बोले बिजनौर : बदहाल रास्ते-लंबी दूरी, समय पर स्कूल कैसे पहुंचें शिक्षक
Bijnor News - सरकारी स्कूलों में शिक्षकों को स्कूल पहुंचने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन्हें 50 से 100 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है, जहां सुरक्षित यातायात के साधन नहीं हैं। रास्ते में जंगली जानवरों...

सरकारी स्कूलों के नौनिहालों को शिक्षा की रोशनी दिखाने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं को स्कूल जाते समय होने वाली असुविधाओं को लेकर कोई फिक्रमंद नहीं दिखता है। ग्रामीण क्षेत्र में स्थित दुर्गम क्षेत्र के स्कूलों में सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम नहीं दिखते तो आनन फानन में समय पर स्कूल पहुंचने का उतावलापन सड़क दुर्घटनाओं को दावत देता है। स्कूल और रास्ते के बीच वन्यजीवों जैसे गुलदार के खतरे, आने जाने के साधन से लेकर सुरक्षा व्यवस्था तक पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 50 से 100 किलोमीटर की दूरी तय करके समय पर स्कूल पहुंचना और ऊपर से अधिकारी के निरीक्षण का डर तनावभरा है। काफी अध्यापकों को तो पहले बस और बाद में स्कूल पहुंचने के लिए टैम्पू का सहारा लेना पड़ता है। अध्यापक-अध्यापिकाओं का भारी भरकम वेतन तो सबको दिखता है, लेकिन दूर दराज के स्कूलों में पहुंचने को लेकर संघर्ष किसी को नहीं दिखता है। आए दिए अध्यापकों के एक्सीडेंट होते रहते हैं।
जिले में 2120 परिषदीय स्कूल हैं और इनमें बच्चों को ककहरा सीखाने वाले करीब 7 हजार 200 अध्यापक-अध्यापिकाएं तैनात हैं। स्कूलों में करीब 60 प्रतिशत महिला अध्यापिका तैनात हैं। इसे किस्मत का खेल कहेंगे कि कुछ अध्यापक अध्यापिकाओं को तो निकट का स्कूल मिल गया, लेकिन न जाने कितनी अध्यापिका और अध्यापक ऐसे हैं जिन्हें स्कूल आने और जाने में 150 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करनी पड़ती है। प्रतिदिन 100 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करने पर शरीर जवाब दे जाता है तो वहीं स्कूल पहुंचने को लेकर अन्य परेशानियों से भी दो चार होना पड़ता है। स्कूल जाते समय एक नहीं कई वाहनों का सहारा लेना पड़ता है। काफी अध्यापिकाएं तो पहले बस का इंतजार करती हैं और बाद में टैम्पू की मदद से स्कूल पहुंचती हैं।
काफी अध्यापक और अध्यापिकाएं तो दूसरे जिलों से बिजनौर के दूर दराज के स्कूलों में पहुंचती हैं। ऐसे में इन्हें साधन, सुरक्षा के साथ शिक्षा विभाग के अधिकारियों का शोषण झेलना पड़ता है। स्कूलों में पहुंचने के लिए पर्याप्त साधन नहीं मिलते हैं। काफी अध्यापक और अध्यापिकाएं अपने निजी वाहनों से स्कूल पहुंचते हैं तो वहीं काफी कैब की मदद से दूसरे जिलों और बिजनौर से स्कूल पहुंचते हैं। ऐसे में स्कूलों में साधन को दर्द देते हैं सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं है। महिलाओं के साथ दूरदराज के इंटीरियर के स्कूलों में जाते समय कोई भी घटना हो सकती है तो वहीं जिले में गुलदार का खतरा बना हुआ है। स्कूल जाते समय जंगल के रास्ते में गुलदार का खतरा बड़ा खतरा है। किसी भी समय गुलदार बड़ी घटना को अंजाम दे सकता है। बावजूद इसके महिला अध्यापिकाओं की सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम नहीं है। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या समय पर विद्यालय पहुंचना है। वाहनों से महिला अध्यापिका समय पर विद्यालय पहुंचने का प्रयास करती हैं ऐसे में सड़क दुर्घटना बड़ा खतरा है।
