Air Quality Crisis in Meerut Development Leads to Increased Pollution and Health Risks बोले मेरठ : विकास की दौड़ में प्रदूषण से घुट रहा दम, Meerut Hindi News - Hindustan
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बोले मेरठ : विकास की दौड़ में प्रदूषण से घुट रहा दम

Meerut News - मेरठ में विकास की गतिविधियों के साथ वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। धूल, कूड़े और निर्माण कार्यों के कारण शहर की हवा जहरीली हो गई है। पीएम-10 कणों की बढ़ती संख्या से सांस संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।...

Newswrap हिन्दुस्तान, मेरठSat, 24 May 2025 12:47 AM
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बोले मेरठ : विकास की दौड़ में प्रदूषण से घुट रहा दम

मेरठ। विकास की रफ्तार जब इंसान की सांसों पर भारी पड़ने लगे तो सवाल उठता है कि क्या यह तरक्की सच में जिंदगी को बेहतर बना रही है। मेरठ में विकास बयार तो नजर आ रही है लेकिन धूल के गुबार और बढ़ते प्रदूषण ने लोगों का दम घोंटना शुरू कर दिया है। हर ओर निर्माण कार्यों की आवाज सुनाई देती है, लेकिन इस आवाज में आम आदमी की सांसें घुटती जा रही हैं। सड़कों पर उड़ती धूल, कटते पेड़ और विभागों की लापरवाही ने मेरठ की हवा को जहर बना दिया है। न व्यापार चैन से हो रहा है, न जीवन सामान्य रह गया है।

लगातार बढ़ते एक्यूआई से साफ है कि शहर अब सांस लेने में दिक्कतें महसूस कर रहा है। हिन्दुस्तान बोले मेरठ ने बढ़ते प्रदूषण को लेकर लोगों से संवाद कर उनके मन की बातों को जाना। विकास की राह पर सरपट दौड़ में मेरठ का दम घुटने लगा है। शहर के अंदर से बाहर तक निर्माण कार्य, सड़कों पर उड़ती धूल, सड़क किनारे गायब पेड़ और जिम्मेदार विभागों द्वारा ऐहतिहाती उपाय नहीं होने से मेरठ की हवा में धूल का गुबार है। गुरुवार को सात वर्षों में मई में तीसरे सर्वाधिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ने आम लोगों से लेकर मरीजों की मुश्किल बढ़ा दी। 2022 से 2025 तक के मई महीनों में शहर में मुख्य प्रदूषण पीएम-10 मुख्य प्रदूषक दर्ज हुआ। पीएम-10 वे बारीक कण हैं, जिनका आकार 10 माइक्रोमीटर से कम है। पीएम-10 के लिए निर्माण स्थल, लैंडफिल और जमीन से उड़ती धूल, आग, जलता कचरा, औद्योगिक इकाइयां, परागकण शामिल हैं। पीएम-10 के गुबार में लिपटा हुआ है शहर खुले में निर्माण कार्य, बिना ढके रखी निर्माण सामग्री, खुले में जलता कूड़ा और शहर से निकले कचरे के ढेर पीएम-10 के गुबार के लिए जिम्मेदार हैं। किला रोड और लोहियानगर में लगातार कूड़े के ढेर में आग लग रही है। गढ़ रोड पर इस वक्त सड़क निर्माण कार्य चल रहा है। शहर के आसपास जितनी भी सड़कें बनी हैं, उनमें से अधिकांश के किनारे घने एवं छायादार पेड़ नहीं हैं। पीएम-10 में सड़क की धूल 23% जिम्मेदार 2020 में तैयार मेरठ सिटी क्लीन एयर एक्शन प्लान की रिपोर्ट के अनुसार इंडस्ड्री और सड़कें पीएम-10, पीएम-2.5, सल्फरडाइ ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड का मुख्य स्रोत हैं। इसमें पीएम-10 और ऑक्साइड के स्तर सर्वाधिक हैं। रिपोर्ट के अनुसार पीएम-10 में सड़क की धूल की हिस्सेदारी 23 फीसदी है। प्रतिदिन 10 हजार 89 किग्रा धूल पीएम-10 के रूप में शहर से निकलती है। पीएम-10 में हॉट मिक्स प्लांट की हिस्सेदारी 13, इंडस्ट्री की 38 फीसदी है। एनजीटी की सख्ती के बाद शहर की इंडस्ट्री ने व्यापक रूप से तकनीकी उपाय किए हैं, लेकिन इस अवधि में विकास कार्यों के चलते निर्माण एवं खुदाई कार्य बढ़े हैं। सड़क चौड़ीकरण में बड़े पेड़ हट चुके हैं। 