Challenges Faced by Document Writers in Meerut A Call for Recognition and Basic Facilities बोले मेरठ : दस्तावेज लेखकों को मिले अलग पहचान, प्रशिक्षण की दरकार, Meerut Hindi News - Hindustan
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बोले मेरठ : दस्तावेज लेखकों को मिले अलग पहचान, प्रशिक्षण की दरकार

Meerut News - मेरठ में दस्तावेज लेखकों का पेशा महत्वपूर्ण होते हुए भी उपेक्षित है। ये लोग कानूनी दस्तावेज तैयार करते हैं, लेकिन उन्हें उचित सुविधाएं और पहचान नहीं मिलती। दस्तावेज लेखकों ने सरकार से बुनियादी...

Newswrap हिन्दुस्तान, मेरठSun, 8 June 2025 05:08 PM
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बोले मेरठ : दस्तावेज लेखकों को मिले अलग पहचान, प्रशिक्षण की दरकार

मेरठ। हमारे समाज में हर पेशा महत्वपूर्ण होता है, लेकिन कुछ पेशे ऐसे होते हैं जो लोगों के जीवन की नींव होते हैं और फिर भी उन्हें समाज में उचित मान-सम्मान, पहचान और सुविधा नहीं मिल पाती। ऐसा ही एक पेशा है, दस्तावेज लेखक का जो तहसील, कोर्ट परिसर, कचहरी या रजिस्ट्रार ऑफिस के बाहर बैठे मिलेंगे। ये लोग न केवल लोगों की जमीन-जायदाद, कानूनी दस्तावेज, अनुबंध या एफिडेविट तैयार करते हैं, बल्कि आम जनता के लिए एक मार्गदर्शक भी होते हैं। यही दस्तावेज लेखक खुद की पहचान और एक आयाम चाहते हैं। दस्तावेज लेखक सिर्फ कागज पर शब्द नहीं लिखते, वे आम जनता के विश्वास की नींव रखते हैं।

