बोले बस्ती : सुविधाएं तो दीजिए, कराटे में चमक बिखेरेंगे हम
Basti News - बस्ती जिले में ताइक्वांडो और कराटे के प्रति बच्चों में रुचि बढ़ रही है। 1000 से अधिक बच्चे प्रशिक्षित हो चुके हैं, लेकिन खेल को बढ़ावा देने के लिए सुविधाओं और कोच की कमी है। खिलाड़ी आत्मरक्षा और...

Basti News : ताइक्वांडो आत्मरक्षा का खेल है। जिले में 1000 से अधिक बच्चे प्रशिक्षित हो चुके हैं। इसके अलावा इतने ही बच्चे प्रशिक्षित हो रहे हैं। इन खिलाड़ियों को आत्मरक्षा में दक्ष होने का जुनून है। साथ ही मेडल प्राप्त कर गांव, प्रदेश के साथ देश का नाम भी रोशन करने की चाहत है। ताइक्वांडो खिलाड़ी नौकरी में पर्याप्त अवसर और इस खेल को और बढ़ावा देकर पहचान दिलाने की मांग कर रहे हैं। खिलाड़ियों ने कहा कि आत्मरक्षा के साथ रोजगार का भी साधन ताइक्वांडो और कराटे हो, इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। कराटे को भी ओलंपिक में जगह मिले।
जिले स्तर पर सुविधाएं मिले तो यहां के खिलाड़ी देश और विश्व स्तर पर चमक बिखेरेंगे। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में खिलाड़ियों ने अपनी समस्याएं साझा कीं। जिले में ताइक्वांडो और कराटे का प्रशिक्षण सीमित दायरे में रह गया है। इसके पीछे की वजह विभागीय उदासीनता कहें या फिर अफसरों की अरुचि, यहां सिर्फ नाममात्र का ही यह खेल रह गया है। 1000 से अधिक बच्चे प्रशिक्षित हो चुके हैं। राज्य और देश स्तर की प्रतियोगिताओं में यहां के बच्चे व युवा भागीदारी कर रहे हैं। मेडल भी जीतकर ले आ रहे हैं। सरकार की मेडल लाओ, नौकरी पाओ, योजना के बाद खेलों के प्रति रुचि बढ़ी है, लेकिन जिले में इस खेल को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हो रही है। इसके लिए जिले में ग्राउंड तक नहीं है। इससे खिलाड़ियों की प्रतिभा बौनी होती जा रही है। खिलाड़ियों के सामने ग्राउंड की समस्या है। अन्य खेलों की तरह इस खेल को भी पहचान मिले इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस खेल से वे जहां आत्मरक्षा करते हैं वहीं शारीरिक और मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहते हैं। लेकिन, इस खेल को बढ़ावा देने के लिए यहां विशेष सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। इससे तमाम खिलाड़ी न चाहते हुए भी इस खेल की बजाए दूसरे खेल की ओर अग्रसर हो रहे हैं। शहर में संचालित स्कूलों में यह खेल आकार नहीं ले पा रहा है। चूंकि, इस खेल के लिए अधिकतर स्कूल कोच विहीन हैं। निजी एकेडमी में ही इस खेल को जीवंत रखने के लिए यहां कई प्रशिक्षक पसीना बहा रहे हैं। उनका मानना है कि यदि खेल विभाग इसमें आगे आए और खिलाड़ियों के लिए बेहतर ग्राउंड उपलब्ध कराए तो प्रतिभाएं देश स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाएंगी। खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे। स्टेडियम में ताइक्वांडो की सुविधा है लेकिन खिलाड़ियों को खेलने की अनुमति नहीं है। केवल प्रतियोगिता ही हो सकती है। संसाधनों की कमी