2025 में आधे मई में ही औसत एक्यूआई 137 केंद्रीय प्रदूषण एवं नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार मई 2025 में मात्र 16 दिनों का औसत एक्यूआई स्तर 137 है। मेरठ में 2020 से वर्षभर सीपीसीबी केंद्रों से हवा की गुणवत्ता की निगरानी हो रही है। 2020 में मई में मेरठ का औसत एक्यूआई 138, 2021 में 155, 2022 में 156, 2023 में 164 एवं 2024 में 179 दर्ज हुआ है, यानी मई में प्रदूषण निरंतर बढ़ रहा है और इसमें मुख्य प्रदूषक पीएम-10 है। गर्मी में धूल-धुएं की मार इंटरनेशनल फोरम फॉर एन्वॉयरमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आई-फॉरेस्ट) की अक्तूबर 2024 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, गर्मी के महीनों में मेरठ में पीएम-10 का औसत 216.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा है। यह स्तर 2020-2023 की अवधि का है। सुबह आठ से दस बजे और शाम को सात से 11 बजे की अवधि में पीएम-10 एवं पीएम-2.5 का स्तर चरम पर रिकॉर्ड हुआ। यह स्थिति प्रति घंटे के ट्रेंड के आधार पर है। मानकों से कई गुना प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार 24 घंटे की अवधि में पीएम-10 का औसत स्तर 45 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर होना चाहिए। वार्षिक औसत स्तर पर यह 15 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर होना चाहिए, लेकिन मेरठ में पीएम-10 का स्तर मानकों से कई गुना है। आई-फॉरेस्ट की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में मेरठ में पीएम-10 का औसत वार्षिक स्तर 187.6 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज हुआ था। अन्य रिपोर्ट के अनुसार 2024 में यह स्तर 139.9 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर दर्ज हुआ, जो मानकों से कई गुना है। ओपीडी में 100 से ज्यादा सांस के मरीज मेडिकल अस्पताल की चेस्ट एवं टीबी ओपीडी में रोजाना लगभग 160 से 180 मरीज परामर्श के लिए पहुंचते हैं। इन मरीजों में 100 से ज्यादा मरीज ऐसे होते हैं, जो सीओपीडी, सांस से संबंधित रोगों से ग्रस्त होते है। धूल, मिट्टी से फैले प्रदूषण से ऑक्सीजन लेवल घट जाता है। अस्थमा अटैक, सांस के रोगियों की परेशानी बढ़ जाती है। प्रदूषण बढ़ने से दूषित हो रही हवा में सांस लेना मुश्किल हो गया है। बोले डॉक्टर प्रदूषण से बच्चे अस्थमा की चपेट में प्रदूषण के कारण बच्चों में एलर्जी, खांसी, बलगम, रात में सोते-सोते घबराहट से उठ जाना, त्वचा में दाने, खुजली आदि समस्याएं हो रही हैं। वायु प्रदूषण से बच्चे अस्थमा की चपेट में आ रहे हैं। बच्चों के फेफड़े कमजोर होते हैं। ऐसे में घर में साफ-सफाई का ध्यान रखें, स्कूली वाहनों में सीट