Holi was played with the ashes of burning pyres in Kashi how did this unique tradition come into existence what is its काशी में जलती चिताओं की भस्म से होली, भगवान शिव से जुड़ी परंपरा कैसे पड़ी, क्यों है खास, Uttar-pradesh Hindi News - Hindustan
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काशी में जलती चिताओं की भस्म से होली, भगवान शिव से जुड़ी परंपरा कैसे पड़ी, क्यों है खास

काशी में परंपरा को निभाते हुए मंगलवार को चिता भस्म की होली खेली गई। यहां के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर इस होली को खेलने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा। पहली बार बिना डीजे या किसी तेज आवाज वाले म्यूजिक के बिना ही होली खेली गई।

Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तानTue, 11 March 2025 06:28 PM
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काशी में जलती चिताओं की भस्म से होली, भगवान शिव से जुड़ी परंपरा कैसे पड़ी, क्यों है खास

पूरे देश में शुक्रवार 14 मार्च को होली खेली जाएगी। इससे पहले ही काशी में मंगलवार को होली खेली गई। यह होली काशी के महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर जलती चिताओं के भस्म से खेली गई। इस होली को खेलने और देखने के लिए काशी ही नहीं देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु उमड़े हैं। इस होली को मसाने की होली के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव से जुड़ी होने के कारण इस होली का खास महत्व है। भगवान शिव की नगरी में काशी विश्वनाथ धाम से सटे मणिकर्णिका घाट पर हर साल यह होली खेली जाती है। इस साल भी आम लोग ही नहीं, साधु-संतों ने भी भगवान शिव की पूजा के बाद यह होली खेली। इस दौरान पूरा वातावरण भक्तिमय बना रहा। भस्म के साथ ही रंग गुलाल और अबीर भी उड़ते रहे।इस बार खास यह भी रहा कि किसी डीजे या तेज आवाज वाले म्यूजिक सिस्टम का इस्तेमाल नहीं हुआ। पुलिस ने पहले ही इस पर रोक लगा दी थी।

काशी में मसाने या महाश्मशान की होली हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन खेली जाती है। रंगभरी एकादशी से ही यहां होली की शुरुआत हो जाती है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव मां गौरा का गौना कराकर लौटते हैं और इस दौरान खूब रंग गुलाल उड़ता है। इस दौरान भगवान शिव के साथ होली का आनंद उनके गण तो ले लेते हैं लेकिन भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेत आदि होली नहीं खेल पाते।

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चिता भस्म की होली

भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व आदि के ही अनुरोध पर अगले दिन भगवान शिव होली खेलने के लिए महाश्मशान पहुंचते हैं और यहां चिता भस्म से ही होली खेलते हैं। इसी मान्यता और परंपरा को निभाते हुए हर साल शिव के भक्त मसाने की होली का आयोजन करते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव भी उनके बीच होते हैं और वहां पर होली खेलते हैं।

काशी दुनिया में ऐसी एकमात्र जगह है जहां मृत्यु और मोक्ष के प्रतीक महाश्मशान में चिता की भस्म से होली खेली जाती है। भक्त भगवान शिव के स्वरूप मशाननाथ के विग्रह पर गुलाल और चिता की राख चढ़ाकर इस होली की शुरुआत करते हैं। इस आयोजन के साथ ही होली का रंग काशी में चटक हो जाता है। हर तरफ होली का उल्लास नजर आने लगता है।

चिता भस्म की होली

पुलिस ने पहली बार नहीं बजने दिया डीजे और लाउडस्पीकर

हर साल की तरह इस साल चिता भस्म की होली के दौरान डीजे या लाउडस्पीकर पर म्यूजिक नहीं बजने दिया गया। देर रात बड़ा स्पीकर घाट पर पहुंच तो लोगों ने इसकी सूचना ध्वनि प्रदूषण के क्षेत्र में काम करने वाले 'सत्या फाउंडेशन' को दी। इसके बाद संस्था के संस्थापक सचिव चेतन उपाध्याय ने रात में ही इसकी जानकारी पुलिस प्रशासन को दे दी।

चेतन उपाध्याय के अनुसार बनारस में मसाने की होली में डीजे के कारण हर साल लोगों में अनावश्यक उत्तेजना और उन्माद बढ़ जाता था मगर इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसका समाज के हर वर्ग ने स्वागत किया है। वैसे तो पुलिस आयुक्त श्री मोहित अग्रवाल ने डीजे पर प्रतिबंध के लिए पहले ही घोषणा कर दी थी, मगर मंगलवार सुबह पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल खुद अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ मणिकर्णिका घाट पर मौजूद थे और समय सीमा समाप्त होते ही भीड़ को हटाने तक मौजूद रहे और यह सुनिश्चित किया कि धर्म और परम्परा की आड़ में मणिकर्णिका घाट पर किसी भी प्रकार का ध्वनि प्रदूषण और अराजकता न हो।