बोले बिजनौर : मॉकड्रिल की हर चूक से लें सबक तभी आपदा में अचूक होगी सुरक्षा
Bijnor News - बिजनौर में सुरक्षा अभ्यास के तहत 15 मिनट का ब्लैकआउट किया गया, लेकिन लोगों में जागरूकता की कमी देखने को मिली। कई जगहों पर लाइटें जलती रहीं और लोग नियमों का पालन नहीं कर पाए। अधिकारियों ने भी सही तरीके...

बिजनौर में सुरक्षा अभ्यास के तहत 15 मिनट के ब्लैक आउट में जिम्मेदारी और जागरूकता की परीक्षा हुई। युद्ध के माहौल में यह बेहद जरूरी कवायद है और इस दौरान होने वाली हर चूक से सबक लेने की जरूरत है। क्योंकि मॉकड्रिल हमे सचेत रहना ही नहीं सिखाती बल्कि इससे हमारी कमियों का भी पता चलता है। इसलिए मॉकड्रिल में जो सीखा उससे सबक जरूर लें। सारयन बजते ही ठहर जाना, लाइटें बंद कर लेना, खामोश हो जाना। सड़क हो या घर, बाजार हो या मॉल। रोशनी नजर नहीं आनी चाहिए थी। केवल 15 मिनट के लिए ऐसा करना था। खुद को आपात स्थितियों के लिए तैयार करना था।
अफसोस कि बिजनौर का कुछ हिस्सा छोड़ दें तो अन्य स्थानों पर लोग ऐसा नहीं कर सके। युद्धकाल में सुरक्षा की दृष्टि के मद्देनजर की गई मॉकड्रिल लोगों की सिविक सेंस की कमी के चलते औपचारिकता बनकर रह गई। सिविक सेंस की ये कमी अफसरों से लेकर आम जनता तक में नजर आई। जनता की हालत तो यह रही कि बुधवार रात हुए ब्लैक आउट के दौरान लाइट जलाकर चल रहे लोगों की पुलिस कर्मियों से खूब नोकझोंक तक हुई। देश छोड़िए खुद की भी फिक्र नहीं सिविक सेंस की कमी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सड़कों पर लोग बेशर्मी से वाहनों को दौड़ाए जा रहे थे। लाइट जलाए चार पहिया, दोपहिया वाहन दौड़ रहे थे। न सिर्फ निजी, बल्कि कईं सरकारी इमारतें भी जगमगाती रही। लाइटें जलाकर लोगों का बाजार की सड़कों पर आना जाना बरकरार रहा। नजीबाबाद के एक बड़े मॉल में काफी देर तक रोशनी की चमक-दमक बरकरार रही। देश की सुरक्षा की छोड़िए, यहां लोगों को खुद की जान तक की परवाह नहीं रही। केवल सख्ती से ही मानते हैं लोग ब्लैक आउट के पूर्वाभ्यास में इतना तो ज्ञात हो गया कि आपातकाल में जनता खुद आगे आकर सहयोग करने वाली नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ ‘सख्ती ही एकमात्र तरीका है। कोविड काल की यादें अभी धुंधली नहीं हुई हैं, तब भी आसानी से नियम नहीं माने गए थे। इसका नतीजा कड़ाई के रूप में सामने दिखाई दिया था। बुधवार रात भी लोग पुलिस कर्मियों से उलझते नजर आए। वार रूम से लेकर मॉकड्रिल के मौके पर नजर आई कमियां बुधवार की पूर्वाह्न 11 बजे शॉपर्स प्राइड मॉल पर हुई मॉकड्रिल में कईं कमियां नजर आई। ट्रैफिक कंट्रोल की ऐसे में बड़ी भूमिका होती है, लेकिन आपात स्थिति को देखते हुए जब मॉल के इधर उधर ऐसे ट्रैफिक रोक दिया गया कि जाम लग गया। रेस्क्यू के दौरान एंबुलेंस को बुलाया जाना था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ट्रैफिक जाम में एंबुलेंस मॉल के सामने तक पहुंच ही नहीं सकी। अधिकारी स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी सीएमओ को कॉल करते रहे। सायरन बजने से पहले ही कई अधिकारी मौके पर मौजूद रहे जबकि उन्हें सूचना के बाद पहुंचना चाहिए था। मॉकड्रिल भी यहां एक बार फिर से कराई गई। ऐसे ही ब्लैकआउट