बोले बस्ती : जान जोखिम में डाल सरयू पार खेती करने जाते हैं किसान
Basti News - बस्ती के दुबौलिया क्षेत्र के किसान हर रोज सरयू नदी को पार कर खेतों में काम करने जाते हैं। बाढ़ और नदी की धारा में बदलाव के कारण उनकी फसलें और जमीनें लगातार नुकसान में हैं। सरकारी सहायता की कमी से...
Basti News : दुबौलिया क्षेत्र के सैकड़ों किसान ऐसे हैं, जिन्हें हर रोज खतरों का सामना करना पड़ता है। खेती के लिए जान जोखिम में डालकर वे सरयू की धारा को पार कर नदी के दूसरी तरफ जाते हैं। इसके बाद भी इन किसानों की दो जून की रोटी का इंतजाम नहीं हो पाता है। सरकार की ओर से भी मदद नहीं मिलने से इनकी आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। कभी बड़े किसान समझे जाने वाले लोग आज परिवार चलाने के लिए मजदूरी करने पर मजबूर हैं। कारण यह है कि इनकी जमीन या तो नदी में समा गई है, या नदी के उस पार चली गई है।
अपनी पुश्तैनी जमीन से लगाव के कारण ये लोग इसे छोड़ भी नहीं पा रहे हैं। जिन लोगों की जमीन नदी के उस पार है, वे हर रोज नाव व डोंगी की मदद से सरयू की जल धारा को पार कर नदी के पार जाते हैं। विपरीत मौसम में खेतों में पूरा दिन गुजारने के बाद देर शाम तक घर वापस आते हैं। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में किसानों ने समस्याएं साझा करते हुए समाधान की अपेक्षा की। घाघरा (सरयू) में आने वाली बाढ़ के कारण नदी हर साल अपनी धारा बदलती रहती है। इससे लोगों को खेती किसानी करना मुश्किल हो जाता है। नदी जब भी बढ़ती और घटती है तो तेजी से कटान करती है। किसानो के खेतों में लहलहाती, तैयार फसल नदी कि धारा में विलीन हो जाती है और किसान हाथ मलते रह जाते हैं। नदी की ओर से लगातार कटान करने के कारण जो नदी कि धारा पिछले तीन दशक पूर्व तटबंध से पांच, छह किलोमीटर दूर थी अब नदी की वही धारा तटबंध से सट कर बह रही है। जिन किसानों के खेत पहले नदी के इस पार थे, आज वे नदी के उस पार जा चुके हैं। खेती की लालच या पेट भरने की मजबूरी कहें कि जिन किसानों की खेती अब नदी के पार चली गई है, वह खेती करने के लिए जान जोखिम में डालकर नदी पार करते हैं। हालत यह है कि इनके पास ठीक-ठाक नाव तक उपलब्ध नहीं होती है। इन लोगों को खेतों में खेती-बाड़ी के लिए डोंगी नाव से आना जाना पड़ता है। ऐसे में कभी कभी यह किसान हादसों के शिकार हो कर अपनी जान भी गंवा रहे हैं। खेती की इन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। ऐसा ही एक हादसा पारा गांव के निकट कुछ वर्ष पूर हुआ था, जब गेंहू कि सिंचाई कर डोंगी नाव से किसान वापस लौट रहे थे, उसी समय बीच धारा में नाव पलट गई थी। नदी में डूबने से आधा दर्जन लोगों की मौत हो गई थी। कुछ किसानों ने किसी तरह अपनी जान बचाई थी। जो छह लोग डूबे थे, उनमें से केवल चार किसानो का शव मिल पाया था। दो किसानों के शव का आज तक पता नहीं चल सका था। इन किसानों के परिवारों को आज तक किसी तरह का सरकारी लाभ भी नहीं मिल सका है। किसानों की दुर्दशा के अध्याय में उनकी आबादी का नदी की धारा में समाना शामिल हैं। धारा की कटान से डेढ़ दर्जन से अधिक गांवों का अस्तित्व ही पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। इन गांवों के निवासी कुछ इस पार तो कुछ उस पार गांवों में घर गृहस्थी बना कर आबाद हो चुके हैं। सरयू मईया कि कृपा पर करते हैं किसान कछार में खेती : जिले के दक्षिणी सीमा से होकर बहने वाली सरयू कि तलहटी में सैकड़ों एकड़ क्षेत्र में किसान खेती किसानी कर के अपना व अपने परिवार का पेट पालते हैं। यही खेती इनकी रोजी रोटी का भी जरिया रहता है। तमाम परेशानी झेलने के बाद भी किसान खेती किसानी करते हैं। कभी कभी तो नदी में बाढ़ आने पर पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। लागत