों के समर्थन में तथ्य और आंकड़े पेश नहीं किए गए हैं कि आपत्तिजनक प्रावधान की शुरूआत से पहले, चौकीदारों के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए सार्वजनिक विज्ञापन जारी किए गए थे। शीर्ष अदालत ने पटना उच्च न्यायालय के उस निर्णय को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें राज्य सरकार के उस नियम को असंवैधानिक करार दिया गया था, जिसमें चौकीदारों के पद पर वंशानुगत सार्वजनिक नियुक्तियों की अनुमति दी गई थी। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा कानून में किए गए उस संशोधन को रद्द कर दिया था, जिसके तहत बिहार चौकीदारी संवर्ग (संशोधन) नियम, 2014 के नियम 5(7) के प्रावधान (ए) में सेवानिवृत चौकीदार को अपने स्थान पर नियुक्ति के लिए आश्रित रिश्तेदारों को नामित करने की अनुमति दी गई थी। पटना उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेकर इस प्रावधान को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया था। हालांकि इस प्रावधान को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय में कोई याचिका दाखिल नहीं की गई थी।
पटना उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ बिहार राज्य दफादार चौकीदार पंचायत (मगध प्रमंडल) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। अपीलकर्ता उच्च न्यायालय में पक्षकार नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करते हुए, अपीलकर्ता ने कहा था कि ‘उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार द्वारा कानून में संशोधन करके चौकीदार को अपनी सेवानिवृति के बाद अपने आश्रितों को इस पद के लिए नामित करने के प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने और रद्द करके न्यायिक अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है, जबकि न्यायालय के समक्ष इस कानून को कोई चुनौती नहीं दी गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में यह कानूनी सवाल उठाया गया कि ‘क्या उच्च न्यायालय स्वत: संज्ञान लेने की अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके किसी कानून को असंवैधानिक घोषित करना उचित था, जबकि इसके विरुद्ध कोई औपचारिक चुनौती नहीं दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया।
उच्च न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर कर सकता है कानून की समीक्षा- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति को बहाल रखा, जिसके तहत अधीनस्थ विधान को असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है, यदि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि ‘देश में रिट अदालतों का कर्तव्य केवल उन व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को लागू करना ही नहीं है, जो उनके पास आते हैं, बल्कि यह भी कर्तव्य है कि वे राज्य के तीनों अंगों द्वारा दूसरों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से रक्षा करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘हमारा मानना है कि जब कोई रिट कोर्ट यानी उच्च न्यायालय किसी दुर्लभ और बहुत ही असाधारण मामले में अपने विवेक को उस मुद्दे से जुड़े अधीनस्थ कानून की स्पष्ट असंवैधानिकता से आहत पाता है, तो वह राज्य को अधीनस्थ कानून का बचाव करने का पूरा अवसर देने और उसे सुनने के बाद, ऐसे कानून की असंवैधानिकता और/या अमान्यता के बारे में घोषणा कर सकता है।
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