बोले अयोध्या:सरकारी सुविधाएं मिले तो खिल जाएंगे आम के बगीचे
Ayodhya News - नम्बर गेम- 300 एकड़ में फैला है सोहावल का मैंगो बेल्ट 120 किसान करते है

नम्बर गेम- 300 एकड़ में फैला है सोहावल का मैंगो बेल्ट
120 किसान करते है मैंगो बेल्ट में खेती
सोहावल,संवाददाता।एक समय में प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मलीहाबाद के दशहरी आम का बोलबाला देश से लेकर विदेश तक होता रहा है। लेकिन सोहावल क्षेत्र के किसानों ने आम की बागवानी इस कदर शुरू किया कि दो दशक के बीच चारों तरफ सैकड़ों हेक्टेयर में आम के बाग ही नजर आने लगे और यहां के दशहरी, लंगड़ा, सफेदा, चोसा की हनक बिहार से होते हुए पश्चिम बंगाल तक बढ़ गई। बढ़ते उत्पादन और बड़े-बड़े स्वादिष्ट दशहरी आम गुणवत्ता को लेकर कई प्रदेशों में अपनी पहचान और छाप छोड़ने लगे। जिसके बाद बढ़ते बागों की संख्या को देखते हुए सोहावल तहसील क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवों को मिलाकर ग्राम सालारपुर से लेकर रुदौली सीमा क्षेत्र लोहियापुर तक फल पट्टी एरिया घोषित कर दिया गया। देखते ही देखते फलों के राजा आम ने अपने बाग मालिकों को भी राजा बना दिया। कुछ वर्षों में आम के बागवान किसान, बड़े काश्तकार लग्जरी जीवन व्यतीत करने लगे और क्षेत्र में सोहावल के किसानों की चर्चा होने लगी। आज भी क्षेत्र में ऐसे किसान है। जिनके पास 70 से 80 बीघे आम की बाग है। ग्रामीणों का कहना कि सोहावल क्षेत्र में 80 के दशक में चकबंदी हुई थी। इसके बाद यहां के किसानों ने आम की बागवानी इस कदर शुरू किया। सोहावल क्षेत्र मैंगो बेल्ट एरिया घोषित हो गया। चर्चा तो यहां तक कि होती है कि मैंगो बेल्ट होने की वजह से अब यहां चकबंदी नहीं होगी। लेकिन मैंगो बेल्ट के हालात अब कुछ बदलने लगे है। देखते ही देखते बाग मालिक पेड़ो को बेंच रहे है और धीरे धीरे बागों का सफाया भी होने लगा है।
सोहावल क्षेत्र के आम किसान सरकारी सहायता मिलने की जरुरत बताते है। सीजन पर मिट्टी की जांच, सरकार की तरफ से अच्छी कीटनाशक दवाओं की व्यवस्था, कृषि यंत्र पर सब्सिडी व फलों की स्थानीय विशेष मंडी की स्थापना आम के बगीचों के मालिकों की प्रमुख मांगो में से एक है। आम के उत्पादन में सरकारी सहायता का समावेश हो, समय-समय पर अधिक पैदावार के लिए जागरुकता व सलाह मिलती रहे तो आम के बागों में और निखार आ जाएगा। अत्याधुनिकता व मशीनों की उपलब्धता आम की पैदावार को बढ़ायेगी। नयी प्रजातियों के बारें जागरुकता व उनके उत्पादन को लेकर मिलने वाली सलाह व प्रशिक्षण कृषको को समृद्ध करने के राह पर तेजी से अग्रसर करेगा।
भूमि की कीमते बढ़ने से मैंगो बेल्ट पर दिखने लगे है ग्रहण के आसार
- राममंदिर परिक्षेत्र परिधि के अंदर आने के कारण जिस तरह जिले में भूमि की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया है। आरोप है कि सोहावल फल पट्टी क्षेत्र के बड़ी-बड़ी बागों का एग्रीमेंट कराकर भूमाफियाओं ने पेड़ों का सफाया करना शुरू कर दिया है। देखते ही देखते कई एकड़ में फैली बाग प्लाटिंग का स्वरूप लेने लगी है। शहर सहित आस पास के लोग हाईवे के किनारे जमीन खरीदकर मकान बनाने लगे है। जानकारों का कहना है कि सालारपुर से लेकर लोहियापुल तक हाईवे के किनारे की बागों को बाग मालिक धीरे धीरे बेंच रहे है। अब आम के फलों के उत्पादन से ज्यादा जमीनों की खरीद बिक्री किसानों को करोड़ पति बना रही है। वहीं बाग मालिकों से जानकारी लेने पर वह भी एक दर्द भरी अपनी दास्तां बयां करने को मजबूर है। करीब 80 बीघा बाग मालिक हाजीपुर बरसेंडी निवासी पिंटू सिंह,करीब 60 बीघा बाग मालिक रघुवीर प्रताप सिंह, 50 बीघा के मालिक संतोष सिंह, 48 बीघा बाग मालिक कुंअर बहादुर सिंह आदि किसानों का कहना है कि आम की बागों में गुंडी, गुच्छा,हॉपर