क्या है SEBC कैटिगरी, जिसके लिए इस राज्य में छात्रों को मिलेगा सवा 11 पर्सेंट आरक्षण
अब यह रिजर्वेशन सरकारी नौकरियों में तो मिलता था, लेकिन उच्च शिक्षण संस्थानों में यह लागू नहीं था। इसकी मांग लंबे समय से की जाती रही है। हालांकि अब भी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले में यह लागू नहीं होगा।

ओडिशा में अब SEBC कैटिगरी को उच्च शिक्षण संस्थानों में 11.25 फीसदी का आरक्षण दिया जाएगा। बुधवार को सीएम मोहन मांझी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में इस फैसले पर मुहर लगी। इसके तहत सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों को सरकारी एवं सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया जाएगा। अब यह रिजर्वेशन सरकारी नौकरियों में तो मिलता था, लेकिन उच्च शिक्षण संस्थानों में यह लागू नहीं था। इसकी मांग लंबे समय से की जाती रही है। हालांकि अब भी मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले में यह लागू नहीं होगा।
मोहन मांझी ने कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि इसे नए अकादमिक सत्र यानी इसी साल से लागू किया जाएगा। इस आरक्षण को सभी सरकारी विश्वविद्यालयों और सरकारी सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों में लागू किया जाएगा। टीचर ट्रेनिंग कोर्स और लॉ की पढ़ाई में भी यह कोटा मिलेगा। दरअसल ओडिशा में SEBC उसी वर्ग को कहा जाता है, जिसे केंद्र और अन्य राज्यों की आरक्षण सूची में OBC बताया गया है। दरअसल ओडिशा में जनजाति आबादी की बहुलता है और ओबीसी की जनसंख्या अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है। इसके चलते यहां मुख्य प्राथमिकता ST और SC रिजर्वेशन को दी जाती रही है।
ओडिशा में ओबीसी की राजनीतिक गोलबंदी भी उस तरह की नहीं है, जैसे यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दिखती है। ओडिशा में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में ऐसी कई जातियों को शामिल किया गया है, जिनका प्रतिनिधित्व नौकरियों में कम रहा है। इस फैसले की केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी सराहना की और कहा कि यह लंबे समय से लंबित था। इसे और पहले ही होना चाहिए था। अब ओडिशा में शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण बढ़कर 50 फीसदी हो गया है, जो अब तक करीब 39 पर्सेंट ही था।
अब शैक्षणिक संस्थानों में 22.5 फीसदी एसटी यानी अनुसूचित जनजाति को आरक्षण मिलेगा। इसके अलावा 16.25 फीसदी आरक्षण एससी वर्ग को दिया जाएगा। सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग को अब 11.25 फीसदी कोटा मिलेगा। इन सभी को मिला लें तो 50 फीसदी होता है, जो सुप्रीम कोर्ट की ओर से जातिगत आरक्षण के लिए तय की गई लिमिट के बराबर है।