अपराध का मकसद न होना, बरी करने का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने बेटे की हत्या में दोषी पिता की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि किसी अपराध के लिए मकसद का न होना आरोपी को बरी नहीं कर सकता। दोषी पिता की दलीलों को ठुकराते हुए, अदालत...

- हत्या में दोषी पिता की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी अपराध को अंजाम देने के लिए मकसद का न होना, आरोपी को मामले में बरी करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।
शीर्ष अदालत ने 2012 में अपने बेटे की हत्या में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा रखते हुए यह टिप्पणी की है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मामले में दोषी पिता की उन दलीलों को ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि ‘कोई अपने इकलौते बेटे की हत्या नहीं कर सकता है, क्योंकि इसके पीछे कोई वजह नहीं थी। पीठ ने दोषी की ओर से दी गई इस दलील को बचकाना करार दिया। कहा कि जिस तरह एक मजबूत मकसद अपने आप में दोषसिद्धि का कारण नहीं बनता है, उसी तरह मकसद नहीं होने का एकमात्र आधार बरी करने की वजह नहीं हो सकता है। पीठ ने यह फैसला दिल्ली हाईकोर्ट के अगस्त 2022 के फैसले को चुनौती देने वाले व्यक्ति की अपील पर आया। हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दोषी करार देने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के फैसले को बरकरार रखा।
क्या है मामला
यह बात संज्ञान में आई थी कि परिवार में दोषी, उसकी पत्नी और पांच बच्चे शामिल थे। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि 14-15 दिसंबर, 2012 की दरमियानी रात जब पत्नी और दो बेटियां जागीं तो पति चिल्ला रहा था कि उसका बेटा मर चुका है। व्यक्ति ने अपने परिवार के सदस्यों को बताया कि बेटे ने पेचकस से खुद को घायल कर आत्महत्या की। जांच में पाया गया कि मौत गोली लगने से हुई थी। इसके लिए पिता को दोषी ठहराया गया।
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