Pensioners' lives are passing under government's neglect सरकार की उपेक्षा में बीत रही पेंशनर्स की जिंदगी, Aligarh Hindi News - Hindustan
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सरकार की उपेक्षा में बीत रही पेंशनर्स की जिंदगी

अलीगढ़ मंडल के हजारों पेंशनर्स की जिंदगी आजकल सिर्फ सरकारी उपेक्षा की परछाईं में बीत रही है। उम्र के उस मोड़ पर जहां उन्हें राहत, सुविधा और सम्मान की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वहीं उन्हें इलाज, वेतन वृद्धि, पेंशन कटौती और शासनादेशों की अनदेखी जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

Sunil Kumar हिन्दुस्तानSun, 20 April 2025 08:12 PM
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सरकार की उपेक्षा में बीत रही पेंशनर्स की जिंदगी

बोले अलीगढ़ अभियान के तहत हमने मंडल के पेंशनर्स से बात की। उन पेंशनर्स से जो कभी प्रदेश की सेवा का अभिन्न हिस्सा रहे और आज अपनी बारी आने पर सिस्टम की बेरुखी झेल रहे हैं। उनकी पीड़ा सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि सरकार से सवाल हैं। क्या 30-40 साल सेवा के बाद इतना भी हक नहीं कि बुढ़ापे में चैन से जी सकें।

2008 में अलीगढ़ मंडल बना, 2025 आ गया पर अपर निदेशक पेंशन एवं कोषागार कार्यालय आज तक धरातल पर नहीं आया। यह तब है जबकि इस कार्यालय को शासन द्वारा स्वीकृति और बजट दोनों मिल चुके हैं। प्रदेश के अन्य नवगठित मंडलों में यह कार्यालय पहले ही शुरू हो चुका है। यह सिर्फ एक कार्यालय की देरी नहीं। उससे जुड़ी सैकड़ों दिक्कतों की जड़ है। अलीगढ़ के पेंशनर्स को हर आदेश के लिए लखनऊ की राह नापनी पड़ती है। बोले अलीगढ़ अभियान के दौरान मिली प्रतिक्रियाओं में यह सबसे बड़ा और साझा दर्द बनकर उभरा। नेशनल इन्क्रीमेंट, यानी 30 जून या 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले कर्मचारियों को एक वेतन वृद्धि का लाभ, जिसे सरकार ने 2024 में मंजूर किया था। लेकिन बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग में न आदेश का पालन हुआ, न लाभ मिला।

राशिकरण कटौती की लंबी मार

बोले अलीगढ़ अभियान के तहत पेंशनर्स ने बताया कि हाईकोर्ट ने कह दिया कि कटौती 11 साल में खत्म होनी चाहिए। शासन ने भी आदेश पारित किया। फिर क्यों आज भी पेंशनरों की कटौती 15 साल तक खींची जा रही है। पेंशनर्स शोभा शर्मा बताती हैं कि कागज़ पर राहत है, बैंक में नहीं। अधिकारी कहते हैं ऊपर से निर्देश नहीं आया।

चिकित्सा सबसे बड़ी त्रासदी

सरकारी अस्पतालों में पेंशनर्स को पहचानने वाला कोई नहीं। न अलग पर्चा, न काउंटर, न प्राथमिकता। पेंशनर्स वीके गुप्ता बताते हैं कि दवा लेने जाती हैं तो घंटों बैठना पड़ता है। कोई नहीं पूछता कि ये बुजुर्ग कभी देश की सेवा कर चुके हैं। कोरोना से पहले एडीएम की अध्यक्षता में जिला स्तर पर पेंशन अनुश्रवण समिति की बैठकें होती थीं। आज वो भी बंद हैं। समस्याएं हैं, पर सुनवाई नहीं।

बोले पेंशनर्स

जिले में करीब 25 हजार पेंशनर्स हैं। जो अपनी समस्याओं को लेकर परेशान रहते हैं। हर बार कहते हैं कि आदेश आ गया है, बस कार्यवाही होनी है। लेकिन तीन साल से इंतजार करते-करते थक गया हूं।

उदय राज सिंह, अध्यक्ष, सेवानिवृत कर्मचारी एवं शिक्षक पेंशनर एसोसिएशन

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इलाज के लिए लंबी लाइन में खड़ा होना पड़ता है। कोई पूछे कि हम कभी सरकारी सेवा में थे। पहचान तो दिला दो सरकार, पेंशन का नहीं तो इज्जत का हक दो।

देवेंद्र यादव, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, सेवानिवृत कर्मचारी एवं शिक्षक पेंशनर एसोसिएशन

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कटौती खत्म होने का आदेश आए वर्षों हो गए, लेकिन कोषागार में बोलते हैं कि ऊपर से क्लियर नहीं है। हाईकोर्ट का आदेश भी कोई मायने नहीं रखता, तो फिर हम किससे उम्मीद रखें।

रामपाल सिंह

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नेशनल इंक्रीमेंट का मामला तो हर पेंशनर का साझा दुख है। सरकार ने लागू किया, पर विभाग ने अनदेखी की। हमारी उम्र अब लड़ाई की नहीं रही। फिर भी हर अधिकारी से हाथ जोड़कर निवेदन करना पड़ता है।

