बोले आजमगढ़ : महिला अस्पताल में दिन में गनीमत, रात में झेलते दुर्व्यवस्था की आफत
Jaunpur News - जिला महिला अस्पताल महिलाओं के इलाज की एकमात्र उम्मीद है, लेकिन यहां सुविधाओं की कमी है। मरीजों को रात में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। डॉक्टर अक्सर बाहर की दवाएं लिखते हैं, और गर्मी में ठंडे पानी...
जिला महिला अस्पताल महिलाओं के इलाज की एकमात्र उम्मीद है। जिले भर के सरकारी अस्पतालों से महिलाओं को यहीं रेफर किया जाता है। सबसे ज्यादा प्रसव भी इसी अस्पताल में कराए जाते हैं। इसके बावजूद यहां सुविधाओं का अकाल है। मरीजों के दबाव के बीच कई बार व्यवस्था कम पड़ने लगती है। तीमारदारों का कहना है कि दिन में गनीमत है, लेकिन रात में व्यवस्था बेपटरी हो जाती है। डॉक्टर बाहर की दवाएं लिखते हैं। भीषण गर्मी में ठंडे पानी की व्यवस्था नहीं है। बोतल बंद पानी खरीदना पड़ता है। महिला अस्पताल परिसर के विश्राम पार्क में ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में तरवां क्षेत्र के हरौरा ग्राम पंचायत के प्रधान नंदलाल ने असुविधाएं गिनाईं।
गांव की एक महिला की अस्पताल में डिलीवरी हुई है। वह परिजनों से मिलने आए हैं। बताया कि अस्पताल परिसर में गेट के सामने पार्क में बैठने की व्यवस्था है, लेकिन जिधर जेनरेटर रखा है, वहां पत्थर के कई बेंच तितर-बितर पड़ी हैं। उनका उपयोग लोगों के बैठने या लेटने में हो सकता है। सभी बेंच नई हैं, लेकिन इन्हें इस तरह रखना सरकारी संसाधन का दुरुपयोग है। उन्हीं बेंचों पर पेड़ की बड़ी सूखी डाल गिरी पड़ी है। पास में ही ट्रांसफार्मर और बड़ा जेनरेटर भी है। गर्मी में एक चिंगारी सूखे पेड़ में आग लगा सकती है। अस्पताल परिसर में कई बार फायर ब्रिगेड ने मॉकड्रिल कराई है, लेकिन उसका असर यहां के लोगों पर दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि यह बहुत संवेदनशील स्थान है। ग्राम प्रधान बोले, बगल में लगे नल से लगातार पानी गिर रहा है। लोग नल खोलकर चले जाते हैं। ऐसा लगता है, यहां की व्यवस्था की किसी को चिंता नहीं है। रात में रुकने में दिक्कत: भलुवाई गांव के विजय यादव ने महिला अस्पताल में पत्नी को भर्ती कराया था। बच्चे की नार्मल डिलीवरी हुई है। बोले, रात में रुकने की दिक्कत है। इमरजेंसी के चलते वार्ड के पास ही रातभर रूकना पड़ा। बताया कि परिसर के मुख्य गेट के सामने पार्क में बेंच लगी है, लेकिन वहां लेटते ही मच्छर काटने लगते हैं। यहां सफाई रहती तो मच्छरों का प्रकोप कम रहता। रैन बसेरा वार्ड से इतना दूर है कि मरीज को किसके भरोसे छोड़कर जाएं। रात में भगवान ही मालिक: दीनानाथ यादव ने बताया कि दिन में महिला अस्पताल की व्यवस्था चौकस नजर आती है, लेकिन रात में स्टाफ सीमित रहता है। पूरा सन्नाटा हो जाता है। ड्यूटी पर तैनात नर्सों का व्यवहार बदल जाता है। मरीज को दिक्कत होने पर बड़ी मुश्किल से कोई देखने आता है। नर्स डांटने लगती हैं। अगर परेशानी बढ़ी तो आननफानन में मरीज को रेफर कर छुटकारा पाने की कोशिश की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मरीजों के परिजनों की आफत आ जाती है। कई बार इसे लेकर हंगामस होता है। मजबूरी में परिजनों को रात में निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। ठंडा पानी भी मयस्सर नहीं: राहुल गुप्ता ने बताया कि वह मऊ जिले के मोहम्मदाबाद गोहना से यहां पत्नी को दिखाने सुबह ही आए थे। डॉक्टर ने नंबर आने पर पत्नी को देखा। इसमें कोई दिक्क्त नहीं हुई, लेकिन अस्पताल परिसर में ठंडे पानी की व्यवस्था नहीं होने से गला सूखने लगा। नल के पानी से प्यास बुझाने की कोशिश की, लेकिन संतुष्टि नहीं मिली। यहां दूरदराज से मरीज और परिजन आ रहे हैं। बच्चे भी हैं। इसलिए इस चिलचिलाती गर्मी में गला तर करने के लिए प्रशासन को ठंडे पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। देर से मिलती है जांच रिपोर्ट: शकुंतला ने बताया कि वह अंबेडकरनगर के राजे सुल्तानपुर से बहू का इलाज कराने के लिए आई थीं। बच्चे भी साथ हैं। सुबह सात बजे सभी लोग घर से निकल गए थे। यहां डॉक्टर को दिखाने, उनकी लिखी जांच कराने और रिपोर्ट लेने में कुल पांच घंटे लग गए। यहां जल्दी आने पर भी भीड़ ही मिलती है। एक तो जांच के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है। उसके बाद रिपोर्ट का इंतजार। रिपोर्ट देने की व्यवस्था थोड़ी आसान होनी चाहिए। बच्चों के साथ इतनी देर तक यहां रहने में दिक्कत हो जाती है। घर ये अकेले किसके भरोसे छोड़ें। सीएचसी में हो एसएनसीयू: सुरेंद्र कुमार ने बताया कि इमरजेंसी में सीएचसी की चिकित्सा व्यवस्था पटरी से उतरने लगती है। वहां नवजात की तबीयत बिगड़ने पर आननफानन में महिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। एंबुलेंस आने और महिला अस्पताल तक पहुंचने में समय लग जाता है। यहां आने पर बताया जाता है कि महिला अस्पताल के एसएनसीयू में 12 बच्चों को ही जार में रखने की व्यवस्था है। स्वास्थ्य विभाग को इस पर ध्यान देना चाहिए। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी एसएनसीयू की व्यवस्था होनी चाहिए। मरीजों और उनके तीमारदारों को राहत मिलेगा। परिसर में शौचालय नहीं : इंद्रदेव ने बताया कि महिला अस्पताल के ओपीडी में डॉक्टरों की मौजूदगी रहती है। इलाज की व्यवस्था भी ठीक है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी है। यह अस्पताल शहर के भीड़ वाले बड़ादेव इलाके में है। यहां चारों तरफ घनी आबादी है। परिसर में स्वास्थ्य कर्मियों के आवास भी हैं। अस्पताल में ग्रामीण क्षेत्रों से काफी भीड़ आती है। महिलाओं के साथ परिजन भी रहते हैं। लेकिन यहां परिसर में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। अस्पताल को इसका ध्यान देना चाहिए। यहां पूछने पर लोग बाहर सार्वजनिक शौचालय में जाने की सलाह देते हैं। डिलीवरी के बाद नेग का दबाव: मनभावती ने बताया कि उसके घर की महिला की डिलीवरी हुई है। जब तक डिलीवरी नहीं हुई थी, कोई पूछने नहीं आ रहा था। जैसे ही बच्चे की पैदाइश हुई, तमाम कर्मचारी हालचाल लेने आने लगे। सभी को नेग चाहिए था। कहा, ऐसा नहीं है कि यह केवल हमारे साथ हो रहा है। अन्य परिजनों को भी इसी तरह परेशान किया जाता है। मजबूरी में कोई कुछ नहीं बोल पाता। नेग देकर अपनी जान छुड़ानी पड़ती है। बच्चे को पास से नहीं देखने देते : ऊंचेगांव ककरही से आए मनभावती और सुरेश राजभर की बहू को बेटा पैदा हुआ है। नवजात को डॉक्टरों ने महिला अस्पताल के एसएनसीयू में रखा है। सुरेश बोले कि बच्चे की हालत जानने के लिए हम परेशान हैं। बताया जा रहा है कि एसएनसीयू में बच्चे को पास से देखने की अनुमति नहीं है। मन बेचैन है। करीमुद्दीनपुर के अनिल की पत्नी को सात माह में ही सीएचसी रानीपुर में बेटी पैदा हो गई। कुछ देर बाद वहां के डॉक्टरों ने बच्ची को रेफर कर दिया। महिला अस्पताल बच्ची को एसएनसीयू के जार में रख दिया गया। रात में बच्ची की हालत जानने का प्रयास किया तो डॉक्टरों ने कहा कि ज्यादा परेशान न हों। रात में एसएनसीयू के पास ही रहा। कहा कि एसएनसीयू में सुरक्षा के नाम पर कुछ ज्यादा कड़ाई होती है। डॉक्टर लिखती हैं बाहर की भी दवा: जहानागंज के पुनर्जी से पत्नी का इलाज कराने आए परवेश ने बताया कि डॉक्टर ने पर्ची पर कई दवाएं लिखी थीं। कुछ दवाएं अस्पताल में मिल गईं, लेकिन कुछ के बारे में बताया गया कि बाहर मिलेंगी। हम आर्थिक रूप से उतना सक्षम नहीं हैं कि बाहर की दवाएं खरीद सकें। अस्पताल प्रशासन को महिलाओं से संबंधित सभी दवाएं अपने स्टोर में रखनी चाहिए। अगर मरीजों को बाहर से दवा खरीदना पड़ रही है तो स्वास्थ्य विभाग