आए दिन अध्यापकों के साथ सड़क दुर्घटना होते रहती है। समय पर पहुंचना इसलिए भी जरूरी है कि अगर 10 मिनट लेट हो गए और अधिकारी निरीक्षण के लिए स्कूल में पहुंच गए तो एक दिन का वेतन कटना तय है। अध्यापकों ने कहा कि स्कूल 50 से 100 किलोमीटर है और आने जाने में टूटी सड़क और गांव के कच्चे रास्ते होने पर करीब 5 घंटे अतिरिक्त स्कूल आने और जाने में लगता है।आए दिन सड़क हादसें डरा रहे हैं। बरसात के दिनों में रास्तों पर पानी का आ जाना और पानी से होकर निकलकर स्कूल पहुंचना काफी दर्द देता है।
रोज 220 किमी का रास्ता करना पड़ता है तय
विकासखंड किरतपुर के प्राथमिक विद्यालय बाहुपूरा में सहायक अध्यापिका शिवानी पटेल का कहना है कि वह प्रतिदिन विद्यालय आने व जाने में 220 किलोमीटर का ऐसा रास्ता तय करती हैं जहां आवागमन का कोई साधन नहीं। उनका विद्यालय गांव से बाहर जंगल में स्थित है जो गुलदार प्रभावित भी है। उनका कहना है कि बरसात के समय कीचड़ से होकर गुजरना पड़ता है बच्चों को पढ़ाना मेरी जिम्मेदारी है परंतु आवागमन के साधन व स्थानांतरण नीति में लचीलापन सरकार की जिम्मेदारी है। अत: शासन प्रशासन इस ओर ध्यान दें।
स्कूल जाने में रोज उठाना पड़ता है जोखिम
अध्यापक विनीत कुमार ने कहा कि विद्यालय बिजनौर से 55 किलोमीटर दूर पड़ता है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं होने के कारण बाइक द्वारा स्कूल जाना पड़ता है जो कि बहुत ही जोखिम भरा रहता है । कई बार रास्ते में गुलदार भी मिलते रहते हैं।
कई किलोमीटर चलना पड़ता है पैदल
विकासखंड अफजलगढ़ में कंपोजिट विद्यालय नारायण वाला में सहायक अध्यापिका मीना कुमारी का कहना है कि मेरे विद्यालय तक जाने का कोई सार्वजनिक साधन नहीं है एक तरफ से विद्यालय की दूरी 55 किमी पड़ती है वह भी चार बार आवागमन का साधन बस टेंपो रिक्शा आदि बदलना पड़ता है। उसके बावजूद भी तीन किमी पैदल चलना पड़ता है जिससे मेरे पैरों में लगातार दर्द रहता है घर की जिम्मेदारियां भी पूरी तरह नहीं उठा पा रही। शासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
हाईवे पर बना रहता है हादसे का खतरा
विकासखंड किरतपुर के नजीबाबाद बॉर्डर पर स्थित कंपोजिट विद्यालय मिर्जापुर में सहायक अध्यापक मनोज कुमार गौतम का कहना है विद्यालय की दूरी अधिक होने के कारण सुबह विद्यालय के लिए बाइक लेकर बहुत जल्दी निकलना पड़ता है और छुट्टी के बाद बहुत देर से घर पहुंचते हैं जिस कारण घर पर बच्चों को भी समय नहीं दे पाते हैं। रास्ता लंबा होने के कारण हाईवे पर एक्सीडेंट का खतरा हमेशा बना रहता है। दूरी की वजह से ही स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं बढ़ रही है।
विद्यालय आने के लिए दो बदलने पड़ते हैं वाहन
विकासखंड नहटौर के जूनियर हाई स्कूल फुलसंदा में सहायक अध्यापक संदीप कुमार मेरठ से 106 किमी की दूरी तय करके विद्यालय तक आते हैं। उनका कहना है कि विद्यालय पहुंचने के लिए उन्हें दो बार वाहन बदलना पड़ता है। एकल अभिभावक होने के कारण बच्चों के पास वापस पहुंचना जरूरी है इसलिए शारीरिक व मानसिक थकान होते हुए भी प्रतिदिन आना जाना जरूरी है।
हर तीन वर्ष में ट्रांसर्फर के लिए सरकार लाए पॉलिसी
प्रतिदिन किसी ना किसी शिक्षक के रोड एक्सीडेंट की खबर मिलती रहती है। ऐसी खबरें सुनकर मन व्यथित हो उठता है। रोज इतना लंबा सफर तय करना बेहद तकलीफ देय और मानसिक थकान देने वाला होता है। सरकार को प्रत्येक तीन वर्ष में ट्रांसफर के लिए पालिसी लानी चाहिए। जिससे दूरस्थ स्थान पर लंबे समय से कार्यरत शिक्षक और शिक्षिकाओं को भी कुछ तो राहत मिल सके।
नदी-नालों और नहरों से गुजरकर जाना पड़ता है स्कूल
शिक्षक-शिक्षिकाओं को नहरों और नदी नालों के साथ गुजरकर स्कूल जाना पड़ता है। किसी भी समय कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
