मदर्स-डे: बेटे-बेटियों का ख्वाब पूरा करने को खुद की ख्वाहिशों का गला घोंटा
Bagpat News - - किसी ने बेटियों को बनाया नेशनल खिलाड़ी, किसी ने बनाया अफसरमदर्स-डे: बेटे-बेटियों का ख्वाब पूरा करने को खुद की ख्वाहिशों का गला घोंटामदर्स-डे: बेटे-

मां-बाप का पूरा जीवन अपने बच्चे को सफलता की ऊंचाईयों तक पहुंचाने में लग जाता है। जब बच्चा अपनी सफलता के कदम चूम लेता है तब मां-बाप को सुकून का अहसास होता है। बच्चा हो, किशोर हो नौजवान हो या फिर बुढ़ापे के दिन, थोड़ी सा दर्द महसूस होने पर सिर्फ मां की आवाज निकलती है। अपने बच्चे को इस जिंदगी में आगे बढ़ाने में मां का रोल काफी अहम होता है। बच्चा ऊंचाईयों तक पहुंचने के बाद भी मां को नहीं भूल सकता। आज कई हस्तियां ऐसी है, जो काफी बडे़ मुकाम पर पहुंच चुकी है और उनके इस मुकाम में उनकी मां का बहुत बड़ा हाथ है।
कहा जाता है कि बेटियों के सर पर पिता का हाथ होना बेहद जरूरी होता है तभी वे प्रतिस्पर्धा से भरी दुनिया से पार पाकर अपनी एक अलग पहचान कायम कर पाती हैं। रूपल राणा: सिविल सविर्सिज में 26वीं रैंक हासिल करने वाली बड़ौत निवासी रूपल राणा की कामयाबी के पीछे मां स्व. अंजू राणा का बड़ा हाथ रहा। रूपल राणा का मानना है कि मां की हौसला आफजाई से ही वह आज आइएएस बन सकी हैं। साक्षात्कार से पहले उनकी माँ का निधन हो गया था और वह पूरी तरह से टूट गई थी, लेकिन परीक्षा पास करना माँ का बड़ा सपना था। उन्होंने सिविल सर्विसेज की पढ़ाई कराने से लेकर इसके लिए प्रेरित करने तक में जो साथ दिया, वह कोई नहीं दे सकता। डॉ मीणा मित्तल: बड़ौत निवासी डॉ मीणा मित्तल इस समय हॉस्पिटल गुणवत्ता की विशेषज्ञा हैं और राष्ट्रीय पैनल में शामिल हैं। पहले शांतिसागर धर्मार्थ अस्पताल में कार्य करने के बाद उन्होंने अपने पति डॉ अनुराग मित्तल के साथ खुद का क्लिनिक खोला। 10 साल तक क्लिनिक में मरीजों का इलाज किया। उनके तीन बच्चे हैं और जब उन्हें लगा कि अब उनपर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है तो क्लिनिक छोड़ उनके करियर पर ध्यान देना शुरू किया। बड़ा बेटा विश्रुत मित्तल सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे हैं जबकि बेटी दंत चिकित्सक हैं और छोटा बेटा भी लॉ की पढ़ाई कर रहा हैं। वे कहती हैं आज बड़ी खुशी मिलती है जब वे अपने कामयाब बच्चों की तरफ देखती हैं। लक्ष्मी देवी: संतनगर की दो सगी बहनों नीलम व मेघना जोकि नेशनल पहलवान हैं। बिना किसी मदद के दोनों बहनों ने पहलवानी के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी व अपने परिवार की वह पहचान कायम की है जिसकी शायद दूसरी बेटियां भी अनुसरण करने के लिए तत्पर रहेंगी। बचपन मे ही सिरसली गांव मे ही उनके पिताजी की हत्या कर दी गयी थी जिसके बाद घर मे उनकी मां लक्ष्मी देवी और दोनों बहने ही थी। उस घटना के बाद उन तीनों ने सिरसली गांव छोड़ दिया और संतनगर गांव मे रहने लगे। उनकी माँ ने बचपन से ही दोनों बहनों को पहलवान बनाने की ठान ली थी। बिना किसी सुविधा और मदद के कड़ी मेहनत कर दोनों बहनों को पहलवानी के लिये तैयार करना शुरू का दिया। दोनों बहनों ने अपने करियर की शुरूआत दाहा गांव मे खेतों के बीच बने एक अखाड़े से की। इस दौरान लोगों ने दोनों बहनों को खूब ताने भी मारे, लेकिन नीलम और मेघना ने अपनी माँ के सपने को साकार करने के लिये रात-दिन एक कर अपनी प्रतिभा को निखारा। दोनों बहनों ने विभिन्न कुश्ती प्रतियोगिताओं में एक के बाद एक मैडल झटकने शुरू कर दिये तो क्षेत्रवासियों का ध्यान इनकी ओर गया।
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