के दावे पर सवाल खड़े होते हैं। प्रस्तुति : रत्नप्रकाश त्रिपाठी/रामजीत चंदन कोट बहू को अस्पताल में भर्ती कराया है। भर्ती कराते समय जो परेशानी झेलनी पड़ी ,उसे अभी नहीं बता सकती। भानुमति बहू को दिखाने के लिए सुबह सात बजे ही घर से रवाना हो गई। साढ़े आठ बजे अस्पताल पहुंची। रिपोर्ट देने में देरी की गई। शकुंतला आपरेशन से बहू को बेटा पैदा हुआ है। लड़का पैदा होने की खुशी है। पहले ध्यान न देने वाले कर्मचारी नेग लेने पहुंच जाते हैं। मनभावती अस्पताल में परिजनों को रात टहल कर गुजारनी पड़ती है। मरीज का हाल जानने के लिए बाहर बेंच पर बैठे रहना पड़ता है। विजय यादव महिला अस्पताल की हकीकत देखना हो तो रात में आइए। डाॅक्टर का पता नहीं रहता है। नर्सें दुर्व्यवहार करती हैं। दीनानाथ यादव मऊ से मरीज को लेकर बेहतर सुविधा की उम्मीद से लेकर आया हूं। टंकी पर गया तो शीतल पेय नहीं मिल पाया। राहुल गुप्ता अस्पताल में मरीजों के लिए पर्याप्त दवा की व्यवस्था नहीं है। डॉक्टर बाहर से दवा लिख देते हैं। इससे दिक्कत होती है। प्रवेश अस्पताल के अंदर की व्यवस्था थोड़ी ठीक-ठाक है, मगर बाहर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इंद्रदेव अस्पताल के बाहर मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, जिससे तीमारदारों को झेलना पड़ता है। अनिल महिला अस्पताल की तरह सीएचसी पर भी आईसीयू की व्यवस्था होनी चाहिए। आईसीयू न होने से रात में यहां आना पड़ गया। सुरेंद्र कुमार गौतम एक कदम स्वच्छता की ओर स्लोगन लिखा है। तीमारदारों के लिए बैठने की जगह पर पेड़ की डाल शोभा बढ़ा रही है। नंदलाल गर्मी के मद्देनजर ताल के बाहर ठंडे पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। अस्पताल प्रबंधन ध्यान नहीं दे रहा है। उमेश राजभर बोले जिम्मेदार रात के समय भी अस्पताल में बेहतर व्यवस्था रहती है। नर्सों को मरीजों और तीमारदारों के साथ बेहतर व्यवहार करने के लिए निर्देशित किया जाएगा। ट्रांसफार्मर के पास से सूखी डाली को जल्द हटवाया जाएगा। अस्पताल में लोगों के लिए शीतल पेयजल की भी व्यवस्था की जाएगी। डॉ. विनय सिंह यादव, सीएमएस, जिला महिला अस्पताल सुझाव 1. मरीजों के परिजनों के लिए गर्मी को देखते हुए शीतल पेय की पर्याप्त मात्रा में व्यवस्था होनी चाहिए,ताकि परिजनों की प्यास बुझ सके। 2. एक कदम स्वच्छता की ओर सरकार के दावे का अस्पताल के बाहर कैंपस में भी पालन करना चाहिए। स्वच्छता के बीच परिजन मरीजों का इंतजार कर सकें। 3. अस्पताल कैंपस में मच्छरों के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए नगर पालिका प्रशासन को प्रतिदिन फाॅगिंग की जानी चाहिए,ताकि परिजनों को रात में राहत मिल सके। 4. रात में मरीजों के परिजनों के रैन बसेरा में रहने के दौरान सुरक्षा गार्ड होना चाहिए। 5. ट्रांसफार्मर के पास गिरी पेड़ की सूखी डाल तत्काल हटाना चाहिए। क्योंकि इससे चोट लगने का खतर बना रहता है। शिकायतें 1. रात में प्रसूता को भर्ती कराने के समय चिकित्सक नहीं मिल पाते हैं। नर्सेज सहित अन्य कर्मचारियों का व्यवहार अच्छा नहीं रहता है। 2. अस्पताल के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे छांव में बैठने के लिए बेंच तो है,पर उस पर पेड़ की डाल गिरी है। इसकी वजह से परिजनों को जगह नहीं मिल पाती है। 3. गर्मी के मौसम में भी शीतल पेय की आपूर्ति नहीं की जा रही है। गरम पानी होने की वजह से परिजनों को बाहर बोतल का पानी खरीदना पड़ता है। 4. अस्पताल के मुख्य गेट पर वाहनों का जमघट रहता है। दूसरे गेट से चार चक्का वाहन सहित एंबुलेंस जाने के लिए सुविधा नहीं है। 5. अस्पताल कैंपस में पुरुषों के लिए कोई सार्वजनिक शौचालय नहीं है। पुरुषों को बाहर सार्वजनिक शौचालय ढूढ़ना पड़ता है।
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