भी डूब जाती है। अच्छी फसल कि आस में किसान खेती करते रहते हैं। किसानों का कहना है कि हर वर्ष सरयू में आने वाली बाढ़ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती है। इससे मिट्टी काफी उपजाऊ हो जाती है। कम लागत में यहां पर खेती हो जाती है। इसी के साथ प्राकृतिक रूप से उपजाऊ मिट्टी में पैदावार भी अच्छी होती है। किसानों का कहना है कि भारी लागत लगाकर वह लोग खेती नहीं कर सकते हैं। पूरी तरह प्रकृति की कृपा पर निर्भर हैं संसाधन विहीन किसान बस्सी । तरयू के दीयारा क्षेत्र में खेती किसानी करने वाले किसान पूरी तरह से प्राकृति पर निर्भर रहते हैं। न तो यहां पर सिंचाई का साधन है और न परिवाहन कि सुविधा उपलब्ध है। किसान ठंडी, गर्मी, बरसात में घर से दूर रह कर खेती किसानी करते हैं। हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी कभी कभी जमा पूंजी निकालना मुश्किल हो जाता है। जिन किसानों कि भूमि नदी उस पार चली गई है वह किसान जान जोखिम में डालकर खेती किसानी करते हैं। किसान अपने खेतों की जुताई के लिए ट्रैक्टर को बड़ी नाव पर लादकर ले जाते हैं। पूरे सीजन यह ट्रैक्टर वहीं पर खेतों की जुताई करते रहते हैं। कभी कभी इस दौरान हादसा भी हो जाता है। गेहूं की कटाई के लिए किसान कम्बाईन मशीन घाघरा नदी में उतारकर ले गए थे। वापस आते समय कम्बाईन मशीन नदी की बीच धारा में फंस गई। काफी जद्दोजहद के बाद भी कम्बाईन मशीन नहीं निकली। रात भर धारा में मशीन खड़ी रहने के बाद दूसरे दिन निकाली जा सकी थी। तैयार फसल को लाने में किसानों को करना पड़ता है संघर्ष : किसानों को खेत जुताई, बुआई, सिंचाई के साथ साथ तैयार फसल को सही सलामत घर तक लाने में भी काफी संघर्ष करना पड़ता है। किसान तैयार फसल को पहले अपने खेतों में सहेजने के बाद उसे ढुलाई कर नदी के किनारे तक लाते हैं, फिर नाव पर लाद कर नदी इस पार लाते हैं। इस के बाद नाव से उतार कर फसल को तटबंध पर लाते हैं। यहां से किसी तरह अनाज घर पहुंच पाता है। अनाज घर में पहुंचने के बाद ही किसान को राहत मिल पाती है। तब कहीं जा कर किसान को सुकुन मिलता है। अनाज की ढुलाई में फसल की काफी बर्बादी भी होती है। डीजल पर खेती निर्भर होने से बढ़ जाती है लागत नदी उस पार के किसानों की खेती पूरी तरह से डीजल इंजन पर निर्भर है। खेतों में सिंचाई के लिए उन्हें डीजल इंजन का सहारा लेना पड़ता है। किसानों का कहना है कि नदी उस पार बिजली की व्यवस्था नहीं है, इसलिए वहां पर बिजली का मोटर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। नदी उस पर सुरक्षा न होने के कारण वह लोग सोलर पंप भी नहीं लगा पाते हैं। शिकायतें -खेती नदी के उस पार है, जबकि नदी को पार करने के लिए कोई संसाधन या सुविधा नहीं है। -नदी उस पर जो किसान जाते हैं गर्मी के समय सिर छुपाने की कहीं जगह नहीं मिलती है। - किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या सुरक्षा को लेकर है। दिन के समय जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है। -नदी की धारा में खेत विलीन हो जाने के बाद दोबारा उस पर कब्जा करना किसान के लिए काफी मुश्किल होता है। -नदी के उस पर संसाधन की सबसे बड़ी समस्या है। सुझाव -चांदपुर के पास पीपा पुल बनाए जाने से काफी हद तक किसानों की एक बड़ी समस्या समाप्त हो जाएगी। -नदी उस पर किसानों के लिए अस्थायी निर्माण कराया जाना चाहिए, जहां किसान कुछ देर के लिए ठहर सकें। - किसान खेती के लिए नदी उस पार जाते हैं, उस समय वहां पर सुरक्षा का प्रबंध होना चाहिए। - प्रशासन की ओर से यह व्यवस्था होनी चाहिए कि नदी की धारा बदलने पर जो जमीन निकलती है, उसकी पैमाइश कराना चाहिए। - सरयू पार खेती करने वाले किसानों को विशेष रूप से रियायती दाम पर संसाधन मुहैया कराया जाना चाहिए। बोले