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डब्ल्यूएचओ मोटापा घटाने वाली दवाओं को दे सकता है मंजूरी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) मोटापा कम करने वाली दवाओं को औपचारिक मंजूरी देने की तैयारी कर रहा है। इन दवाओं की कीमतें चिंता का विषय हैं, खासकर विकासशील देशों में। नई गाइडलाइंस 2022 से मोटापा...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 2 May 2025 04:07 PM
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डब्ल्यूएचओ मोटापा घटाने वाली दवाओं को दे सकता है मंजूरी

लंदन, एजेंसी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) मोटापा कम करने वाली दवाओं को औपचारिक मंजूरी देने की तैयारी में है। यह पहली बार है जब संगठन इस तरह की दवाओं को मोटापे के इलाज का एक हिस्सा मानने जा रहा है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह फैसला अगस्त या सितंबर तक औपचारिक रूप से लिया जा सकता है। हालांकि, डब्ल्यूएचओ ने इन दवाओं की अत्यधिक कीमत पर चिंता भी जताई है। संगठन ने खासकर गरीब और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में इनकी पहुंच सुनिश्चित करने की जरूरत बताई है। बता दें कि भारत समेत कई विकासशील देशों में भी मोटापे से ग्रसित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

नई गाइडलाइंस पर काम जारी रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक निकाय 2022 से मोटापा रोकने और उसके इलाज को लेकर नए दिशानिर्देश तैयार कर रहा है। इन सिफारिशों में यह बताया जाएगा कि किन परिस्थितियों में, किस उम्र और किन शर्तों के तहत इन दवाओं का इस्तेमाल उचित होगा। अगले सप्ताह एक महत्वपूर्ण बैठक होनी है, जिसमें यह तय होगा कि क्या इन दवाओं को ‘आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया जाए। इन दवाओं की हो रही चर्चा 1. वेगोवी : डेनमार्क की नोवो नोरडिस्क कंपनी द्वारा विकसित। 2. जेपबाउंड : अमेरिका की एली लिली कंपनी द्वारा निर्मित। ट्रायल में सफल रहीं ये दोनों दवाएं शरीर में भूख को नियंत्रित करने वाले हार्मोन की तरह काम करती हैं, जिससे पाचन धीमा होता है और लंबे समय तक भूख नहीं लगती। क्लिनिकल ट्रायल में इन दवाओं से 15-20 फीसदी तक वजन कम होने के नतीजे सामने आए हैं। इसके साथ ही हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप-2 मधुमेह का खतरा भी घटता है। चुनौतियां और चिंताएं 1. उच्च लागत : हर महीने करीब 85 हजार रुपये तक खर्च। 2. लंबे समय तक उपयोग: स्थायी असर के लिए जीवनभर दवा लेनी पड़ सकती है। 3. साइड इफेक्ट्स: पैंक्रियाटाइटिस और पेट संबंधी समस्याएं देखी गई हैं। ----- अभिशाप बनता जा रहा मोटापा -01 अरब लोग मोटापे से पीड़ित हैं दुनियाभर में -70% पीड़ित निम्न-मध्यम आय वाले देशों में रह रहे भारत में भी बुरी है स्थिति -10 करोड़ लोग मोटापे से पीड़ित -10.1 करोड़ लोग मधुमेह से ग्रस्त

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