रोग लगने लगे है। दशक भर पहले लगाए वृक्ष तेजी से सूख रहे है। फल उत्पादन के लिए दवाओं का छिड़काव कई बार करना पड़ता है। निजी दुकानदार मंहगे दामों में कीटनाशक दवा देते है। सरकार की तरफ से कोई दवा की दुकान नहीं है। दवाओं के छिड़काव के लिए कृषि यंत्र मुहैय्या नहीं हो रहा है। डुप्लीकेट दवा के छिड़काव से पेड़ों पर असर पड़ता है और पेड़ सूखने लगते है। बागों में लगने वाले रोगों की जांच के लिए वैज्ञानिकों की उपलब्धता नहीं है। उद्यान विभाग व कृषि विभाग के अधिकारियों को किसानों और बाग मालिकों के बीच बैठक कर मृदा परीक्षण सहित पेड़ो के रखरखाव के लिए जागरूक करना चाहिए। वह भी समय पर नहीं हो पाता है। पुराने पेड़ो की छटाई करवाकर नई डाल पेड़ो से निकलने की व्यवस्था नहीं है। फलों के उत्पादन में कमी देख किसान पेड़ बेंच देते है। फलों का उचित दाम देने के लिए फलमंडी नहीं है। आम के बाग मालिकों की बागों से फलों को तोड़कर बेचने वाले व्यापारी मो. असलम कहते है कि आम का उचित रेट बलिया, देवरिया,गोरखपुर, मऊ, बनारस आदि शहरों में मिलता है। वहां जाकर फल बेचने पर भाड़ा अधिक लगता है। मुंहमांगी कीमत यहां नहीं मिलती। इसलिए उत्पादन और खर्च के हिसाब से बाग मालिकों से आम की खरीददारी व्यापारी करते है। जिले में आम का उचित रेट नहीं मिलता। मंडी में बिचौलियों का भी सहारा लेना पड़ता है।
महंगे दामों में बिकने वाले आमो के प्रजाति की उपलब्धता नहीं
- सोहावल के बागवानो कि माने तो गौड़जीत, हापुस, तोतापरी, हाथीझुल्ला, मालदा, जौहरी सफेदा, हुस्नआरा, मियाजाकी जैसे महंगे कीमतों बिकने वाले आमो की प्रजाति वन नर्सरियों में नहीं है। बागवान रघुवीर प्रताप सिंह उर्फ बब्बन सिंह कहते कि मियाजाकी की कीमत जहां लाखों रूपये किलो है। तो वहीं करीब 18 से दो हजार रुपए दर्जन हापुस आदि जैसे आमों कीमत है। जलवायु में दिनों दिन हो रहे परिवर्तन और आम के उत्पादन में लगने वाले खर्च के हिसाब से दशहरी आमों की कीमतों में उछाल नहीं आ रहा है। जबकि सिंचाई के संसाधन, उर्वरक, कीटनाशक, बागों में बरसात का पानी रोकने के लिए मेढ़बंदी, मिट्टी की जांच, छुट्टा जानवरों से आम के फल और बौर के सुरक्षा को लेकर सरकार को पहल करनी चाहिए। उद्यान और कृषि विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को समय समय पर बागों की निगरानी करनी चाहिए। सरकारी सुविधाएं मुहैय्या नहीं होने की वजह से आम की बागवानी की तरफ किसानों का मोह धीरे धीरे भंग होता जा रहा है।
बोले बागवान
आम की बागों की सुरक्षा और फलों के उत्पादन की तरफ उद्यान विभाग ठीक तरह से नहीं ध्यान दे रहा है। किसानों को आम के बगीचों के प्रति प्रोत्साहित किया जाए। तो नए किसान भी आम की बाग का रोपण करेंगे। वन विभाग भी फलदाई वृक्षों का रोपण कम कर रहा है।
-हरिश्चन्द्र सिंह
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पुराने पेड़ो में फल उत्पादन कम हो रहे है। पेड़ों के डाल की छटाई करने पर नया कल्ला निकलता है। जो आगे चलकर विकसित होता है और इसमें फल अधिक लगते है। लेकिन पेड़ो की छटाई के दौरान नए कल्ला निकलने के लिए दवा और तकनीक की जानकारी उद्यान विभाग को देनी चाहिए।
-अन्नू सिंह
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दवा, खाद एवं कृषि यंत्र पर सरकार को अनुदान देना चाहिए। महंगे रेट पर उर्वरक की खरीदारी और संसाधन उपलब्ध करने से फल उत्पादन में अधिक खर्च आ रहा है। जिसकी वजह से बागवान आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। सरकार को इसकी तरफ ध्यान देना चाहिए।
-बब्बू सिंह
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आम के फलों की सुरक्षा के लिए दिन रात जागना पड़ता है। बैरिकेटिंग करवाना महंगा साबित होता है। इसलिए बैरिकेटिंग पर सरकार को अनुदान देना चाहिए और आवारा पशुओं की धड़पकड़ होनी चाहिए। जिससे फलों को सुरक्षा मिल सके।