के अनुसार बच्चों को बैठाएं। भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचें। - डॉ. अमित उपाध्याय, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ हवा में केमिकल से आंखों की बीमारी हवा में फैले प्रदूषण में केमिकल है। इसके संपर्क में आने से आंखों का गंभीर इंफेक्शन बढ़ रहा है। मोतियाबिंद, पलकों में सूजन, आंखों से पानी आना समेत अन्य गंभीर बीमारियां हो रही हैं। आंखों में इंफेक्शन होने पर रगड़े नहीं, आंखों को धूल, धुएं से बचाएं। साफ पानी से आंखों को कई बार धोएं। बाहर जाने से बचें, आर्टिफिशियल टीयर्स दवा का प्रयोग करें। - डॉ. संदीप मित्थल, नेत्र सर्जन ऑक्सीजन की कमी से हार्ट अटैक का खतरा वायु प्रदूषण से सांस के रास्ते कार्बन के छोटे पार्टिकल फेफड़ों में जम जाते हैं। इसकी वजह से नसें सिकुड़ जाती हैं। कार्बन की वजह से शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। हृदय में ऑक्सीजन की मात्रा पूरी नहीं होने की वजह से अस्थमा, हार्ट अटैक, फेफड़े खराब होने समेत कई गंभीर बीमारियां हो रही हैं। - डॉ. अमित अग्रवाल, चेस्ट फिजिशियन बढ़ानी पड़ रही दवा की डोज प्रदूषण की वजह से रेस्पेरेटरी एलर्जी, लम्बे समय से खांसी, अस्थमा के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। इसके चलते कई मरीजों की दवा बदलनी पड़ी तो कई की जल्दी-जल्दी डोज बढ़ानी पड़ रही है। धूल से दूर रहना चाहिए। अस्थमा के रोगियों की ओपीडी में संख्या बढ़ गई है। अस्थमा रोगियों की संख्या बढ़ना गंभीर बात है। - डॉ. वीएन त्यागी, वरिष्ठ चेस्ट रोग विशेषज्ञ फेफड़ों में घुल रही जहरीली गैस वायु में कार्बन मोनोआक्साइड, नाइट्रोजन फैली हुई है। शहर में बढ़ते वाहनों की संख्या एक बड़ी वजह है। गैस के कण फेफड़ों में पहुंचकर रक्त में चले जाते हैं। शोध में इसकी पुष्टि हो चुकी है कि भीड़भाड़ वाले शहरों में वायु प्रदूषण की वजह से कण फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं। इसकी वजह से अस्थमा अटैक, फेफड़ों का कैंसर समेत अन्य सांस से संबंधित गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ रहा है। - डॉ. संतोष मित्तल, विभागाध्यक्ष चेस्ट एवं टीबी एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज समस्या - शहर के बाहर और अंदर सड़क एवं अन्य निर्माण कार्य - अनियंत्रित आवासीय और व्यवसायिक निर्माण गतिविधियां - खुले लैंडफिल ग्राउंड, सड़क किनारे पड़े कूड़े के ढेर - खुले में कूड़ा जलना शहर की यह मुख्य समस्या है। - विभागों के पास धूल नियंत्रण के उपाय नहीं होना - सड़क किनारे घने एवं छायादार पेड़ों का अभाव यह हो समाधान - शहर के अंदर सड़क एवं अन्य निर्माण कार्य जल्द पूरे हों - अनियंत्रित निर्माण गतिविधियों पर ध्यान दिया जाए - शहर में खुले लैंडफिल ग्राउंड, सड़क किनारे कूड़ा साफ हो - खुले में कूड़ा जलाया जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित हो - संबंधित विभागों के पास धूल नियंत्रण के उपाय होने चाहिए - निर्माण के साथ ही सड़क किनारे छायादार पेड़ लगाए जाएं मेरठ में इस हफ्ते एक्यूआई 10 मई 102 11 मई 124 12 मई 174 13 मई 107 14 मई 174 15 मई 313 16 मई 190 