बोले अयोध्या:यहिला होने के नाते कामकाज में अतिरिक्त सुविधाओं की दरकार
Ayodhya News - अयोध्या में महिलाएं वकालत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। कोर्ट और कचहरी में बैठने, शौचालय और विश्राम के लिए उचित...

अयोध्या। वकालत की पढ़ाई कर महिलाएं न केवल न्यायालय के उच्च पदों पर पहुंच रहीं हैं बल्कि आमजन और आधी आबादी के शोषण संबंधित मामलों में उनकी प्रभावी पैरवी कर कानून की मदद से न्याय दिलाने का काम भी कर रहीं हैं। समाजिक संरचना और व्यवस्था में बदलाव के साथ महिलाओं ने वकालत पेशे में कदम बढ़ाया है और दिनों-दिन इनकी तादात में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। कुछ दशक पूर्व तक जहां महिला अधिवक्ताओं की मौजूदगी केवल शीर्ष अदालतों तक सीमित थी,वहीं अब जिला कचहरी से लेकर तहसील और ग्राम न्ययालयों में भी महिला अधिवक्ताओं की सशक्त मौजूदगी देखी जा रही है।
इतना सब होने के बावजूद अभी वकालत पेशे में पुरुषों के सापेक्ष इनकी तादात काफी कम है। जिला कचहरी से लेकर तहसील तक महिला अधिवक्ता दिखने लगीं हैं। चार-छह तख्तों के बीच एक न एक महिला अधिवक्ता अपने मुवक्किल की फाइल पढ़ती अथवा पीड़ित से वार्तालाप करते दिख जाती है। कानून के हिसाब से भले ही महिला अधिवक्ताओं को पुरुष के बराबर का दर्जा मिला हुआ है लेकिन महिला होने के नाते उनको तमाम व्यवस्थाओं में सरकारी अथवा सांगठनिक संरक्षण की दरकार रहती है। इसी कारण चुनाव में महिलओं को आरक्षण दिया गया है और बार एसोसिएशन फ़ैजाबाद में भी उनको आरक्षण मिला हुआ है। बार एसोसिएशसन के दो पद महिला अधिवक्ताओं के लिए आरक्षित हैं। इसी तरह उनको व्यवस्था में भी प्राथमिकता अथवा संरक्षण की दरकार है। हालांकि महिला अधिवक्ताओं को अभी व्यवस्थाओं में अपेक्षित भागीदारी नहीं मिल पाया है, इसका व्यवहारिक कारण उनकी तादात का कम होना माना जा रहा है। सरकारी विभागों और व्यवस्थाओं की तरह महिला अधिवक्ताओं को अभी अपेक्षित अतिरिक्त सुविधा हासिल नहीं हो पाई है। महिला अधिवक्ताओं की सबसे बड़ी समस्या उनकी निजता को देखते हुए अलग से कक्ष की है, जिसके लिए पूर्व में बार एसोसिएशन अध्यक्ष से मांग भी की गई थी, लेकिन की यह मांग अभी पूरी नहीं हो पाई है। कचहरी में महिला अधिवक्ताओं के लिए अलग से शौचालय और टॉयलेट होने की बात कही जा रही है लेकिन महिला अधिवक्ताओं का आरोप है कि यह सब सामान्य व्यवस्था के तहत किया गया है और नाकाफी है। साथ ही महिला अधिवक्ता होने के नाते अभी ऐसी कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं हो पाई है। हाल यह है कि दिनभर कचहरी में रहना है लेकिन बैठने के लिए न तो सुव्यस्थित कुर्सी-मेज है और न ही समुचित शेड की व्यवस्था। महिला अधिवक्ताओं का कहना है कि बार एसोसिएशन की ओर से एक पंजीकृत अधिवक्ता को मिलने वाली सुविधा और सहूलियत तो उनको भी हासिल है, लेकिन अभी सुविधाओं और सहूलियतों का विस्तार नहीं हो पाया है,जिसके कारण सुविधाओं और व्यवस्थाओं पर ज्यादातर पुराने लोग काबिज