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करबला के मैदान में दिया पैगाम, खुद जियो और जीने दो

Bijnor News - सालाना मजलिस के अंतिम दिन दरगाह आलिया नज्फे हिन्द में बड़ी संख्या में जायरीन पहुंचे। सांसद मौहम्मद हनीफा और डाक्टर सूफ़ी ने चादरपोशी कर अमन की दुआ मांगी। मौलाना रज़ा हुसैन ने नमाज के महत्व पर जोर दिया...

Newswrap हिन्दुस्तान, बिजनौरMon, 26 May 2025 01:15 AM
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करबला के मैदान में दिया पैगाम, खुद जियो और जीने दो

सालाना मजलिसों के अंतिम दिन भी काफी संख्या में जायरीन दरगाहे आलिया नज्फे हिन्द पहुंचे। इस मौके पर लद्दाख के सांसद मौहम्मद हनीफा और डाक्टर सूफ़ी राज होशियारपुर ने भी चादरपोशी कर मुल्क के अमनो अमान के लिये दुआ मांगी। रविवार को जोगीरम्पुरी स्थित विश्व प्रसिद्ध दरगाहे आलिया नज्फे हिन्द पर अंतिम दिन भी जायरीनो का आवागमन का सिलसिला जारी रहा। दरगाह के प्रशासक गुलरेज हैदर रिज़वी ने सभी का आभार जताया। उन्होंने कहा कि यजीद के सामने इमाम हुसैन नहीं झुके उन्होंने इंसानियत की मिसाल कायम कर दुनिया को मोहब्बत का पैगाम दिया। मौलाना रज़ा हुसैन रिज़वी लखनऊ ने खिताब करते हुए कहा कि अल्लाह ने कुरआन में बताया कि नमाज एक बेहतरीन नेमत है लिहाजा हर मुसलमान को सारे अमल के साथ नमाज अदा करना जरूरी है।

सरूल की हदीस में कहा गया कि जिसकी नमाज कुबूल हो गई उसके सारे अमाल नेक (अच्छे कर्म) कुबूल हो जाएंगे और यदि नमाज कुबूल नहीं हुई तो सारे अमाल नेक भी रद्द हो जाएंगे। दुनिया को इंसानियत का पैगाम दिया मौलाना हबीब हैदर ने मजलिस को खिताब करते हुए कहा कि हुसैन करबला में रहकर दुनिया को इंसानियत का पैगाम दिया कि सब मिल जुलकर रहें और मोहब्बत कायम करें। इमाम हुसैन का पैगाम इस बात की दलील है कि वहबे कलबी जो ईसाई था नौजवान था और शादी करके दुल्हन को साथ ला रहा था। करबला से गुजरते समय उसे पता चला कि करबला के मैदान में हुसैन के साथ अत्याचार हो रहा है वे हुसैन के पास गए और हुसैन की बात पर लबैक कहते हुए करबला से जोड़ा और सपत्नीक शहीद हो गए। जुल्म और नाइंसाफी का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं मौलाना शब्बीर वारसी कलकत्ता ने खिताब करते हुए कहा कि इस्लाम दीने इंसानियत है। जो इंसानियत का पैगाम देता है। इमाम हुसैन ने करबला के मैदान में सही पैगाम दिया कि खुद जियो और दूसरो को जीने दो। जुल्म और नाइंसाफी का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि कि दीने इस्लाम दीने इंसानियत ही है। इमाम हुसैन ने करबला में जुल्मो सितम के सामने सर नहीं झुकाया बल्कि इंसानियत को बचाने के लिए शहीद हो गए।

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