अस्पतालों में फाइबर शीट, फाल्स सीलिंग बन रही खतरनाक
Lucknow News - फोटो--------- - अस्पतालों में लगने वाली फॉल सीलिंग, फाइबर

फोटो--------- - अस्पतालों में लगने वाली फॉल सीलिंग, फाइबर शीट हो रही घातक
लखनऊ, संवाददाता।
सरकारी हो या निजी अस्पताल। हर अस्पताल में मरीजों को गर्मी से बचाने के लिए एसी लगवाए जाते हैं। साथ ही अस्पताल का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। ऐसे में अस्पतालों में फॉल सीलिंग, फाइबर शीट से वार्डों में बंटवारा आदि किया जाता है। कई साल पुराने बने सरकारी अस्पतालों की वायरिंग के तार भी कमजोर हो चुके हैं। अधिक लोड होने और जर्जर तारों से आग लगने की घटनाएं अधिक होने लगी हैं। इसके अलावा सीसीटीवी कैमरों, नेट वाईफाई के लिए भी तार का इस्तेमाल बढ़ गया है। फायर एक्सपर्ट साहिल का कहना है कि अस्पतालों में वार्ड या कहीं भी एसी या कोई नया उपकरण लगाने पर वहां की वायरिंग की जांच कर लेना चाहिए। फाइबर शीट और तारों में आग तेजी से फैलती है। साथ ही बदबूदार धुआं भी निकलता है।
स्मोक डिटेक्टर लगे, स्प्रिंक्लर आज तक नहीं
अस्पताल के वार्डों में फॉल सीलिंग की छत पर ही स्मोक डिटेक्टर लगाए जाते हैं। यह स्मोक डिटेक्टर भी कई जगह पर चलते ही नहीं हैं। साथ ही आज तक सरकारी अस्पतालों की छतों पर स्प्रिंक्लर नहीं लगाए जा सके हैं। इससे आग लगने पर कोई-कोई स्मोक डिटेक्टर अलर्ट के लिए सायरन की तरह बजते तो हैं, लेकिन स्प्रिंक्लर न होने से वार्ड में पानी की छिड़काव नहीं हो पाता है। इंदिरा नगर के साहिल ने बताया कि इससे आग प्लास्टिक के बेड, बंटवारे के लिए लगाई गई फाइबर शीट तेजी से आग पकड़ लेती है। इससे उसे काबू पाने में दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। जानकारों की माने तो आग को मौके पर पर ही रोकने के लिए यदि स्प्रिंक्लर से पानी का छिड़काव होने लगता है तो आग आगे फैल नहीं पाती है। बेड, फर्श, चादरें, गद्दे स्प्रिंक्लर चलने से भीग जाते हैं। आग फैलने का खतरा कम हो जाता है।
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