के दौरान सही से प्रचार-प्रसार का प्रबंधन न हो पाने से कुछ ही हिस्सों में ब्लैकआउट सफल हो पाया। जगमगाते रहे रेलवे स्टेशन और शुगर मिल ब्लैकआउट के समय रेलवे स्टेशन, रोडवेज बस अड्डे आदि सार्वजनिक उपक्रमों के साथ ही बड़े उद्योगों पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि इनपर हवाई हमलों का खतरा अधिक रहता है। इसके बावजूद बिजनौर का रेलवे स्टेशन ब्लैकआउट शुरू होने के करीब 20 मिनट बाद तक जगमगाता रहा। किसी के ध्यान दिलाने पर इधर की बिजली बंद करानी पड़ी। वेव ग्रुप की स्थानीय शुगर मिल में ब्लैकआउट के निर्देशों का कोई पालन नहीं हुआ। मिल के भीतर की लाइटें तो जलती ही रही। मेन गेट की बत्तियां भी पूरी तरह रोशन रही। रोशन रहीं सेंसर स्ट्रीट लाइटें शहर में कईं स्थानों पर लगी सेंसर स्ट्रीट लाइटें बंद नहीं की जा सकी। कई प्रतिष्ठान स्वामी दुकानें बंद कर लाइटें जली ही छोड़ गए। कुछ लोगों ने बाहर की बत्तियां तो बुझा दी, लेकिन मकानों के भीतर की बत्तियां जली रहने दी और खिड़कियों पर पर्दा डालना तक भूल गए। नजीबाबाद के चौक चौराहे और गली मोहल्ले में ब्लैक आउट के दौरान सौर ऊर्जा सिस्टम, इनवर्टर आदि ने मॉकड्रिल की कवायद को कमजोर किया। आपदा प्रबंधन की ओर से जागरूकता की कमी किसी भी आपदा की स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की अहम भूमिका होती है। इसके तहत सामुदायिक प्रशिक्षण देने को स्थानीय स्तर पर कोई प्रशिक्षण सत्र आयोजित नहीं किया गया, ताकि लोगों को मॉकड्रिल (आपदा) से पहले, दौरान और बाद में क्या करना है, इसकी जानकारी मिल सके। जन जागरूकता अभियान के लिए टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र और सोशल मीडिया के माध्यम का पूरा लाभ नहीं लिया जा सका। पोस्टर, बैनर और पंपलेट बंटवाने के लिए तो इस मॉकड्रिल में समय नहीं था, लेकिन मोबाइल ऐप के माध्यम से मैसेज भी नहीं दिया जा सका। बहुमंजिला इमारतें और शीशे के घर ब्लैकआउट में बाधा कई बहुमंजिला इमारतों और घरों में लगे शीशे भी ब्लैकआउट में बाधा बने नजर आए। बाहर की बत्तियां बंद होने पर भी इनके भीतर की रोशनी सड़कों तक आ रही थी। नजीबाबाद में ब्लैक आउट के अभ्यास के दौरान नगर के वी मार्ट, विशाल मेगा मार्ट जैसे प्रतिष्ठान की लाईटे जली हुई थी। विशाल मेगा मार्ट के मैनेजर पुनीत मिश्रा का कहना है कि प्रशासन की ओर से कोई गाइडलाइन नहीं मिली थी जबकि हमारे अन्य शहरो के आउटलेट्स में प्रशासन द्वारा लिखित में सूचना दी गई थी। सीमित क्षेत्र में दबकर रह गई सायरन की आवाज मॉक ड्रिल में सायरन की आवाज का जिले के कई स्थानों पर लोग इंतजार करते रहे लेकिन, सायरन की आवाज उन्हें नहीं सुनाई दी। दरअसल मॉक ड्रिल चुनिंदा जगह हुई, वहां से कुछ दूरी तक ही सायरन की आवाज आई। जिले के लोगों का कहना है कि ऐसा सायरन बजना चाहिए जिसकी आवाज सभी तक पहुंच सकें। आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए सायरन का होना अति आवश्यक है। सायरन बजने पर जमीन पर लेटना है, यह जानकारी भी सबको नहीं थी। जहां सायरन बजा, वहां भी काफी लोग खड़े नजर आए। विशेषज्ञों ने कहा कि जिले में ऐसा सायरन बजना चाहिए जिसकी आवाज दूर तक जाए। सायरन सुनते ही लोग पूरी तरह अलर्ट हो