कार्यक्रम में जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि संविधान में समानता का अधिकार केवल कागज़ों पर नहीं, बल्कि व्यवहारिक रूप में भी दिखना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि पहले भी संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का मुद्दा उठाया गया, मगर इसे कभी लागू नहीं किया जा सका। हालांकि, इस बार परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने की शर्त पर लागू किया जा रहा है।
पुलवामा से पीडीपी विधायक ने एक्स पर पोस्ट में कहा, ‘हम आरक्षण नीतियों को तर्कसंगत और निष्पक्ष बनाने की मांग में युवाओं के साथ खड़े होने के रूहुल्ला के फैसले का तहे दिल से स्वागत करते हैं।’