उदर की आग बुझाऊं तो वर्दीवालों से कैसे बच पाऊं
शहर में हजारों ई-रिक्शा चालक अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए सड़कों पर निकलते हैं। लेकिन उनके लिए यह सफर आसान नहीं है। नगर निगम, ट्रैफिक पुलिस और रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स की सख्ती ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है।
ई-रिक्शा चालकों का कहना है कि प्रशासन ने न तो उनके लिए कोई स्थायी स्टैंड बनाया और न ही कोई रूट निर्धारण किया। इसके बावजूद उन्हें जबरन परेशान किया जाता है। गाड़ियों को जब्त कर लिया जाता है। हजारों रुपए के चालान थमा दिए जाते हैं और कभी-कभी तो उनके साथ मारपीट भी की जाती है।
अलीगढ़। शहर में ऑटो, टैक्सी और बसों के लिए स्टैंड की व्यवस्था है। लेकिन ई-रिक्शा चालकों के लिए किसी भी स्थान पर कोई स्थायी स्टैंड नहीं है। चालक जहां भी गाड़ी खड़ी करते हैं, वहां से उन्हें खदेड़ दिया जाता है। रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और मुख्य बाजारों में सवारी लेने के लिए खड़े होने पर पुलिस कार्रवाई करती है। ट्रैफिक पुलिस और नगर निगम उन्हें अवैध संचालन के नाम पर परेशान करता है। ई-रिक्शा चालक पहले ही महंगाई और बढ़ते खर्चों से परेशान हैं। लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी समस्या बेवजह चालान और गाड़ियों की जब्ती बन गई है।
हिन्दुस्तान समाचार पत्र की टीम ने शनिवार को बोले अलीगढ़ अभियान के तहत ई-रिक्शा चालकों से संवाद किया। इस दौरान ई-रिक्शा चालकों ने बताया कि ट्रैफिक पुलिस और नगर निगम बिना किसी पूर्व सूचना के हजारों रुपए का चालान काट देते हैं। कई चालकों की गाड़ियां थाने में जब्त कर ली जाती हैं। जिन्हें छुड़ाने के लिए उन्हें अतिरिक्त पैसे देने पड़ते हैं। चालकों का आरोप है कि पुलिसकर्मी और निगम के अधिकारी अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं और कभी-कभी मारपीट तक कर देते हैं।रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर यात्रियों को ले जाने के लिए ई-रिक्शा चालकों को अक्सर वहां खड़ा होना पड़ता है। लेकिन रेलवे स्टेशन के बाहर आरपीएफ के जवान उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर पकड़ते हैं। चालकों का कहना है कि आरपीएफ गाड़ियों को जब्त कर भारी जुर्माना वसूलती है। उनका कहना है कि अगर वह सवारी नहीं बैठाएंगे, तो कमाएंगे कैसे?
तय रूट का न होना से कार्रवाई का डर
ई-रिक्शा चालकों के लिए शहर में कोई निश्चित रूट नहीं बनाया गया है। हालांकि कागजों में इनके लिए कई बार रूट निर्धारित हुए। अलग-अलग रंग के ई-रिक्शा अलग-अलग रूटों पर चलाने का प्रस्ताव तैयार हुए। लेकिन, आज तक इसका पालन नहीं कराया गया। प्रशासन कई बार योजना बनाने की बात कह चुका है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। चालकों ने बताया कि बिना तय रूट के वे जहां भी जाते हैं, वहीं से उन्हें भगा दिया जाता है। ऑटो-टैक्सी वालों की मनमानी के चलते ई-रिक्शा चालकों को जगह नहीं मिलती। इससे परिवार पर गहरा संकट, बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ रहा है। कहा कि ई-रिक्शा चालक अपनी दैनिक कमाई पर निर्भर होते हैं। लेकिन जब गाड़ियां जब्त हो जाती हैं या भारी चालान भरने पड़ते हैं, तो उनके परिवारों की आजीविका प्रभावित होती है। कई चालकों का कहना है कि वे अपने बच्चों की स्कूल फीस तक नहीं भर पा रहे। घर चलाने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है। कई बार पुलिस द्वारा रिक्शा जब्त करने के बाद उन्हें घर खाली करने तक की नौबत आ जाती है।
ई-रिक्शा चालकों की मुख्य मांग
-नगर निगम द्वारा स्थायी स्टैंड बनाए जाएं। जिससे चालकों को अनावश्यक रूप से न हटाया जाए।
-शहर में ई-रिक्शा के लिए निश्चित रूट तय किए जाएं। जिससे उन्हें जगह-जगह कार्रवाई का सामना न करना पड़े।
-बिना किसी कारण किए जाने वाले चालानों पर रोक लगे और पहले उचित नोटिस दिया जाए।
-पुलिस और आरपीएफ द्वारा की जाने वाली जबरन कार्रवाई और मारपीट को रोका जाए।
-सरकार ई-रिक्शा चालकों के लिए कोई सुरक्षा योजना लाए, जिससे वे बिना डर अपना काम कर सकें।
प्रशासन की अनदेखी कब तक
ई-रिक्शा चालक शहर की परिवहन व्यवस्था का अहम हिस्सा बन चुके हैं। वे पर्यावरण के लिए फायदेमंद और कम किराए में सवारी देने वाले वाहनों का संचालन कर रहे हैं। इसके बावजूद वे प्रशासन की अनदेखी, पुलिस की सख्ती और मनमाने चालानों के शिकार बन रहे हैं। अगर जल्द ही ई-रिक्शा चालकों की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो यह एक बड़ा सामाजिक मुद्दा बन सकता है। सरकार और प्रशासन को इस ओर शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है। जिससे हजारों ई-रिक्शा चालक बिना किसी डर और अवरोध के सम्मानजनक जीवन जी सकें।
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