जाए और तत्काल सुरक्षित स्थानों पर अपने परिजनों को लेकर पहुंच जाए। क्या बोले विशेषज्ञ और पूर्व सैनिक सायरन ऐसा होना चाहिए कि पूरे बिजनौर में उसकी आवाज सुनाई देनी चाहिए। ब्लैक आउट के नाम पर पूरी तरह लोग जागरुक हो और अपने घरों की लाइट बंद करें। बचाव के लिए अपने आसपास के लोगों को भी जागरुक किया जाए। - कैप्टन विशनलाल। जिले में पूरी तरह से ब्लैक आउट होना चाहिए। कोई भी लाइट नहीं जलनी चाहिए। घरों की लाइट और गैस के सिलेंडर तथा मोबाइल फोन, इंवर्टर लाइट कट कर देनी चाहिए। -तेजपाल सिंह , लेफ्टिनेंट एनसीसी, सीनियर डिवीजन सायरन की आवाज आने पर तुरंत सुरक्षित स्थान पर खुद व परिजनों को लेकर जाना है। मोबाइल के साथ खाने पीने की चीजे भी अपने साथ रखें। युद्ध के समय में पूरी तरह ब्लैक आउट रखें। - भूपेन्द्र पाल सिंह, सीटीओ, जूनियर डिवीजन, एनसीसी आपातकालीन स्थिति को देखते हुए हमें लोगों को जागरुक करना चाहिए। किसी भी हालत में जनता घबराए नहीं। देशभक्ति की भावना अपने अंदर जागृत रखे और प्रशासन के दिए निर्देशों का पालन करें। सुरक्षित स्थान सबसे पहले खोज कर रखे। बंकर बनाना आसान नहीं है। सुरक्षित स्थान में शरण ले सकते हैं। - सिद्धार्थ कुमार, थर्ड ऑफिसर, एनसीसी। युद्ध की स्थिति में नागरिक भीड़ भाड़ वाले स्थानों से बचें। लोगों को अपने पास आईडी, दवाइयां, पानी, रेडियो आदि साथ रखनी है। बम या मिसाइल हमले के समय बिना खिड़की वाले भवन में सुरक्षित स्थान लेना है। जैसे बेसमेंट इत्यादि। बिजली घर, रेलवे स्टेशन आदि को ढकना चाहिए, जिससे वे हवाई हमले में बस सकें। रात में लाइट बंद रखना खासकर प्रमुख इमारत, अस्पताल और सरकारी भवन इत्यादि। सायरन और चेतावनी संकेत को समझना जैसे रेड अलर्ट, ऑल क्लियर आदि। - कैप्टन जेके विश्वकर्मा, कम्पनी कमांडर, वर्धमान कालेज। मुख्य रूप से दुश्मन के टारगेट हवाई अड्डे, एअर फोर्स स्टेशन, रिफाइनरी, आर्मी स्टेशन, नेवी स्टेशन ही होते हैं। मॉक ड्रिल में अचानक पुलिस आदि को अलर्ट करने के लिए घायलों को अस्पताल पहुंचाने का अभ्यास कराया जाता है इसमें सभी को सहयोग करना चाहिए। आज के दौर में जहां सैटेलाइट, नाइट विजन और रडार टेक्नोलॉजी ने युद्ध के तरीके बदल दिए हैं, ब्लैकआउट का असर सीमित हो गया। हालांकि युद्ध अभ्यास के दौरान ब्लैकआउट की रणनीति अब भी नागरिक सुरक्षा का अहम हिस्सा है। - सरदार हरजीत सिंह, (रिटायर्ड एयरफोर्स वारंट आफिसर) जब युद्ध होता है तो सैनिक की मनोस्थिति आम नागरिक से इतर होती है। उसके लिये देश के हर नागरिक की जान उतनी ही कीमती होती है जितनी की उसके परिवार की। ऐसे में उसका लक्ष्य दुश्मन के मंसूबों को नाकामयाब करना होता है। ऐसे में हम मॉक ड्रिल जैसी साधारण प्रक्रिया में भी सहयोग नहीं देंगे तो शर्म का विषय है। - रविन्द्र कुमार, पूर्व सैनिक। मॉक ड्रिल को मजाक नहीं समझना चाहिए। जरूरी है कि देश का प्रत्येक नागरिक दिल से और पूरी ईमानदारी से इसमें हिस्सेदारी करें। ब्लैक आउट इसलिये किया जाता है कि दुश्मनों को इस बात का आभास न हो सकें कि ये इलाका रिहायशी है। क्योंकि जरा सी लाइट चमकती है तो दुश्मन को टारगेट मिल जाता है। - पवन शर्मा, पूर्व सैनिक।
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