Trade War Threatens Global Economy and Climate Action ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई में व्यापार युद्ध बनेगा बड़ी बाधा, Delhi Hindi News - Hindustan
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ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई में व्यापार युद्ध बनेगा बड़ी बाधा

व्यापार युद्ध से वैश्विक अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाने से औद्योगिक गतिविधियाँ कम हो सकती हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन में अल्पकालिक गिरावट...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 11 April 2025 01:24 PM
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ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई में व्यापार युद्ध बनेगा बड़ी बाधा

नई दिल्ली, अभिषेक झा। व्यापार युद्ध न सिर्फ दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की कोशिशों के लिए भी बड़ा खतरा बन सकता है। यह अल्पकालिक रूप से कार्बन उत्सर्जन में गिरावट ला सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से स्वच्छ ऊर्जा में निवेश को बाधित कर सकता है और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता बढ़ा सकता है।

1. मंदी से उत्सर्जन में गिरावट संभव

अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ सकती है। यदि ऐसा हुआ, तो औद्योगिक गतिविधियां कम होंगी और जीवाश्म ईंधन की खपत घटेगी, जिससे अल्पकालिक रूप से कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2009 और 2020 की आर्थिक मंदी के दौरान उत्सर्जन में गिरावट आई थी। हालांकि, यह गिरावट लोगों की नौकरियों और आजीविका के लिए नुकसानदायक हो सकती है, खासकर विकासशील देशों में।

ग्राफ :

जीवाश्म उत्सर्जन बनाम जीडीपी

नीला: जीवाश्म उत्सर्जन में वृद्धि (प्रतिशत में)

लाल: जीडीवी वृद्धि - स्थिर क्रय शक्ति समता (प्रतिशत में)

2. अलग-अलग देशों में प्रभाव भी अलग

उत्सर्जन में कमी या वृद्धि का असर अलग-अलग देशों में अलग होगा। विकसित देशों में उत्सर्जन पहले से ही कम हो रहा है, जबकि भारत, चीन और पश्चिम एशिया जैसे तेजी से बढ़ते देशों में यह बढ़ रहा है। यदि इन देशों की आर्थिक वृद्धि जारी रहती है, तो उत्सर्जन भी बढ़ सकता है। अमेरिका, जो वैश्विक उत्सर्जन में 13 फीसदी हिस्सेदारी रखता है, यदि फिर से जीवाश्म ईंधनों की ओर लौटता है, तो जलवायु संतुलन बिगड़ सकता है। इसके अलावा, यदि यूरोप आर्थिक दबाव में आकर तेल और गैस का उपयोग बढ़ा देता है, तो उत्सर्जन और बढ़ सकता है।

3. स्वच्छ ऊर्जा में निवेश घटेगा

व्यापारिक तनाव निवेश को प्रभावित करता है। यदि टैरिफ की स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तो स्वच्छ ऊर्जा में निवेश धीमा हो सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता बनी रहेगी। ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के अनुसार, यदि उत्सर्जन की मौजूदा दर बनी रही, तो अगले छह वर्षों में 1.5° डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की सीमा पार हो सकती है। ट्रंप प्रशासन द्वारा जलवायु समझौतों से पीछे हटने और जीवाश्म ईंधनों को बढ़ावा देने से स्थिति और बिगड़ सकती है।

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सस्ते चीनी सामान से भारतीय कंपनियां झेलेंगी नुकसान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन पर लगाए गए 125 फीसदी टैरिफ के चलते चीनी उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो गए हैं। इससे वहां के उपभोक्ता तो प्रभावित होंगे ही, लेकिन सबसे ज्यादा असर भारत सहित अन्य देशों पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अब अपने उत्पादों को अन्य बाजारों में खपाने की कोशिश करेगा, जिससे भारतीय कंपनियों को तगड़ा झटका लग सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस परिस्थिति में भारतीय निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए। घरेलू कंपनियों पर पड़ने वाले दबाव को देखते हुए पोर्टफोलियो में भारतीय उपभोग केंद्रित बड़ी कंपनियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके अलावा, सोने जैसे सुरक्षित निवेश साधनों में भी ध्यान देना चाहिए।

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