किसान सरयू नदी बराबर कटान करती रहती है। इससे हम किसानों का खेत कभी नदी के इस पार और कभी उस पार चला जाता है। सरयू पार वाले खेतों में खेती करना मुश्किल रहता है। चंद्रशेखर सरयू नदी के किनारे खेती करना किसी तपस्या से कम नहीं है। यहां पर न तो जुताई का संसाधन है और न ही सिंचाई की कोई व्यवस्था है। कुलबुल राजभर हमारी सारी खेती इस समय नदी के उस पार चली गई है। नदी पार वाली खेती की जुताई ही काफी महंगी पड़ती है। नाव से लादकर ट्रैक्टर जुताई के लिए ले जाते हैं । जोखू हम लोगों का खेत इससे पहले नदी व तटबंध के बीच में था। वहां पर अच्छी पैदावार हो रही थी। नदी ने कटान कर खेतों को नदी के उस पर पहुंचा दिया है। लालमन चौहान हमारी खेती पहले नदी के किनारे पर थी। उस समय हम लोग खेतों में गेहूं, सरसों आदि की खेती करते थे। खूब पैदावार भी होती थी। अब खेत नदी में व उस पार चला गया है। मो. रफीक नदी उस पार हमारा खेत है। इस बार खेत में बड़ी मुश्किल से गेहूं की फसल बोई थी। दूरी के कारण समय से फसल की कटाई नहीं हो सकी। बारिश से फसल खराब हो गई। परशुराम राजभर नदी पार खेती का प्रबंधन बहुत मुश्किल हो रहा है। दूरी के कारण बुवाई, सिंचाई महंगी हो गई है। रुपयों का प्रबंध नहीं होने से खेती चौपट हो गई है। फसल की लागत भी बढ़ रही है। रामचंद्र नई दुनिया गांव में नदी के प्रकोप से घर बार के साथ ही खेती भी उजड़ गई है। हमारी जमीनें अब नदी के उस पार पहुंच गई है। सुबह नाव से खेत तक पहुंचते हैं और शाम को ही आते हैं। सुरेंद्र वर्मा नदी पार जाकर खेती करना बहुत मुश्किल है। नदी हर साल अपनी धारा बदल रही है। खेत की जुताई, बुवाई, सिंचाई मुश्किल के साथ काफी महंगी साबित हो रही है। बाबूराम चौधरी खेती के सारे संसाधन इसी पार से ले जाने पड़ते हैं। शेरवा घाट व उनियार घाट से ट्रैक्टर को नाव पर लादकर नदी उस पर पहुंचाया जाता है। नाव वाले इसका किराया तीन से चार हजार मांगते हैं। रामपाल राजभर हमारे बचपन में काफी अच्छी खेती होती थी, खूब अनाज घर में आता था। बदनसीबी से नदी ने कटान करते हुए हमारे खेत को अपनी धारा में विलीन कर लिया है। सलमान अली कर्ज लेकर तरबूज, खरबूज व खीरा की खेती करते हैं। पिछले साल जब फसल तैयार थी, उसी समय बाढ़ आ गई,जिससे सारी फसल डूबकर बर्बाद हो गई। रमेश कुमार सरयू की धारा में हमारा घर व खेती विलीन हो चुका है। कुछ जमीन पट्टे की मिली है, जिस पर घर बनवाकर रह रहे हैं। हमारी हसरत है कि अपने जीवन में अपनी जमीन पर खेती करूं। गंगाराम एक दशक पूर्व नदी ने रास्ता बदला और खेत नदी की धारा में विलिन हो गए। इस समय खेत में सिर्फ रेत ही रेत है। सरकार को चाहिए कि किसानों को बालू खनन का पट्टा जारी करे। डॉ. सूर्यभान सिंह दो दशक पूर्व 10 बीघा खेत धारा में कट गया, जो मौके पर नदी उस पार है। खेत का सीमांकन नहीं हो पाता है। तहसील से लेकर थाने तक काश्तकार चक्कर लगाता रह जाता है। सुरेंद्र नाथ द्विवेदी नदी के उस पार खेती करना काफी घाटे का सौदा होता है। इसी के साथ खेती के लिए हर दिन नदी पार कर आना-जाना काफी जोखिम भरा होता है। कल्लू शुक्ल बोले जिम्मेदार बाढ़ आने के चलते सरयू नदी अपना स्थान बदलती है। इस कारण किसानों का गाटा स्पष्ट नहीं हो पाता है। बाद में जमीन की बुवाई के समय गाटा निर्धारण में कठिनाई होती है। हालांकि प्रशासन इसको लेकर गंभीर रहता है। निर्धारित क्षेत्रफल के अनुसार किसान जमीन पर गेहूं व अन्य फसल की बुवाई करे। कटाई के समय कोई विवाद नहीं हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। सरकार से किसानों को मिलने वाली सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है। वह समय से किसानों को मिले, इसका प्रयास होता है। रवीश गुप्ता, डीएम, बस्ती
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