एस एन शर्मा

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बिल पास कराने के लिए बार-बार ट्रेजरी जाना पड़ता है। हर बार नया बहाना। कहां से लाएं नई रिपोर्ट, कहां से लाएं डॉक्टर की पुरानी रसीदें। बीमारी से पहले सिस्टम ही मार देता है।

रुस्तम सिंह

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सुनते हैं कि शासनादेश आया है, फिर भी भाग-3 और वेरिफिकेशन की मांग करते हैं। बूढ़ी उम्र में तहसील, विभाग और ट्रेजरी के चक्कर लगाना क्या इंसानियत है। ये तो अमानवीय बर्ताव है।

राकेश वर्मा

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जिले में सैकड़ों शिक्षक हैं जो 30 जून को रिटायर हुए। लेकिन एक इंक्रीमेंट नहीं मिला। इसका असर पेंशन पर पड़ा है। कई बार जिलाधिकारी को पत्र लिखा पर अब तक कुछ नहीं हुआ।

पीसी भारद्वाज

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जब पेंशन की फाइल दो महीने तक चुपचाप ट्रेजरी में पड़ी रहे और कोई जवाब न दे, तो क्या करें। क्या अब सरकार हमें नहीं देखती। पेंशनर्स के साथ बहुत ज्यादा परेशानी है।

रेवती सिंह

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चिकित्सा प्रतिपूर्ति के बिल हर बार किसी न किसी वजह से लौटा दिए जाते हैं। अब तो डॉक्टर से सर्टिफिकेट लेने में ही पैसे लग जाते हैं। गरीब पेंशनर आखिर कब तक झेले ये शोषण।

शोभा शर्मा, संयोजक, संयुक्त पेंशनर्स कल्याण समिति उ.प्र.

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पेंशन मिलने के बाद ऐसा लगता था कि अब शांति मिलेगी, लेकिन नहीं। बैंक में घंटों लाइन में लगना पड़ता है। कई बार तो टोकन ही खत्म हो जाते हैं। बुजुर्गों का कोई ख्याल नहीं।

शकुंतला देवी

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पेंशन में वृद्धावस्था वृद्धि की बात खूब होती है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 80 पार करने के बाद भी हमें कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिल रहा। आधार कार्ड में डेट होने के बाद भी अफसर टाल देते हैं।

गंगा प्रसाद

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नोमिनेशन व अन्य कार्यों से लिए भाग दौड़ करनी पड़ती है। भाग 3, तहसील, और तमाम औपचारिकताएं हैं। ये सब वृद्धाओं के लिए तोड़ देने वाला है। इससे निजात मिलना चाहिए।

संजीव गुप्ता

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रोडवेज कर्मचारियों को ना कैशलैश सुविधा मिली, ना आयुष्मान। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाना भी पेंशनर्स की पहुंच से बाहर है। सरकार को चाहिए कि हमें भी आयुष्मान कार्ड से जोड़ दे वरना पेंशन इलाज में ही चली जाएगी।

ओम प्रकाश शर्मा

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नोमिनी बनाने के लिए जो कागज़ी प्रक्रिया है, वो बेहद पेचीदा है। थाने, तहसील और बैंक के चक्कर कटवाते हैं। उम्र में ये दौड़ बहुत भारी पड़ रही है। इन समस्याओं का समाधान होना चाहिए।

राम दास

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जिला अस्पताल में डॉक्टर कहते हैं कि पहले लाइन में लगो, चाहे आप पेंशनर हो या नहीं। हम तो चाहते हैं बस थोड़ा सम्मान, अलग पर्चा और पेंशनर्स काउंटर मिले। जिससे इलाज आसानी से हो सके।

मनमोहन शर्मा

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हर बार कहते हैं कि पेंशनरी लाभ में तदर्थ सेवाएं जोड़ी जाएंगी। पर हकीकत में कभी नहीं होतीं। मेरी तदर्थ सेवा 4 साल की है, जिसका कोई हिसाब नहीं। ये तो अन्याय है।

किशन लाल

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शासनादेश कहता है कि भाग-3 यदि पूर्ण हो और संयुक्त फोटो हो तो दोबारा वेरिफिकेशन की आवश्यकता नहीं। लेकिन कोषागार वाले नहीं मानते। हर बार विभाग से नया कागज मांगते हैं।

ईं. वीके गुप्ता, संरक्षक, संयुक्त पेंशनर्स कल्याण समिति उ.प्र.

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कोरोना काल में पेंशन अनुश्रवण समितियों की बैठकें बंद हो गईं। हम पेंशनर कहां अपनी समस्या रखें। एडीएम साहब बैठते थे, समाधान होता था। अब तो सिर्फ आवेदन जमा होता है, कार्रवाई नहीं होती।

रमेश चंद्र

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इतनी आयु है, लेकिन अभी तक पेंशन में वृद्धावस्था वृद्धि नहीं जोड़ी गई है। बैंक वाले कहते हैं कि जन्मतिथि पर विभागीय पुष्टि चाहिए। आधार कार्ड को ही मान क्यों नहीं लेते।

चंद्रभान सिंह

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जुलाई 2019 से जनवरी 2021 तक जो महंगाई राहत फ्रीज की गई थी, उसका भुगतान अब तक नहीं हुआ है। क्या बुज़ुर्गों की इस बुनियादी राहत को भी टाला जाएगा। ये सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल है।

महेंद्र सिंह

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