है। खिलाड़ी रोहित बताते हैं कि इस खेल पर दक्षिण और पूर्वी प्रदेश के खिलाड़ियों का कब्जा था। लोग फुटबॉल, वॉलीबॉल और क्रिकेट पर अपनी बढ़त बनाकर हमेशा से ही नौकरी लेते रहे। इस बीच में मार्शल आर्ट के तहत ताइक्वांडो का प्रवेश बस्ती में विनीत कुमार के माध्यम से हुआ। ताइक्वांडो की प्रैक्टिस शुरू हुई। इसके बाद लोगों ने कई जिलों से प्रशिक्षण प्राप्त किया। कराटे में लोगों की रुचि हुई है कम बताते हैं कि ताइक्वांडो तो ओलंपिक में है, पर कराटे ओलंपिक में शामिल नहीं होने कारण से लोगों में रुचि कम है। लोगों की रुचि मार्शल आर्ट की दूसरी विधा ताइक्वांडो में बढ़ी है। इसके बाद खिलाड़ियों का शील्ड लाने का सिलसिला चालू हो गया जिले से कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो नेशनल में खेल कर आए हैं। उन्होंने अवॉर्ड भी लिया है। सभी राज्यों में होने वाली प्रतिस्पर्धा में ताइक्वांडो में हर एक वर्ग में किसी न किसी बेटा या बेटी ने भागीदारी की है। 1976 में कोरिया का यह राष्ट्रीय खेल भारत में प्रवेश किया, जो सभी प्रदेशों में आकार लिया। शहीद सत्यवान सिंह स्टेडियम में नहीं हैं सुविधाएं शहीद सत्यवान सिंह स्टेडियम में वर्ष 2000 से 2008 तक ताइक्वांडो खेल की सुविधा थी, लेकिन उसके बाद वहां खिलाड़ियों को खेलने की अनुमति नहीं दी गई। कोई कोच न होने से धीरे-धीरे यहां से यह खेल विलुप्त प्राय हो गया। वैसे यहां ट्रेनिंग देने और लेने के लिए नहीं हॉल की सुविधा है। अगर कोई चैंपियनशिप होता है तो हॉल की सुविधा उपलब्ध होती है। अगर सरकार इसके इक्विपमेंट को स्टेडियम में ही उपलब्ध करा दे तो बहुत से खिलाड़ियों को सुविधा मिल जाएगी। स्कूलों में इस खेल के लिए भी अलग से विचार करना चाहिए। ताइक्वांडो और कराटे में अंतर ताइक्वांडो कोरियन मार्शल आर्ट है और कराटे जापानी मार्शल आर्ट है। ताइक्वांडो के बारे में कहा जाता है कि ताइक्वांडो एकमात्र फुल कम बैक मार्शल आर्ट है जो ओलंपिक खेलों में भी शामिल है। वहीं कराटे को ओलंपिक खेलों में अभी तक शामिल नहीं किया गया है। ताइक्वांडो में किकिंग टेक्निक्स का ज्यादा व्यवहार किया जाता है। इसमें लगभग 70 फीसदी किकिंग टेक्निक्स होता है जबकि 30 फीसदी हैंड टेक्निक शामिल होता है। वहीं कराटे में 80 फीसदी हैंड तकनीक शामिल होता है, 20 फीसदी किकिंग टेक्निक्स होता है। लड़कियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण जरूरी वर्तमान समय में ताइक्वांडो खेल में लड़कियां आगे आ रही हैं, उनका कहना है कि नौकरी तो मिलेगी, पर सेल्फ डिफेंस भी जरूरी है। ताइक्वांडो में अभी तक कोई सम्मानित नौकरी किसी की नहीं मिली है लेकिन पीटीआई अलग-अलग खेल प्रशिक्षक के रूप में नौकरी मिली है। आने वाले समय में खेलो इंडिया के तहत में बच्चों को नौकरी की संभावना दिख रही है। खिलाड़ियों का कहना है कि सरकार द्वारा रानी लक्ष्मीबाई महिला योजना के तहत सर्वशिक्षा अभियान के तहत माध्यमिक विद्यालय में 24 दिवसीय ताइक्वांडो प्रशिक्षण यहां के कुशल प्रशिक्षक द्वारा दिया जाता