बोले अम्बेडकरनगर: स्कूलों-घरों व दफ्तरों में वर्षा का पानी बचे तो बढ़े जलस्तर
Ambedkar-nagar News - अम्बेडकरनगर में पिछले कुछ वर्षों से बारिश न होने के कारण भूगर्भ जलस्तर घट रहा है। जल संचयन के लिए सरकारी भवनों में व्यवस्था है, लेकिन पुराने भवनों और स्कूलों में कोई खास प्रबंध नहीं है। जल दोहन भी बढ़...

अम्बेडकरनगर। बीते कुछ वर्ष से समुचित बारिश न होने से भूगर्भ जलस्तर कम हो रहा है। जलस्तर स्थिर रखने के लिए जल संचयन पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन उसे जमीनी हकीकत देने के लिए गंभीरता नहीं दिखाई जाती है। कलेक्ट्रेट, विकास भवन, जिला अस्पताल, जनपद न्यायालय, जिला पंचायत कार्यालय समेत अन्य सरकारी कार्यालय के भवन की छत पर जल संचयन की समुचित व्यवस्था है। हालांकि जो पुराने सरकारी भवन हैं, उनकी छत पर जल संचयन की व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं, जिले में लगभग 900 तालाब हैं। इनमें से लगभग 300 तालाब ऐसे हैं, जिसमें लंबे समय से पानी नहीं डाला गया है।
इससे जल संचयन के साथ साथ भूगर्भ जलस्तर को बनाए रखने की योजना को तगड़ा झटका लग रहा है। बजट न होने का हवाला देकर ग्राम प्रधान तालाब में पानी डालने से हाथ खड़ा कर देते हैं। समय समय पर संबंधित ग्राम पंचायत के लोग तालाब में पानी डाले जाने की मांग तो करते हैं, लेकिन कोई गंभीरता नहीं दिखाई जाती है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज सिंह कहते हैं कि जिस प्रकार से जलस्तर में कमीं हो रही है, वह भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। जल संचयन को लेकर गंभीरता दिखानी होगी। सिर्फ दावों से कुछ होने वाला नहीं है। सभी सरकारी व गैर सरकारी कार्यालय की छत पर जल संचयन की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके अलावा तालाबों में हमेशा पानी भरा रखना चाहिए। बारिश के पानी को एकत्र करने की भी जिले में कोई बेहतर व्यवस्था नहीं है। इस पर भी जिम्मेदारों को ध्यान देना चाहिए। स्कूल, कॉलेजों में नहीं है बारिश के पानी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था:जिले के ज्यादातर स्कूल व कॉलेजों के भवन की छत पर जल संचयन की कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। ज्यादातर में रेन हार्वेस्टर की व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं, जल संचयन के लिए छात्र-छात्राओं में भी किसी प्रकार का जागरूकता अभियान नहीं चलता है। जिले में 2582 परिषदीय स्कूल हैं, जबकि लगभग 2500 निजी स्कूल व कॉलेज हैं। इनमें से सरकारी स्कूल के जो नए भवन हैं, वहां की छत पर तो जल संचयन की व्यवस्था है, लेकिन जो पुराने भवन हैं, वहां जल संचयन का प्रबंध नहीं किया गया है। इसी प्रकार से ज्यादातर निजी स्कूल व कॉलेज के भवन की छत पर बारिश के पानी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं, स्कूल व कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को जल संचयन के प्रति जागरूक करने की योजना भी महज औपचारिकता तक ही सीमित है। इसी का नतीजा है कि बारिश के पानी को सुरक्षित रखने के प्रति गंभीरता आम लोगों में नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता मेहदी रजा कहते हैं कि स्कूल व कॉलेजों में कम से कम एक कक्षा जल संरक्षण का चलना चाहिए। छात्र-छात्राएं जब जल संरक्षण को लेकर गंभीर होंगे तो जागरूकता का दायरा भी बढ़ेगा। जल दोहन से गिर रहा भूगर्भ जलस्तर:तेजी से गिरते जलस्तर का एक बड़ा कारण धड़ल्ले से होता जल दोहन है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में साधन संपन्न लोगों ने सबमर्सिबल लगा रखा है। इसके अलावा ज्यादातर ने हैंडपंप से टुल्लू पंप लगाया है। ऐसे लोग बगैर सोचे समझे पानी का प्रयोग करते हैं। अनावश्यक पानी बहता रहता है। जल संचयन का एक बड़ा माध्यम कुआं हुआ करता था। हालांकि आधुनिकता के इस दौर में ज्यादातर कुओं का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। यदि कहीं है भी, तो देखरेख के अभाव में वह पूरी तरह से निष्प्रयोज्य है। इससे भी जल संचयन को तगड़ा झटका लग रहा है। इसके अलावा शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल दोहन बहुत ही तेजी से होता है। इस पर अंकुश लगाने में जिम्मेदार पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं। जल दोहन रोकने के लिए किसी प्रकार का अभियान भी नहीं चलाया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता रवींद्र कुमार कहते हैं कि जिस प्रकार से तेजी से जल दोहन किया जा रहा है, आने वाले समय में उसका परिणाम घातक होगा। एक तो समुचित बारिश नहीं हो रही है, तो वहीं तेजी से जल दोहन किया जा रहा है। इसका प्रतिकूल प्रभाव जलस्तर पर पड़ रहा है। कहा कि यदि समय रहते इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया, तो पेयजल की बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। विशेष अभियान चलें तो जागरूक हों लोग:तेजी से गिरते जलस्तर का एक बड़ा कारण धड़ल्ले से होता जल दोहन है। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में साधन संपन्न लोगों ने सबमर्सिबल लगा रखा है। इसके अलावा ज्यादातर ने हैंडपंप से टुल्लू पंप लगाया है। ऐसे लोग बगैर सोचे समझे पानी का प्रयोग करते हैं। अनावश्यक पानी बहता रहता है। जल संचयन का एक बड़ा माध्यम कुआं हुआ करता था। हालांकि आधुनिकता के इस दौर में ज्यादातर कुओं का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। यदि कहीं है भी, तो देखरेख के अभाव में वह पूरी तरह से निष्प्रयोज्य है। इससे भी जल संचयन को तगड़ा झटका लग रहा है। इसके अलावा शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल दोहन बहुत ही तेजी से होता है। इस पर अंकुश लगाने में जिम्मेदार पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं। जल दोहन रोकने के लिए किसी प्रकार का अभियान भी नहीं चलाया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ता रवींद्र कुमार कहते हैं कि जिस प्रकार से तेजी से जल दोहन किया जा रहा है, आने वाले समय में उसका परिणाम घातक होगा। एक तो समुचित बारिश नहीं हो रही है, तो वहीं तेजी से जल दोहन किया जा रहा है। इसका प्रतिकूल प्रभाव जलस्तर पर पड़ रहा है। कहा कि यदि समय रहते इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया, तो पेयजल की बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। बोले जिम्मेदार: इस बारे में एडीएम डॉ सदानंद गुप्ता का कहना है कि जल संरक्षण को लेकर सभी जरूर प्रयास किए जाते हैं। इस संबंध में अभियान चलाकर लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। लोगों को भी चाहिए कि वे भूगर्भ जलस्तर बनाए रखने के लिए खुद भी जागरूक हों और दूसरों को भी जागरूक करें।
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