हैं। कुल पंजीकृत अधिवक्ताओं की संख्या के मुताबिक न तो शेड की व्यवस्था हो पाई है और न ही चेंबर की। जिसका खमियाजा इधर के समय में वकालत पेशा शुरू करने वाली महिला अधिवक्ताओं को ही नहीं भुगतना पड़ रहा है बल्कि युवा अधिवक्ता भी इस समस्या से दो-चार हैं। कचहरी में अधिवक्ताओं की संख्या के मुतबिक मूलभूत सुविधाओं शौचालय, पेयजल, छाया, विश्राम आदि की व्यवस्था नहीं हो पाई है। महिला होने के नाते इस समस्या का सामना उन्हें ज्यादा करनी पड़ती है। बार एसोसिएशन के साथ सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए और मूलभूत सुविधाओं की जल्द से जल्द बहाली और पर्याप्त मात्रा में शेड, चैंबर तथा कुर्सी-तख्ता की व्यवस्था की जानी चाहिए। महिला अधिवक्ताओं का कहना है कि सीनियर अधिवक्ताओं को उन्हें प्रश्रय तथा तवज्जो देनी चाहिए। ग्राम अदालतों में बैठने के प्रबंध नहीं:जिला कचहरी से लेकर तहसीलों तक सुविधाओं और सहूलियतों को बढ़ाने की कवायद चल रही है लेकिन यह कवायद जरूरत के हिसाब से नाकाफी साबित हो रही है। जिला कचहरी में ही बहुमंजिले अदालत कक्ष तथा अधिवक्ता चैंबर बनवाए गए हैं। सरकार से लेकर सांसद -विधायक से अपने निधि से अनुदान दिया है। किसी योजना से लाइब्रेरी का उन्नययन हुआ है तो किसी योजना से सभागार का जीर्णोद्धार। बार एसोसिएशन तथा अन्य योजनाओं से मिले बजट से शेड का निर्माण कराया गया है। जिला और तहसील की हालत तो कुछ ठीक है,अभी कुछ वर्ष पूर्व शुरू की गई ग्राम अदालत योजना में तो अधिवक्ताओं के लिए कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है। अधिवक्ता पिछले कई दशकों से पुराने शेड के नीचे ही बैठने को मजबूर हैं। बारिश के समय में शेड के कई जगह से फूटी होने की वजह से टपकने लगती है जिससे अधिवक्ताओं को खुद को बचाना पड़ता है और वादकारियों के मुकदमे की फाइलों को संभालना। इधर-उधर आसरा देख लोग सिर छुपाते हैं। वकीलों का कहना है कि सरकारें आती जाती हैं लेकिन वकीलों की समस्याओं के निजात के लिए न तो किसी भी जनप्रतिनिधि ने ईमानदारी से ध्यान दिया और न ही समस्या से निजात के लिए ईमानदार पहल हुई। महिला अधिवक्ताओं का कहना है कि कोर्ट से लेकर कचहरी तक वॉशरूम व शौचालय का निर्माण कराया गया है। सरकारी योजना के तहत निर्मित वाशरूम और शौचालय में दिव्यांग, महिला तथा पुरुष के लिए अलग से व्यवस्था की गई है। इसी तर्ज पर व्यवस्था कचहरी परिसर में भी है लेकिन यह महिलाओं के लिए पर्याप्त नहीं है। वह भी तब जब कचहरी में महिला अधिवक्ताओं की तादात महज डेढ़ सौ ही है। बोलीं अधिवक्ता: जिला कचहरी में गर्मी-सर्दी और बरसात, सभी मौसम में काम करना पड़ता है। यहां पर शेड और चैंबर की कमी है, जिसका खामियाजा महिला अधिवक्ता को उठाना पड़ रहा है। - दीक्षा दूबे महिला अधिवक्ताओं को केवल बार एसोसिएशन के चुनाव में आरक्षण दिया गया है। केवल चुनाव में आरक्षण काफी नहीं हैं। सुविधाओं और सहूलियतों के आवंटन में भी महिलओं को आरक्षण दिया जाना चाहिए। - निगार फातिमा बार एसोसिएशन की पहल पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से कचहरी में एलोपैथिक व आयुष का केंद्र खोला गया है, यह केवल प्राथमिक उपचार के लिए ही है। आयुष्मान योजना से आच्छादित किया जाना चाहिए। - कोमल गुप्ता क़ानूनी रूप से बराबरी का दर्जा हासिल होने के बावजूद महिला अधिवक्ता को लैंगिक भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है, लेकिन महिला वकीलों के लिए कोई अतिरिक्त इंतजाम नहीं किये जा रहे। - तरन्नुम महिला होने के कारण एक महिला अधिवक्ता को निजता की जरूरत होती है, लेकिन कचहरी में इसके लिए अपेक्षित व्यवस्था नहीं हो पाई है। बार तथा सरकार को इस दिशा में प्रभावी पहल करनी चाहिए। - कृष्णा यादव वकालत पेशे में महिलाएं तो आ रही हैं लेकिन उनके काम की स्वतंत्रता होनी चाहिए। व्यवहारिक से लेकर पेशागत स्वतंत्रता और इसके संरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। - गरिमा यादव महिला अधिवक्ताओं को मूलभूत समस्याओं से ज्यादा परेशान होना पड़ रहा है। यहां काम करने आए हैं तो अच्छा माहौल और समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। सफाई से लेकर बैठने और विश्राम की व्यवस्था उन्नत हो। - वंदना वर्मा महिलाएं समूह में काम करतीं है तो सरकार की ओर से उनको आर्थिक मदद के साथ सामजिक सुरक्षा दी जाती है। हम महिला वकील भी पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए संघर्षरत हैं। हमको भी संरक्षण मिलना चाहिए। - नेहा यादव प्रैक्टिस के लिए कचहरी आने वाली महिला अधिवक्ताओं की निजता और विश्राम के लिए कचहरी परिसर में अलग कक्ष की मांग की गई थी। इस संबंध में अभी तक इस दिशा में कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाई। - वर्षा महिला वकीलों के बैठने के लिए ठीक से कुर्सी-मेज तक की व्यवस्था नहीं है। होगा भी कैसे, जब पंजीकृत अधिवक्ताओं के सापेक्ष ही व्यवस्थाएं और सुविधाएं नाकाफी हैं। - ज्योति सिंह महिला अधिवक्ता प्रभावी रूप से अपनी भूमिका का निर्वहन भी कर रही हैं, लेकिन व्यवस्था और सुविधा में उनके लिए अतिरिक्त से कोई व्यवस्था नहीं की गई है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए। - बबीता मौर्या चौका-चूल्हा के साथ महिलाओं ने पीड़तों को न्याय दिलाने के लिए क़ानूनी लड़ाई शुरू की है व एलएलबी की डिग्री लेकर प्रैक्टिस करने कचहरी आ रही हैं। परिवार की तरह व्यवस्था में इनको तवज्जो दी जानी चाहिए। - गीता चौबे बोले जिम्मेदार: बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएन सिंह का इस बारे में कहना है कि कचहरी परिसर में महिलाओं के लिए अलग वाशरूम और शौचालय की व्यवस्था है। महिला अधिवक्ताओं की ओर से विश्राम आदि के लिए कॉमन रूम की मांग की गई थी, जिसपर बार एसोसिएशन की ओर से विचार-विमर्श चल रहा है, जल्द ही अलग कॉमन रूम की व्यवस्था कराई जाएगी। अधिवक्ताओं के लिए नया शेड बनवाया जाना है। इसकी कार्ययोजना बनाकर जल्द काम शुरू कराया जाएगा।
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