है। खिलाड़ियों ने कुशल प्रशिक्षक से प्रशिक्षण दिलवाने की मांग की। कहा कि 24 दिन किसी भी प्रशिक्षण के लिए पूरा नहीं है। यह प्रशिक्षण कम से कम छह महीने का वक्त होना चाहिए। इसी के साथ मार्शल आर्ट के रूप में कराटे का भी प्रशिक्षण जगह-जगह पर दिया जा रहा है परंतु इसे सरकार की मान्यता नहीं दिया गया है। शिकायतें -मार्शल आर्ट के रूप में केंद्र सरकार और राज्य सरकार कराटे को भी मान्यता नहीं। - स्टेडियम में ताइक्वांडो खेल की सुविधा है, लेकिन वहां खिलाड़ियों को खेलने की अनुमति नहीं है। - सभी खेलों के लिए ग्रामीण क्षेत्र में कुशल प्रशिक्षक नहीं होने से खिलाड़ी नहीं तैयार हो रहे हैं । - जिलास्तर पर भी विभिन्न प्रतियोगिताओं का नियमित आयोजन नहीं होता है। इससे काफी परेशानी होती है। - निजी विद्यालयों में प्रशिक्षक की तैनाती नहीं है, 24 दिन में इस खेल को नहीं सीखा जा सकता है। सुझाव - स्टेडियम में खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा को निखारने एवं खेल करियर बनाने का बेहतर मौका मिले। - मेडल लाओ, नौकरी पाओ योजना के तहत ताइक्वांडो खेल में बस्ती के खिलाड़ियों को भी नौकरी मिले - ताइक्वांडो, फुटबॉल और क्रिकेट जैसी लोकप्रियता नहीं है, इस खेल को बढ़ावा देने की जरूरत है। - सभी स्कूलों में मेडल लाओ और नौकरी पाओ के तहत खेल को ग्रामीण बच्चों तक पहुंचाने की जरूरत है। - कोच की तैनाती हो, इससे बच्चों को ताइक्वांडो की तरह कराटे में भी सीखने का अवसर मिल सकेगा। बोले जिम्मेदार यह फुटबॉल और क्रिकेट के जैसा लोकप्रिय नहीं है। इसलिए इस खेल को ज्यादा लोकप्रिय करने की जरूरत है। साथ-साथ आज के परिवेश में यह आत्मरक्षा की कला है। अवनी अग्रवाल सरकार की ओर से आत्मरक्षा के लिए विशेष ट्रेनिंग सुनिश्चित की जानी चाहिए। स्कूलों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। रोजगार की संभावना बढ़ेगी तो इस तरफ दिलचस्पी भी बढ़ेगी। प्रवीण विश्वकर्मा सरकार कहती है कि मेडल लाओ और नौकरी पाओ। लेकिन, कराटे को ओलंपिक में शामिल नहीं किया गया। ग्राउंड हो और प्रशिक्षक हो तो प्रतिभाएं यहां से निखरेंगी। स्वरा गुप्ता खेल की अनेक विधाएं हैं, सभी को सम्मान मिले। ग्रामीण क्षेत्र में कुशल प्रशिक्षक की जरूरत है। बालक ओर बालिकाओं को आत्मरक्षा के लिए ताइक्वांडो आवश्यक है। प्रियांक गुप्ता इस खेल को छोटी-छोटी बच्चियों सीखने आती हैं और बड़े लोग भी आते हैं। सभी लोगों से सीखने और मिलने का मौका मिलता है। सेल्फ डिफेंस के लिए बेहतर है। कार्तिक श्रीवास्तव मार्शल आर्ट के रूप में केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने कराटे के बदले ताइक्वांडो को मान्यता दी है। कराटे को आज तक भी मान्यता नहीं मिली है। कराटे को मान्यता मिले। देवराज मिश्रा इस खेल के जरिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओलंपिक के लिए भागीदारी करूंगा। ओलंपिक खेलने पर नौकरी पक्की होती है। इंटरनेशनल बाजार में कराटे से ज्यादा ताइक्वांडो की मांग है। शशांक शेखर सिंह इस खेल को काफी समय से खेल रही