Vat Savitri Vrat 2023 Celebrating Faith and Tradition on May 26 अखंड सौभाग्य के लिए व्रती महिलाएं कल रखेंगी वट सावित्री व्रत, Gorakhpur Hindi News - Hindustan
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अखंड सौभाग्य के लिए व्रती महिलाएं कल रखेंगी वट सावित्री व्रत

Gorakhpur News - गोरखपुर में 26 मई को वट सावित्री व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। विवाहित महिलाएं इस दिन पति की लंबी उम्र के लिए वटवृक्ष की पूजा करेंगी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या पर मनाए जाने वाले इस पर्व का...

Newswrap हिन्दुस्तान, गोरखपुरSun, 25 May 2025 03:47 AM
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अखंड सौभाग्य के लिए व्रती महिलाएं कल रखेंगी वट सावित्री व्रत

गोरखपुर, निज संवाददाता। आस्था और परंपरा का संगम लिए वट सावित्री व्रत 26 मई को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाएगा। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन व्रती महिलाएं पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए बरगद की पूजा करती हैं। ज्योतिषाचार्य पं. शरद चंद मिश्रा बताते हैं कि शास्त्रीय दृष्टिकोण से यह तीन दिन तक चलने वाला व्रत है, लेकिन व्यवहार और प्रचलन के चलते यह 26 मई दिन सोमवार को ही मनाया जाएगा। 26 मई को सूर्योदय 5 बजकर 18 मिनट और कृष्ण चतुर्दशी का मान दिन में 10 बजकर 54 मिनट तक पश्चात अमावस्या तिथि है।

इस व्रत का पूजन-अर्चन अपराह्न के पश्चात ही किया जाता है इसलिए यही दिन इस व्रत के लिए मान्य रहेगा। इस दिन भरणी नक्षत्र प्रातः काल 7 बजकर 20 मिनट पश्चात कृतिका नक्षत्र है। चंद्रमा और सूर्य दोनों की स्थिति वृषभ राशि पर है। भारतीय विद्वत् महासंघ के महामंत्री ज्योतिषाचार्य पं. बृजेश पाण्डेय बताते हैं कि इस व्रत को वरगदाई के नाम से भी जाना जाता है। देवी सावित्री ने अपने दृढ़ निश्चय और भक्ति के बल पर यमराज से अपने मृत पति सत्यवान को पुनः जीवित किया था। तभी से यह पर्व स्त्रियों के सतीत्व, श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक बन गया है। पं. नरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि इस वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या दो दिन है, लेकिन 27 मई को प्रातः काल 8 बजकर 32 मिनट तक अमावस्या होने से यह पूर्व दिन 26 मई को ही सम्पन्न किया जाएगा। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में वटवृक्ष के तने पर कच्चा सूत लपेटकर पूजन करेंगी व सावित्री-सत्यवान की कथा सुनेंगी। कैसे करें पूजा ज्योतिषाचार्य पं. शरद चंद मिश्रा ने बताया कि अमावस्या के दिन बांस की दो टोकरी लें। उसमें सप्तधान्य भर लें। उनमें से एक पर ब्रह्मा और सावित्री व दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की प्रतिमा स्थापित करें। सावित्री के पूजन में सौभाग्य वस्तुएं (काजल, मेहंदी, सिन्दूर, चूड़ी, बिन्दी, वस्त्र, आभूषण, दर्पण इत्यादि) चढ़ाएं। इसके पश्चात माता सावित्री को मंत्र से अर्घ्य दें। इसके पश्चात वटवृक्ष का पूजन करें। वटवृक्ष का पूजन करने के पश्चात उसकी जड़ों में प्रार्थना करते हुए जल चढाएं। साथ ही परिक्रमा करते हुए वटवृक्ष के तने पर कच्चा सूत लपेटें। 108, 28 या फिर न्यूनतम सात बार परिक्रमा का विधान है। अंत में वटसावित्री व्रत की कथा सुननी चाहिए।

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