यूपी के इस शख्स ने बेजुबानों की सेवा में ही गुजार दिए जीवन के 40 वर्ष
यूपी के गोंडा के इस शख्स ने जीवन के 40 साल बेजुबानों की रक्षा के लिए गुजार दिए। पूरे शहर में उनके लिए 70 पक्के नांद बनवाए हैं जिनमें रोजाना पानी भर रहे हैं

यूं कहें कि चोट बेजुबानों को लगती तो दर्द मुन्ना साहू को होता है, अतिश्योक्ति नहीं होगी। वो बेजुबानों की संवेदनाओं, प्रेम और लगाव के सशक्त हस्ताक्षर हैं। कही पर बेजुबान हादसे का शिकार हो जाएं या गंभीर चोटें लगने से विह्वल होकर छटपटा रहे हों, मुन्ना साहू देखभाल के लिए पहुंच जाते हैं। भले ही कई जिम्मेदार सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाएं इससे मुंह मोड़ सकती है लेकिन शहर के मोहल्ला गोलागंज निवासी मुन्ना साहू को इसकी भनक लगते ही तत्परता से न सिर्फ मौके पर पहुंचते हैं बल्कि दवा आदि करने की पूरी जुगत करके राहत दिलाने के प्रयास में जुट जाते हैं। लगता है वह बेजुबान उनके परिवार का कोई सदस्य हैं।
मृत हो जाने पर उसका विधि पूर्वक संस्कार व मिट्टी भी करते हैं।।जो लोगों को बेजुबानों के प्रति हिंसा नहीं प्रेम और सद्भव्यहार रखने की प्रेरणा देता है। इतना ही नहीं कई बार हादसों में शव क्षत-विक्षत हो जाता तो भी जरा भी नहीं घबराते हैं। गोवंश हो या बंदरों के घरों मे उत्पात मचाने की शिकायते भी अक्सर सुर्खियां बनती है। दूसरी ओर करीब 70 वर्षीय मुन्ना साहू को देखते बेजुबान भी उनसे अपनत्व दिखाते हैं। मुन्ना बताते हैं कि बेजुबानों के प्रति सेवा करते उनको 40 साल से अधिक हो रहे। जीविकोपार्जन के लिए घर में एक छोटी सी दुकान करने के अलावा अपना ज्यादातर समय बेजुबानों की सेवा में लगा रहे हैं। कहते हैं शाय़द भगवान ने उन्हें इसी के लिए भेजा है। कोई भी बेजुबान प्यासा न रहे। शहर भर उन्होंने 70 पक्के नांद बनवा रखे हैं। रोजाना भोर चार बजे से ही उनमें पानी भरने का काम करते हैं। वो कहते हैं कई बार ऐसी भी मुश्किलें आती है जब उसी नांद में लोग गंदगी करने से बाज नहीं आते हैं और उन्हें साफ करना पड़ता है। बताते हैं बेजुबानों की सेवा करने में शुरुआती तो दिक्कतें हुईं थीं उनके पास पैसे नहीं होते थे। लेकिन धीरे-धीरे कुछ जानने वालों ने सहयोग भी कर दिया तो और भी बेहतरी से सेवा कार्यों में जुट गए।
अयोध्या जाकर बंदरों की करते सेवा,लाई व मूंगफली खिलाते
मुन्ना कहते हैं कि अधिक मुश्किलें बेजुबानों को कोरोना काल में हो रही थी, तब वह लाई की व्यवस्था खुद किए और लोगों से जूठे भोजन ज़रूर देने का अनुरोध किए। इससे जानवरों को भी भोजन मिल जाता था। प्रत्येक पखवाड़े त्रयोदशी (तेरस) को अयोध्या अवश्य जाते हैं वहां बंदरो के लिए लाई, केला व मूंगफली आदि खिलाकर सेवा करते हैं। अब उनसे कई और लोग राजन श्रीवास्तव, विवेक मणि व राजू शुक्ला भी प्रेरित हों रहे हैं, जो बेजुबानों की सेवा को बड़ा पुण्य का काम मानते हैं और सेवा करने के साथ सहयोग भी कर रहे हैं।
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