रामकुमार शर्मा
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देवरिया, बलिया, गोरखपुर फल बिक्री के लिए जा रहा है। नजदीक में मंडी होनी चाहिए। जो आम के फलों का उचित मूल्य निर्धारित करें। जिससे बाग के मालिक के लाभ में बढ़ोत्तरी हो। इससे फलों की खेती का अनुसरण दूसरे भी करेंगे।
- सुनील सिंह
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आम के पेड़ों में फलों के अधिक उत्पादन के लिए व्यापारी उल्टी सीधी दवा डालते हैं। जिसका असर पेड़ो पर जाता है। पेड़ सूखने लगते है। जबकि मिट्टी की जांच और रोगों की रोकथाम के लिए विशेषज्ञ नियुक्त होना चाहिए।
-संतोष कुमार सिंह
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क्षेत्र में बंदरों का प्रकोप ज्यादा बढ़ गया है। आम हो या अमरूद, केला हर प्रकार के फलों को तोड़कर बंदर खा जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहे बंदरों के प्रकोप पर वन विभाग को ध्यान देना चाहिए।
वीर बहादुर सिंह
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आम के फलों की खरीदारी करने वाले व्यापारी तमाम तरह के खर्च की बात कर बागवानों को उचित मूल्य नहीं दे रहे हैं। ऐसी मंडी की स्थापना हो। जहां फलों को उचित मूल्य में खरीदकर बाहर भेजा जाए। जिससे व्यापारी और बागवान को अच्छा लाभ मिले।
-गिरीश सिंह
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साल 2016 में मनरेगा के तहत बागों की मेढ़बंदी होती थी। अब वह बंद हो गई है। सरकार को मनरेगा के तहत बागों की मेढ़बंदी करवाना चाहिए। जिससे बरसात का पानी बागों में रुके और जलवायु को स्थिरता मिले।
- शिवम सिंह
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छुट्टा जानवरों के लिए सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। बाग में पहुंचकर नीलगाय और गोवंश मवेशी बौर और फलों को खा लेते हैं। मिट्टी के जांच के लिए उद्यान अधीक्षक को प्रार्थना पत्र दिया। कोई जांच नहीं हुई। मिट्टी में कॉपर जिंक जैसे मल्टी प्लस तत्व खत्म होते जा रहे हैं। जिससे फलों के उत्पादन में कमी आ रही है।
-रघुवीर प्रताप सिंह
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फल उत्पादन के दौरान आम के वृक्षों में भुण्डा, गुच्छा, हापस, मकरोरा जैसे रोग लगते हैं। जिसकी दवा निजी कीटनाशक दुकानों पर मिलती है। सरकार की तरफ कीटनाशक दवाओं की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। रोग ग्रसित पेड़ों से अच्छे फलों का उत्पादन नहीं होता।
-पिंटू सिंह
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जिले में आम का उचित मूल्य नहीं मिलता है। जबकि इसकी बिक्री के लिए बिचौलियों को सहारा लेना पड़ता है। सरकार कोई ऐसी व्यवस्था बनाए। जिससे स्थानीय मंडी में फलों की सही कीमत मिले।
-मो. असलम
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शिकायतें-
1. सरकार की तरफ से नहीं है कीटनाशक की व्यवस्था
2. प्रार्थना पत्र लिखने के बाद भी नहीं होती मिट्टी की जांच
3. आवारा पशुओं से बाग को होता है नुकसान
4. बिचौलियों की वजह से नहीं मिलती है सही कीमत
5. मेढ़बंदी न होने की वजह से होती है दिक्कतें
सुझाव--
1. दवा, खाद व कृषियंत्र पर मिले सब्सिडी
2. फलों को बेचने के लिए स्थानीय विशेष मंडी की हो व्यवस्था
3. सस्ते दर पर सरकार कीटनाशक की करें व्यवस्था
4. उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण के साथ चलाए जाए जागरुकता कार्यक्रम
5. फलों की नई प्रजातियों की बाग मालिकों को दी जाए जानकारी
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प्रस्तुति- राजेन्द्र तिवारी
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