Unemployment in Corona parents lending their children childhood राजस्थान: कोरोना में बेरोजगारी की मार, माता-पिता अपने बच्‍चों का बचपन दे रहे उधार, Rajasthan Hindi News - Hindustan
Hindi Newsराजस्थान न्यूज़Unemployment in Corona parents lending their children childhood

राजस्थान: कोरोना में बेरोजगारी की मार, माता-पिता अपने बच्‍चों का बचपन दे रहे उधार

राजस्थान के आदीवासी इलाकों के अलावा भी कई जिलों में छोटे बच्चों से मजदूरी कराने के मामले सामने आते रहते हैं। झालावाड़ जिले से गुजर रहे रेबारी काफिलों में भेड़ों को चराने के लिए छोटे बच्‍चों को...

एजेंसी झलवारSat, 1 Aug 2020 07:15 PM
share Share
Follow Us on
राजस्थान: कोरोना में बेरोजगारी की मार, माता-पिता अपने बच्‍चों का बचपन दे रहे उधार

राजस्थान के आदीवासी इलाकों के अलावा भी कई जिलों में छोटे बच्चों से मजदूरी कराने के मामले सामने आते रहते हैं। झालावाड़ जिले से गुजर रहे रेबारी काफिलों में भेड़ों को चराने के लिए छोटे बच्‍चों को पसंद किया जाता है। इसलिए रुपए पैसों का लालच देकर बच्चों के माता- पिता से इन बच्चों को बंधुआ मजदूरी के तौर पर ले जाते है। 

इन बच्‍चों को मजदूर बनाने से पहले इनके माता-पिता से कागजी अनुबंध कर लिया जाता है। जिसमें, बंधुआ मजदूरी की अवधि और उसके लिए मिलने वाले पैसों का उल्लेख होता है। इसके बाद इन बच्चों का बचपन रेबारियों की भेड़ चराने में चला जाता है। 

झालावाड़ में बच्चों के बचपन से खिलवाड़ का खुलासा तब हुआ जब माता-पिता को पैसे देकर बच्चों को अनुबंध पर भेड़ चराने के लिए लाए गए दो बच्चे भाग गए। ये दोनों बच्‍चे भागकर चाइल्ड लाइन पहुंचे। जिनके माध्यम से पूरा मामला बाल कल्याण समिति के सामने आ गया। इसके बाद बच्चों के परिजनों को बुलाकर दोनों बच्चों को माता- पिता को पाबंद कर सौंप दिया। 

झालावाड बाल कल्याण समिति अध्यक्ष मुकेश उपाध्याय ने बताया कि चाइल्ड लाइन द्वारा दो बच्चों को किशोर न्यायालय में प्रस्तुत किया। जहां बच्चों ने बताया कि उनमें से एक बांसवाड़ा क्षेत्र और दूसरा एमपी के राजपुर का रहने वाला है। उनके माता-पिता ने पैसे लेकर पाली जिले के रेबारी को सौंप दिया। रेबारियों के साथ चलते हुए भेड़े चराना और सुरक्षा करना पड़ती थी। इसके एवज में उन्हें सिर्फ खाना दिया जाता है, और कोई भेड़ गुम हो जाने पर डांट फटकार और मारपीट भी की जाती थी। यातनाओं से परेशान होकर दोनों बच्चे रेबारियों के चंगुल से निकल कर भाग निकले।

गर्मी के दिनों में रेबारियों के डेरे के काफिले दक्षिण पूर्वी राजस्थान वह सीमावर्ती मध्य प्रदेश के इलाकों में होते हैं। बारिश का मौसम शुरू होते ही रेबारियों के काफिले वापस पश्चिमी राजस्थान की ओर लौट जाते हैं। ऐसे में, साल भर या उस से भी ज्यादा समय तक के लिए रेबारी गरीब परिवारों के बच्चों को रास्तों में आने वाले गांव से अपनी भेड़ों की देखभाल करने और भेड़ों के झुंड को चराने के लिए उनके परिजनों से कुछ भेड़ों की एवज या रुपयों बदले उधार पर ले लेते हैं।