बरसात में पानी से होकर निकलने को मजबूर रहते हैं शिक्षक
स्कूल जाते समय जहां यातायात के पर्याप्त साधन नहीं हैं तो वहीं सूनसान मार्ग में सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल पैदा पैदा हो जाता है। बरसात के दिनों में तो शिक्षक-शिक्षिकाओं को कई-कई फिट पानी से होकर निकलने को मजबूर होना पड़ता है। मेरठ चांदपुर मार्ग पर सैकड़ों की संख्या में अध्यापक और अध्यापिकाएं दुश्वारियां झेलते हैं। कभी कभी तो नाव से होकर गुजरना पड़ता है तो कभी वाहन तक पानी का बहाव तेज होने पर बह जाने की स्थिति पैदा हो जाती है।
बयां किया अपना दर्द
यातायात का संसाधन ठीक नहीं होने से कठिनाई का सामना करना पड़ता है। हालांकि उनका विद्यालय घर से 20 किमी की दूरी पर है। सड़क खराब होना तथा यातायात का साधन समुचित नहीं होने से 20 किमी की दूरी तय करने में भी काफी समय लगता है। सुबह के समय स्कूल पहुंचना कठिन काम है। -रीना गर्ग, शिक्षिका।
मुख्य मार्ग से स्कूल तक पहुंचने में कठिनाई होती है। काफी लंबे समय से बिजनौर नगीना मार्ग का निर्माण कार्य पूरा नहीं होने से भी विद्यालय पहुंचने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। जंगल के रास्ते पर डर सताता रहता है। - कल्पना, शिक्षिका।
जंगल का रास्ता होने से आए दिन जंगली जानवरों का डर सताता है। साथ ही यातायात के लिए मुख्य मार्ग से विद्यालय की दूरी तय करने के लिए संसाधन नहीं होने से कठिनाई रहती हैं। लंबे समय से स्थानांतरण नहीं खुलने से शिक्षक को वह शिक्षिकाओं को भारी परेशानी हो रही है। गड्ढा युक्त सड़के होने से सड़क दुर्घटनाओं का खतरा है। - मीनाक्षी चौधरी, शिक्षिका।
उन्हें विद्यालय पहुंचने के लिए घर से 55 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। नूरपुर से आठ किमी तक आने जाने का संसाधन नहीं होने से परेशानी का सामना करना पड़ता है। सुबह-सुबह शिक्षकों को लंबी दूरी तय करने पर बहुत कठिनाई होती है। सुबह के समय परिवहन की सुविधा भी बहुत कम रहती हैं।
- डॉ. सरस्वती चौहान।
सुबह के समय उन्हें घर से विद्यालय के लिए 35 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। इस दौरान उन्हें दो रेलवे क्रॉसिंग भी पार करने पड़ते हैं। रेलवे क्रॉसिंग पर फाटक बंद होने के कारण कई बार कठिनाई का सामना करना पड़ता है। साथ ही गन्ना पेराई के दौरान गन्ने से लदे ट्रैक्टर ट्राली से भी आने जाने में कठिनाई रहती है। - इंदुबाला, शिक्षिका।
विद्यालय घर से करीब 35 किमी की दूरी पर है। स्कूल के पास जंगल होने से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। रास्ते में चोर उचक्को का खतरा भी बना रहता है। आए दिन लूट का खतरा रहता है। जंगल के रास्ते में जाना कठिन काम साबित होता है। - निशा रानी, शिक्षिका।
आज भी आने जाने के संसाधन पर्याप्त नहीं होने पर शिक्षिकाओं को भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में रास्ते भी ठीक नहीं है। जिले में रास्ते खराब होने के कारण सुबह के समय में कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। शासन को एकल तबादले खोलने की आवश्यकता है। - शीतल, शिक्षिका।
जिले के दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षिकाओं का स्कूल तक पहुंचना एक संघर्ष जैसा है। काफी संख्या में शिक्षिकाएं ऐसी है जो 30 से 50 किमी तक की दूरी तय कर स्कूल जा रही है। जंगल के रास्तों में जहां गुलदार का डर सताता है वहीं लूट का खतरा भी सर पर मंडराता रहता है। - तरनजीत कौर मलिक, शिक्षिका