हूं, मकसद है कि इसके जरिये राष्ट्रीय स्तर पर एक गोल्ड, एक सिल्वर प्राप्त करें। पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझे नौकरी भी मिले। उपासना राजभर ताइक्वांडो खेल को बढ़ावा देने के लिए ट्रेनर और मैदान का होना बहुत जरूरी है। ताइक्वांडो में भविष्य है। सरकार पूर्ण रूप से सहायता करे तो इसमें खिलाड़ियों का उज्जवल भविष्य हो सकता है। श्री पटवा सेल्फ डिफेंस के साथ-साथ नौकरी भी जरूरी है। मैं इसके साथ अन्य पढ़ाई भी कर लूंगा और नौकरी भी निश्चित करूंगा, आत्मरक्षा के लिए इस खेल को और बढ़ावा मिले। वंश कुमार सेल्फ डिफेंस गर्ल्स के लिए बहुत जरूरी है। ताइक्वांडो से बेहतर कोई नहीं है। इसी कारण इस खेल को पसंद किया है। आज करियर में मार्शल आर्ट को भी लड़के-लड़कियां चुन रहे हैं। आकांक्षा राजभर मेडल लाओ, नौकरी पाओ को लेकर बच्चों में उत्साह बढ़ा है। बच्चे खेल के प्रति जागरूक हो रहे हैं। खेल में भविष्य दिखाई पड़ रहा है तो लोग कार्यक्रमों की ओर मुड़ चले हैं। अनुष्का नाथ ट्रेनिंग करने के लिए आए हैं। सर्टिफिकेट प्राप्त कर अपने शहर में नौकरी करेंगे। सरकार सभी जिलों में बच्चों को खेल से जोड़े। मैदान के साथ खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया जाए। ग्रंथ - गांव में इस खेल को कोई जानता ही नहीं है। किसी को बताते हैं तो हंसने लगता है। मार्शल आर्ट के ताइक्वांडो में क्या भविष्य है। ग्रामीण बच्चों तक इस खेल को पहुंचाने की जरूरत है। गर्व मिश्रा ग्रामीण क्षेत्र में प्रचार-प्रसार का अभाव है। अगर यह ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैलेगा तो बच्चों में प्रतिस्पर्धा का भाव होगा। आत्मरक्षा सीखेंगे, स्टेडियम में इसकी सुविधा मिलनी चाहिए। उदिता प्रताप मौर्यवंशी ताइक्वांडो से लोग जुड़ रहे। लेकिन, सरकार इस खेल पर ध्यान नहीं दे रही है। मार्शल आर्ट के रूप में लोगों को ताइक्वांडो में ज्यादा भविष्य दिखाई पड़ रहा है। ग्राउंड हो और प्रोत्साहन हो। तन्मय बोले जिम्मेदार सरकारी स्कूलों में रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण और मिशन साहसी तमाम ऐसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। स्कूलों में बालिकाओं को आत्मरक्षा में प्रशिक्षित किया जाता है। ताइक्वांडो के बहनें अपने आप को सशक्त बनाकर खुद की रक्षा कर सकती हैं। स्टेडियम में कोच नहीं हैं, इस वजह से प्रशिक्षण ठप है। निदेशालय से नियमित कोच की मांग की जा रही है। ताइक्वांडो कोच मिलते हैं तो यहां जगह और खेल किट मुहैया कराया जाएगा। प्रमोद जायसवाल, आरएसओ, खेल विभाग 33 वर्षों से ताइक्वांडो का प्रशिक्षण दे रहा हूं। बस्ती के बच्चों में ताइक्वांडो की असीम संभावनाएं हैं। बस्ती महोत्सव, सांसद खेल महोत्सव, जिले स्तर, राज्यस्तर पर और नेशनल लेवल पर बस्ती के बच्चों ने अपने खेल का प्रदर्शन किया है। बस्ती में संसाधन और मैदान मिले इसके लिए कोशिश में हूं। विनीत कुमार, जिला प्रशिक्षक ताइक्वांडो, बस्ती
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