बोले बाराबंकी:जैदपुर रूट पर डग्गामारों की मनमानी से यात्री त्रस्त
Barabanki News - बाराबंकी में रात के समय परिवहन व्यवस्था बेहद खराब है। रोडवेज बस सेवा पिछले 10 वर्षों से बंद है, जिससे ग्रामीणों को डग्गामार और निजी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। ये वाहन महंगे किराए व असुरक्षित...

बाराबंकी। सुरक्षा के लिहाज से रात्रिकालीन परिवहन की स्थिति और भी बदतर है। रात 8 बजे के बाद इस रूट पर न रोडवेज की बस मिलती है, न ही कोई वैध निजी साधन। ऐसे में या तो लोगों को महंगे किराए पर निजी वाहन करना पड़ता है या फिर सड़क किनारे रात बिताने को मजबूर होना पड़ता है। डग्गामार वाहन मालिक कमाई के लालच में ओवरलोडिंग, तय रूट से बाहर जाना और बिना लाइसेंस ड्राइवरों को गाड़ी देना जैसी गंभीर लापरवाहियां करते हैं। परिवहन विभाग और पुलिस की नाक के नीचे यह सब होता है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाई जाती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ महीनों में ही दर्जनों बार हादसे हुए, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। ऐसे में जरूरत है कि इस रूट पर नियमित और समयबद्ध रोडवेज बसों की संख्या बढ़ाई जाए। परिवहन विभाग को डग्गामार वाहनों पर सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए और वैकल्पिक परिवहन साधनों को भी नियंत्रित ढंग से विकसित किया जाना चाहिए, जिससे आम आदमी को सुरक्षित और सुलभ यात्रा मिल सके। बाराबंकी मार्ग पर 10 साल से बंद है रोडवेज सेवा: जिले के जैदपुर कस्बे और जिला मुख्यालय बाराबंकी के बीच रोडवेज बस सेवा बीते 10 वर्षों से पूरी तरह ठप है। नतीजतन, ग्रामीणों को रोजमर्रा की यात्रा के लिए डग्गामार और निजी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। ये वाहन जहां मनमर्जी से किराया वसूलते हैं, वहीं सुरक्षा, सुविधा और समय की कोई गारंटी नहीं होती। हालत यह है कि आम लोगों को खासतौर पर महिलाओं, स्कूली बच्चों और बुजुर्गों को यात्रा के दौरान तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जैदपुर से बाराबंकी की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है। यह मार्ग कई गांवों और कस्बों को जिला मुख्यालय से जोड़ता है। इसके बावजूद रोडवेज की कोई बस सेवा पिछले एक दशक से नहीं चलाई जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले इस रूट पर नियमित रोडवेज बसें चलती थीं, लेकिन धीरे-धीरे सेवा बंद कर दी गई और फिर दोबारा शुरू नहीं हुई। अब इस रूट पर केवल प्राइवेट टैम्पो, मैजिक और छोटी गाड़ियां ही चलती हैं, जो यात्रियों से 40-50 रुपये तक का किराया वसूलती हैं, जबकि रोडवेज बस से यही सफर 20-25 रुपये में हो सकता था। डग्गामार वाहन चालक किराया तय करने में कोई नियम नहीं मानते-बारिश, त्यौहार या भीड़ होने पर किराया और बढ़ा देते हैं। इन निजी वाहनों में सीटिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती, और अधिकतर बार ओवरलोडिंग कर यात्रियों को ठूंस-ठूंस कर बैठाया जाता है। महिलाओं को पुरुषों के बीच खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती है, जिससे असहज स्थिति पैदा हो जाती है। छात्र-छात्राओं को भी स्कूल और कॉलेज जाने में देरी होती है, क्योंकि इन्हीं वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है। स्थानीय ग्रामीणों ने कई बार परिवहन विभाग और जनप्रतिनिधियों से रोडवेज सेवा फिर से शुरू करने की मांग की, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। डग्गामार वाहनों की न तो नियमित चेकिंग होती है और न ही कोई रेट लिस्ट लागू है। कई इलाकों तक नहीं पहुंचती हैं रोडवेज बसें:जिले के ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में परिवहन व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है। हालत यह है कि आज भी बाराबंकी जिले के तमाम हिस्सों तक उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें नहीं पहुंचतीं। ऐसे में लोगों को डग्गामार, अनफिट और निजी वाहनों के भरोसे यात्रा करनी पड़ती है, जो न सिर्फ असुविधाजनक हैं बल्कि खतरनाक भी। इन क्षेत्रों में रहने वाले हजारों लोगों को जिला मुख्यालय, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल या कामकाज के सिलसिले में रोजाना सफर करना पड़ता है। लेकिन रोडवेज की ओर से न तो नियमित बसें चलाई जा रही हैं और न ही इन रूटों की गंभीरता से समीक्षा की जाती है। परिणामस्वरूप, आम जनता डग्गामार वाहनों पर निर्भर है। डग्गामार टैम्पो, मैजिक और मिनी बसें बगैर किसी नियम के चलती हैं। न इनमें सीटिंग क्षमता का पालन होता है, न ही किराया तय होता है। महिला यात्रियों को भीड़-भाड़ और असुरक्षित माहौल में यात्रा करनी पड़ती है, जिससे असहजता और खतरे दोनों बढ़ जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि प्रत्येक ब्लॉक व कस्बे को जिला मुख्यालय से जोड़ते हुए रोडवेज बसें चलाई जाएं तो न केवल यात्रियों को राहत मिलेगी, बल्कि डग्गामार वाहनों की मनमानी और दुर्घटनाओं पर भी अंकुश लगेगा। बेरोकटोक ई-रिक्शा का संचालन भी बना मुसीबत: जिले में ई-रिक्शा एक ओर जहां सस्ती और सुलभ सवारी का विकल्प बन चुके हैं, वहीं दूसरी ओर इनका अनियंत्रित संचालन अब यातायात व्यवस्था के लिए गंभीर समस्या बन गया है। न तो चालकों के पास ड्राइविंग लाइसेंस है, न ही रूट तय हैं। अधिकतर ई-रिक्शा ओवरलोड होकर चलते हैं और यातायात नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हैं। शहर में जीआईसी चौराहा, नगर पालिका क्षेत्र, रेलवे स्टेशन, और जिला अस्पताल के आसपास ई-रिक्शा मनमाने ढंग से खड़े होकर सवारियां भरते हैं। इससे जाम की स्थिति रोज देखने को मिलती है। ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी के बावजूद इन पर कोई खास अंकुश नहीं लगाया जाता। ई-रिक्शा चालकों में अधिकांश युवा हैं, जिन्हें न तो प्रशिक्षण मिला है और न ही ट्रैफिक नियमों की जानकारी। कई बार ओवरलोडिंग और तेज रफ्तार के कारण छोटे-बड़े हादसे हो चुके हैं। खासकर महिला और स्कूली बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अधिकतर ई-रिक्शा बिना पंजीकरण, बीमा या फिटनेस के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। किसी भी हादसे की स्थिति में पीड़ित को मुआवजा तक नहीं मिल पाता। बोले जिम्मेदार: इस बारे में एआरटीओ अंकिता शुक्ला का कहना है कि डग्गामार वाहनों के खिलाफ सख्ती से अभियान चलाकर कार्रवाई की जाती है। पीटीओ, एआरएम व मैं स्वयं जांच के लिए जाकर कार्रवाई करती हूं। विगत चार दिनों में 13 डग्गामार वाहनों को सीज करते हुए 45 का चालान किया जा चुका है। इनमें प्राइवेट बसें, टाटा मैजिक आदि वाहन शामिल हैं।
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