जिले में बड़ी संख्या में शिक्षिकाएं जंगल के रास्ते से होकर अपने विद्यालय पहुंचती है। ऐसे स्कूलों को चिन्हित कर शिक्षिकाओं का सड़कों के किनारे स्थित विद्यालय में स्थानांतरण करने की जरूरत है। ताकि उन्हें भय के माहौल से मुक्त कराया जा सके। - संजुला चौधरी।
उनका विद्यालय घर से 100 किमी की दूरी पर है। विद्यालय पहुंचने के लिए हाईवे मार्ग से 12 किमी तक का मार्ग जंगल का है जिसमें गुलदार जैसे वन्य जीव भी आए दिन देखे जाते हैं। इतना ही नहीं विद्यालय की दूरी तय करने में जंगल के रास्ते में कई किमी तक सड़क मार्ग भी नहीं है। निजी वाहन से भी पहुंचने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। - मनीष तोमर, शिक्षक
जंगल के रास्ते में जाना मुश्किल का सामना करने के समान है। शिक्षक जान हथेली पर रखकर विद्यालय पहुंच रहे हैं। किसी को उनकी परवाह नहीं है। उनका विद्यालय घर से करीब 50 किमी की दूरी पर है। जंगल के रास्ते में जाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। - नईम अहमद।
मेरठ चांदपुर मार्ग कई साल से बेहद जर्जर हालत में है। पूरा मार्ग सुनसान है और यातायात का कोई साधन भी नहीं है। बड़ी संख्या में महिला शिक्षिकाएं हर रोज किसी तरह इस मार्ग से स्कूलों तक पहुंचती है। बरसात में तो कई-कई फीट पानी से होकर गुजरना पड़ता है। हर वर्ष चंदा कर किसी तरह निकलने की व्यवस्था करते हैं। पता नहीं कब हालात सुधरेंगे। - रश्मि चौधरी।
ये क्या बोले
जिले में करीब 2000 शिक्षक ऐसे हैं जिन्हें 50 से 100 किमी की दूरी तय कर विद्यालय प्रतिदिन आते जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क मार्ग भी ठीक नहीं होने से भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। विकास क्षेत्र अफजलगढ़, कोतवाली देहात, नजीबाबाद व बुढनपुर में रास्तों की हालत खराब है। कोतवाली देहात में कई नदियां पार कर विद्यालय तक पहुंचने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। शिक्षिकाओं के साथ जंगल के रास्तों पर लूट की घटना होने का खतरा सताता रहता है। कई बार संगठन अकल स्थानांतरण खोलकर सुविधाजनक विद्यालय आवंटित करने की मांग कर चुका है। - प्रशांत सिंह, जिलामंत्री, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ।
क्षेत्रों में जाने वाले अधिकांश मार्ग की हालत खराब होने से शिक्षकों को स्कूल पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। साथ ही दूसरे जनपदों के बड़ी संख्या में शिक्षक हमारे जनपद में कार्यरत है। स्कूल आने-जाने में कठिनाई रहती है। स्थानांतरण की एकल व्यवस्था की जरूरत है। आए दिन हो रही दुर्घटनाओं को देखते हुए मार्गो की भी मरम्मत कराई जाए। साथ ही सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशुओं से भी निजात दिलाने की जरूरत है। - राजेन्द्र कुमार, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ।
सुझाव
1. दूरदराज के स्कूलों में जाने पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए।
2. शिक्षिकाओं को आसपास के स्कूलों में मिले तैनाती।
3. स्कूल देरी से पहुंचने पर अधिकारी न करें शोषण।
4. एकल स्थानांतरण खोलकर सुविधाजनक विद्यालय किए जाए आवंटित।
5. आए दिन हो रही दुर्घटनाओं को देखकर सड़कों की मरम्मत कराई जाए।
शिकायतें
1. इंटीरियर के स्कूलों में जाने वाली अध्यापिकाओं की सुविधा का नहीं कोई इंतजाम।
2. सड़कें खराब होने से स्कूल जाने में करना पड़ रहा संघर्ष।
3. स्कूलों तक पहुंचने के लिए यातायात के नहीं पर्याप्त साधन।
4. सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशुओं को सड़कों से हटाया जाए।
5. महिला शिक्षिकाओं को निकट के स्कूलों में मिले तैनाती।
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