Pakistani Hindus unsure about their status at delhi camps amid visa directive न इधर के रहे, न उधर के? दिल्ली के कैंपों में पाक से आए हिंदुओं के भारत में रहने पर असमंजस, Ncr Hindi News - Hindustan
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न इधर के रहे, न उधर के? दिल्ली के कैंपों में पाक से आए हिंदुओं के भारत में रहने पर असमंजस

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव जहां रिश्तों में तनाव बढ़ा दिया है। वहीं पाकिस्तान से शरण की आस में भारत आए हिन्दुओं के लिए भी मुसीबत पैदा कर दी है।

Praveen Sharma लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली। स्नेहिल सिन्हा (एचटी)Sat, 26 April 2025 07:45 AM
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न इधर के रहे, न उधर के? दिल्ली के कैंपों में पाक से आए हिंदुओं के भारत में रहने पर असमंजस

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव जहां रिश्तों में तनाव बढ़ा दिया है। वहीं पाकिस्तान से शरण की आस में भारत आए हिन्दुओं के लिए भी मुसीबत पैदा कर दी है। सरकार द्वारा पाकिस्तानियों को भारत छोड़ने के आदेश से उनके लिए अब ‘न इधर के रहे, न उधर के’ जैसी स्थिति बन गई है।

पाकिस्तानी हिंदू सतराम कुमार अपने नौ सदस्यीय परिवार के साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हैदराबाद से करीब 20 दिन पहले दिल्ली आए थे। यह परिवार पिछले तीन साल से भारत आने की कोशिश कर रहा था, लेकिन पिछले महीने 45 दिन का विजिटर वीजा मिलने के बाद ही यह संभव हो सका। हालांकि, उनक परिवार भारत में बसने के इरादे से आया था, लेकिन अब उनके सामने असमंजस की स्थिति बन गई है।

22 अप्रैल को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हुए एक बड़े आतंकवादी हमले के बाद केंद्र सरकार ने गुरुवार को पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सभी प्रकार के वीजा रद्द करने की घोषणा करते हुए उन्हें 48 घंटे में देश छोड़ने का आदेश दिया था।

इस बीच, विदेश मंत्रालय ने बाद में साफ किया था कि हिंदू पाकिस्तानी नागरिकों को पहले से जारी लॉन्ग टर्म वीजा वैध रहेंगे। हालांकि, सतराम जैसे कई पाकिस्तानी हिंदू जो दिल्ली के मजनूं का टीला और सिग्नेचर ब्रिज इलाकों में चले गए हैं, वे अपनी स्थिति और भारत में रहने की प्रक्रियाओं के बारे में असमंजस में हैं।

सतराम कुमार ने कहा कि हमारे पड़ोसी और रिश्तेदार सालों से यहां आकर बस हुए हैं। हम पाकिस्तान में असुरक्षित महसूस करते थे और अपने परिवार के साथ यहां आने और वीजा का खर्च उठाने के लिए पैसे बचाते थे। अब, हमें नहीं पता कि हम यहां रह पाएंगे या हमें देश छोड़ने के लिए कहा जाएगा। मेरी पत्नी, बहुएं और बच्चे यहां आ गए हैं और डरे हुए हैं।

दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज के पास एक अस्थायी कैंप में रह रहे इस परिवार के पास सिर पर छत के नाम पर फिलहाल बांस के खंभों के ऊपर एक कालीन पड़ी है। सतराम कहते हैं कि उनका परिवार यहां खुश और सुरक्षित है, भले ही उन्होंने अभी तक यह तय नहीं किया है कि वे कैसे अपना गुजारा और परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे और इस नए देश में अपनी पहचान कैसे साबित करेंगे।

बता दें कि, पिछले कुछ महीनों में पड़ोसी देश से दिल्ली आए ऐसे कई परिवारों को अभी तक नागरिकता या कोई पहचान प्रमाण नहीं मिला है। अनुमान के मुताबिक, मजनूं का टीला के पास करीब 900 लोग और सिग्नेचर ब्रिज के पास 600-700 लोग रहते हैं, लेकिन अभी तक सिर्फ 300 लोगों को ही नागरिकता प्रमाण पत्र मिले हैं।

एक पाकिस्तानी हिंदू दयाल दास जिन्होंने 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की घोषणा के बाद अपनी पोती का नाम ‘नागरिकता’ रखा था। उन्होंने कहा, "पिछले 15 सालों से लोग यहां आकर बस रहे हैं। हर दूसरे महीने एक परिवार यहां आकर बस जाता है। हम कई ऐसे परिवारों को जानते हैं, जिनका वीजा अभी-अभी मंजूर हुआ है, लेकिन नए प्रतिबंधों के कारण वे अब यात्रा नहीं कर पाएंगे।"

दयाल दास ने बताया कि स्थानीय पुलिस ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि इन कैंपों में रह रहे परिवार सुरक्षित हैं तथा उन्होंने इन कैंपों में रह रहे लोगों और परिवारों की संख्या का डिटेल शनिवार तक सौंपने को कहा है। 

इस बीच, करीब नौ महीने पहले पाकिस्तान से भारत आया 15 लोगों का एक और परिवार जो हरियाणा के हिसार के बालसमंद गांव में शिफ्ट हो गया था, उन्हें बिना वैध वीजा के रहने के कारण रातों-रात मजनू का टीला कैंप में वापस भेज दिया गया। बालसमंद पुलिस चौकी प्रभारी शेष करण ने पुष्टि की कि हरियाणा पुलिस सुरक्षा कारणों से पाकिस्तानी हिंदू परिवार को दिल्ली ले गई थी। 

पाकिस्तानी हिंदू सोभो अपने परिवार के 14 लोगों के साथ जुलाई 2024 में भारत आए थे। तब से उनका वीजा एक बार रिन्यू किया गया था और उनके खत्म हो चुके पासपोर्ट भी इस साल जनवरी में पाकिस्तानी वाणिज्य दूतावास द्वारा फिर से जारी किए गए थे।

सोभो के सबसे बड़े बेटे कुंवर ने कहा कि पाकिस्तान से आने के कारण लोगों को हम पर भरोसा करने में समय लगता है। हमें नहीं पता कि हम यहां कब तक रहेंगे और क्या करेंगे। परिवार के सदस्य केवल अपना पहला नाम ही इस्तेमाल करते हैं।