बोले अयोध्या:भारी बस्तों से दबे बच्चे कराह रहे, इन्हें बचाए
Ayodhya News - अयोध्या में विद्यार्थियों पर बस्ते का बोझ बढ़ता जा रहा है, जो उनके स्वाभाविक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। एनसीईआरटी की पुस्तकों की संख्या में वृद्धि और नए विषयों की किताबों ने बच्चों और...

अयोध्या। यर्तमान समय में विद्यार्थी पर बस्ते का बोझ बढ़ता चला जा रहा है। अब यह बोझ उनकी सहनशक्ति से बाहर हो गया है। बस्ते के बढ़ते बोझ ने बालक के स्वाभाविक विकास पर बड़ा प्रतिकूल प्रभाव डाला है। पुस्तकों की संख्या इतनी होती जा रही है कि उनको सँभाल पाना उनके लिए कठिन हो गया है। यद्यपि राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद् ने इस बढ़ते बोझ के प्रति कई बार अपनी चिंता प्रकट की है पर उनकी कथनी और करनी में अंतर साफ जाहिर होता है। एनसीईआरटी की पुस्तकों की संख्या हर वर्ष बढ़ जाती है। पहले पांच-छह विषयों की एक किताब होती थी, लेकिन वर्तमान में एक ही विषय की 3-4 किताबें हो गई हैं। सामाजिक विज्ञान विषय की ही पांच-छह पुस्तके हैं। विज्ञान की कई पुस्तकें हैं। पुस्तकों की मोटाई भी बढ़ रही है। हर साल एक-दो नया विषय भी जुड़ जाता है। कभी आपदा प्रबंधन तो कभी नैतिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, कम्प्यूटर शिक्षा, योग आदि विषय की किताबें बढ़ने न केवल बच्चों पर पढ़ाई का दबाव बढ़ा है, बल्कि अभिभावकों पर भी क्षमता से अधिक महंगाई किताबें खरीदने से आर्थिक बोझा पड़ रहा है। इतने विषयों की इतनी सारी पुस्तकें बच्चों के बस्ते के भार को बढ़ा ही तो रही हैं। फिर इन सभी विषयों की कापियां भी इस बच्चों की कमर को तोड़ रही हैं। आदर्शवादी बातें करने वाले तो बहुत लोग हैं, पर व्यावहारिकता की ओर लोगों को ध्यान नहीं जाता। बच्चों के बस्ते का बोझ तभी कम होगा जब समग्र रूप से सोचा जाएगा और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। आयुष कक्षा एक में पढ़ता है। उसके बैग का वजन आठ किलो से अधिक है। स्कूल बैग उठाकर चलने में वह हांफने लगता है, लिहाजा उनके पिता दयाशंकर अपनी बाइक से रोजाना स्कूल तक छोड़ने जाते हैं फिर अपने सभी कामकाज छोड़कर वापस स्कूल से घर लाते हैं। यह किसी एक बच्चे की नहीं, बल्कि स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चों की यही समस्या है।
बच्चों के वजन का 10 प्रतिशत बोझ स्कूल बैग का होना चाहिए : बच्चों के अपने वजन का 10 प्रतिशत ही बोझा लादना चाहिए। साल भर में 200 दिन तो ही स्कूल जाते हैं। अगर रोज 20 किलो वजन लेकर चलते हैं तो और 200 दिन तक स्कूल आ जा रहे हैं तो 200 कुंतल के करीब वजन एक बच्चा ढोता है। इससे बच्चों के स्पाइनल कार्ड पर असर पड़ता है। सिरदर्द होता है जिससे उनको पढ़ाई में मन नहीं लगता है।
बच्चों का औसत वजन और बैग का भार: पांचवीं तक के बच्चे का वजन करीब 25 किलो तो स्कूल बैग का औसत वजन 5-7 किलो होता है। पांचवीं से आठवीं तक के बच्चे का वजन 35 से 45 किलो होता है और स्कूल बैग का वजन 7-10 किलो का होता है। आठवें से 12वीं तक 17 साल तक के बच्चे का वजन 55 से 70 किलो तो स्कूल बैग का वजन 12 से 15 किलो का होता है।
क्लास से गेट तक पहुंचने में छूट जाता है बच्चों का पसीना
छुट्टी में क्लास से स्कूल गेट तक पहुंचने में ही बच्चों के पसीने छूट जाते हैं। खास कर अप्रैल की चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी में बच्चे स्कूल का भारी भरकम बैग लादे हुए हैरान और परेशान रहते हैं। मजबूरी ये है कि बच्चों को पूरी किताब-कॉपियों के साथ स्कूल आना-जाना पड़ता है। चिकित्सकों की मानें तो स्कूल में पढ़ने वाले 60 फीसद बच्चे जोड़ों के दर्द, 30 फीसद बच्चे कमर दर्द और 58 फीसद बच्चे अन्य हड्डी रोगों से पीड़ित हैं। लेकिन स्कूलों की प्रतिस्पर्धा सिर्फ सिलेबस बढ़ाने में है। नौनिहालों की तकलीफ समझने को कोई तैयार नहीं। स्थिति यह है कि चार से छह साल तक के बच्चों के बस्तों का वजन पाच किलो से तो कम है ही नहीं। नतीजतन, बच्चे घर पहुंचते ही बस्ते को कोने में रखने के साथ बिस्तर पर पसर जाते हैं।
बच्चों का वजन पर लम्बाई पर असर : फिजीशियन डॉ. आशुतोष सिंह कहते हैं कि बच्चों का वजह उनकी हाइट पर निर्भर करता है। छोटे बच्चों पर बस्ते का वजन अधिक होने से बच्चों की ग्रोथ पर असर पड़ता है। आवश्यकता यह है कि स्कूल में ही कापी किताब रखी जाएं। इस समय लगभग हर स्कूल में स्मार्ट क्लास चल रही हैं। स्कूलों में बच्चों को डिजिटल संसाधनों के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। ऐसे बैग में बच्चों को किताबें भरकर जाने की अनिवार्य को समाप्त कर दिये जाने की व्यवस्था की जानी जिससे बच्चों पर अतिरिक्त भार न पड़े।
बोले जिम्मेदार
स्कूलों में बच्चों पर बढ़ते स्कूल बैग का बोझ बेहद चिंताजनक हैं। तय मानक के अनुसार ही बस्ते का वजन होना चाहिए। खासकर छोटे बच्चों को न्यूनतम किताबें रखनी चाहिए। पढ़ाई के नाम पर व्यापार न करें। नोट बुक और हैंडबुक के नाम पर अनावश्यक बोझा अभिभावकों पर न डालें। हम लोग अभियान चलाकर इसे चेक करेंगे, नियमों का पालन न होने पर कड़ी कार्रवाई करेंगे।
योगेन्द्र कुमार सिंह, संयुक्त शिक्षा निदेशक, अयोध्या मण्डल
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