स्रोत: सीपीसीबी धूल, मिट्टी ने सांस लेना किया दूभर इस समय गढ़ रोड पर काम चल रहा है। वाहनों का आवागमन भी बहुत ज्यादा है और उनसे उड़ने वाली धूल मिट्टी से कई बार सांस लेना दूभर हो जाता है। हालात ये हैं कि दुकान का दरवाजा खुलते ही अंदर धूल ही धूल हो जाती है। लोगों को इससे सांस तक लेने में दिक्कत होने लगती है। गड्ढे खुदे पड़े हैं और इनमें से ग्राहक भी आने से कतराते हैं। ऐसे में व्यापारी भी काफी धीमा हो गया है। संबंधित विभाग को दिन में एक बार सड़कों पर पानी का छिड़काव तो करवाना ही चाहिए, ताकि धूल मिट्टी बैठ जाए। लोगों ने बयां किया दर्द जब से सड़कों के साइड में खुदाई शुरू हुई है, तब से दिक्कतें भी बढ़ गई हैं। प्रदूषण तो है ही साथ में व्यापारियों का व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। - प्रदीप सचदेवा दिनभर सड़कों पर धूल उड़ती है, यह धूल-मिट्टी लोगों के अंदर ही जा रही है, पूरे दिन में एक बार नगर निगम द्वारा पानी का छिड़काव होना चाहिए। - अनुराग बंसल सड़क पर निकल जाओ तो पता चल जाएगा कि कितना प्रदूषण है, चारों ओर धूल ही नजर आती है, जल्द ही निर्माण कार्य पूरा हो तो राहत मिले। - कदीर चौहान सड़कों पर इतनी मिट्टी और धूल उड़ती है कि कई बार सांस लेना दूभर हो जाता है, व्यापारी दिनभर दुकान को साफ करते रहते हैं, जल्द समाधान हो। - गौरव गुप्ता प्रदूषण तो होना ही है, जब दिनभर सड़कों पर धूल-मिट्टी उड़ती रहती है, यह धूल सांस के साथ अंदर जाती है, लोगों को कई तरह की बीमारी होती है। - भरत चौधरी सुबह दुकान में आते हैं, तो धूल-मिट्टी भरी रहती है, दिनभर दुकान पर रहते हैं, यह हमारी सांसों में भी जाती है, पानी का छिड़काव तो होना चाहिए। - अंकित कुमार पूरे दिन सड़कों पर जहां देखो धूल ही उड़ती मिलती है, चारों तरफ सड़क पर खुदाई हो रखी है, काम चल रहा है, ऐसे में प्रदूषण होना लाजमी है। - पंकज गुप्ता अगर दिन में एक बार नगर निगम पानी का छिड़काव कर दे तो इससे धूल मिट्टी बैठ जाती है, कुछ समय तो लोगों को राहत महसूस होगी। - सम्राट रस्तोगी यह धूल लोगों के जहन में जा रही है, इससे बीमारी ही होगी, जल्द से जल्द निर्माण कार्य पूरा हो तो प्रदूषण की व्यवस्था में भी सुधार होगा। - तबरेज चौहान मार्केट के बाहर थोड़ी ही देर में गाड़ियों पर इतनी धूल चढ़ जाती है, कि जैसे कई दिनों से गाड़ी खड़ी हो, सड़कों पर बहुत ज्यादा धूल मिट्टी है। - मोंटू सैनी देखा जाए तो प्रदूषण कम करने के लिए दिन में सड़कों पर पानी का छिड़काव होना चाहिए, जिससे धूल मिट्टी ना उड़े और प्रदूषण भी कम हो। - बादल गुप्ता शहर में निर्माण कार्य चल रहा है, जिससे लगातार धूल-मिट्टी हवा में घुल रही है, यही लोगों की सांसों में जा रही है, इससे परेशानी होनी तय है। - आसिफ चौहान गढ़ रोड तो पूरी खुदी पड़ी है, सड़कों पर धूल, मिट्टी ही उड़ती हुई नजर आती है, कहीं पुलिया बन रही है, तो कहीं नालों का निर्माण हो रहा है। - अकरम गाजी सड़कों पर धूल मिट्टी इतनी उड़ती है कि सांस लेना भारी पड़ जाता है, शहर की आबोहवा ठीक हो, इसके लिए प्रशासन स्तर पर कुछ किया जाए। - राजीव गुप्ता

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