गरीब से गरीब व्यक्ति भी सबसे पहले दस्तावेज लेखक के पास ही जाता है, जब उसे अपनी जमीन बचानी हो या पहचान साबित करनी हो। मेरठ जिले में दस्तावेज लेखक की बात करें तो 300 से ज्यादा लाइसेंस वाले दस्तावेज लेखक हैं। जो नीतियों और नियोक्ताओं के बीच पिसते नजर आते है। ये लोग न तो सरकारी कर्मचारी हैं, न ही निजी कंपनी से जुड़े होते हैं। इनकी आजीविका पूरी तरह से आने वाले लोगों की मर्जी पर निर्भर होती है। कई कोर्ट और तहसील परिसरों में आज भी लेखकों के लिए कोई निश्चित शेड, बिजली, पानी या शौचालय की सुविधा नहीं है। गर्मी हो या बरसात, उन्हें खुले आसमान के नीचे बैठना पड़ता है। इन्हीं दस्तावेज लेखकों की परेशानियों की सुध लेने के लिए हिन्दुस्तान बोले मेरठ टीम ने कचहरी परिसर पहुंचकर उनसे संवाद किया। उनकी समस्याओं और समाधान के लिए सुझाव पर बातचीत की। बुनियादी सुविधाओं का अभाव दस्तावेज लेखकों का कहना है, कि हमारे लिए कोर्ट और तहसील परिसरों में आज भी कोई निश्चित व्यवस्था नहीं है। बिजली, पानी या शौचालय की सुविधा का भी अभाव है। दस्तावेज लेखकों की निश्चित कमाई नहीं होती। कोई दिन अच्छा होता है, तो कोई दिन ऐसा निकल जाता है, जब चाय तक का खर्च भी नहीं निकलता। यहां 2006 में रजिस्ट्री प्रक्रिया का कंप्यूटरीकरण किया गया। इसके बाद से लोगों के दस्तावेजों का कार्य कंप्यूटर द्वारा होने लगा। जमीन जायदादों की खरीद-फरोख्त का काम भी कंप्यूटर पर हो रहा है, लेकिन समस्या दस्तावेज लेखकों को झेलनी पड़ती है। सर्वर बनता है समस्या का कारण दस्तावेज लेखकों का कहना है, कि अब टोकन सिस्टम चल रहा है, जिसके बाद ही रजिस्ट्री का नंबर लगता है। रजिस्ट्री के दौरान टोकन लेने के बाद भी अगर ऑफिस में सर्वर डाउन हो जाए तो पूरी प्रक्रिया ही अटक जाती है। जिससे रजिस्ट्री में देरी होती है और इसके कारण पार्टियों में विवाद भी उत्पन्न होता है। खरीदने और बेचने वाली पार्टियों द्वारा इसका ठीकरा दस्तावेज लेखक पर फोड़ा जाता है। जबकि हमारी कोई गलती नहीं होती, पूरी समस्या ही ऑनलाइन सिस्टम की है, जिसको ठीक किया जाना चाहिए। रजिस्ट्री ऑफिस का बदले समय दस्तावेज लेखकों का कहना है कि पहले रजिस्ट्री ऑफिस का समय सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक हुआ करता था, लेकिन अब यह समय दस से चार बजे तक कर दिया गया है। वहीं बीच में आधे घंटे का लंच भी होता है। जिससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। एक बड़ी समस्या ये भी है, कि स्टांप और टोकन की साइट एक दूसरे से कनेक्ट हैं। अगर किसी भी साइट में दिक्कत आती है, तो दोनों काम रुक जाते हैं। वहीं ऑनलाइन स्टांप के लिए दी जाने वाली कमांड के बीच बिजली चली जाए तो मामला ज्यादा फंस जाता है। जिसका समाधान आसान नहीं होता, और भटकना पड़ता है। प्राइवेट कंपनी कर सकती है नुकसान दस्तावेज लेखक मनोज चौहान कुराली, संघ संरक्षक संजय कुमार गुप्ता और महामंत्री अनिल शर्मा का कहना है, कि रजिस्ट्री संबंधित काम को प्राइवेट कंपनी के हाथ में ना दिया जाए। पहले भी रिकॉर्ड मैंटेन के लिए कंपनी को ठेका दिया गया था, जो छह महीने में ही चली गई थी। अब फिर फ्रंट ऑफिस बनाने की तैयारी चल रही है, जो कभी भी लोगों के दस्तावेजों को लेकर बड़ा खेल कर सकते हैं। जमीनों के दस्तावेजों की जानकारी किसी प्राइवेट कंपनी के हाथ में दी जानी सही नहीं है। दस्तावेज लेखक संघ इसका विरोध करता है। दाखिल खारिज की तय हो समय सीमा दस्तावेज लेखकों का कहना है, कि सरकार पूरे काम को पेपरलेस करना चाहती है, लेकिन इससे साइबर फ्रॉड की घटनाएं बढ़ रही हैं। पहले दस्तावेजों की तीन फाइलें हुआ करती थीं, एक रिकॉर्ड में होती थी, एक तहसील जाती थी और एक पार्टी के पास रहती थी। लेकिन अब एक ही फाइल निकलती है और उसको ही स्कैन किया जाता है। जिस उद्देश्य से सरकार ने यह सिस्टम लागू किया वह पूरा नहीं हो पा रहा है। दाखिल खारिज में बहुत परेशानी होती है। जबकि दाखिल खारिज की समय सीमा 35 दिन होती है, लेकिन इसके लिए लोगों को छह-छह महीने लग रहे हैं। इसका जिम्मा भी हमारे सिर रख दिया जाता है, जबकि दिक्कतें ऊपर से होती हैं। मिले सुविधाएं, तो सुधरे व्यवस्थाएं दस्तावेज लेखकों का कहना है कि हमें एक यूनीक आईडी दी जाए ताकि हम अपने कार्य को बिना किसी परेशानी के कर सकें। चार रजिस्ट्री ऑफिस हैं, इनके आसपास ही दस्तावेज लेखकों के लिए बैठने की व्यवस्था की जाए। एक निश्चित जगह दी जाए ताकि परेशानी ना हो। परिसर में पीने के पानी की व्यवस्था हो, साथ ही रजिस्ट्री भवन की जर्जर बिल्डिंग का सुधार किया जाए। रजिस्ट्री ऑफिस की एक बिल्डिंग बने जिसमें सभी रजिस्ट्री का प्रबंध हो, ताकि लोगों को इधर-उधर ना भटकना पड़े। एमडीए ऑफिस में बुजुर्ग लोगों के लिए उतरना चढ़ना काफी कठिन होता है, जिसका समाधान किया जाए। रजिस्ट्री ऑफिस में खाली पड़े पदों को भरा जाए, ताकि काम समय पर हो सके। दस्तावेज लेखकों पर डिजिटलीकरण की मार दस्तावेज लेखकों का कहना है, कि सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम के अंतर्गत कई कार्य ऑनलाइन होने लगे हैं, जिससे दस्तावेज लेखकों का कार्य सीमित होता जा रहा है। प्रशिक्षण न होने के कारण हम इस बदलाव में पिछड़ रहे हैं। साथ ही डिजिटलीकरण से दिक्कतें बढ़ने की संभावना है। इससे बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ेगी और राजस्व की चोरी होने की संभावना भी। यहां रजिस्ट्री के चार ऑफिस हैं, सभी के रूल और रेग्यूलेशन अलग हैं, जिससे दिक्कतें होती हैं। ऑनलाइन रजिस्ट्री के कारण फंसा पैसा लेने के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं, जिसका समाधान तुरंत होना चाहिए। बैठने की हो बेहतर व्यवस्था दस्तावेज लेखक कहते हैं, कि हर तहसील और कोर्ट में हमारे लिए कियोस्क या छायादार बैठने की जगह सुनिश्चित की जाए। बिजली, पंखा, पानी और वाई-फाई जैसी बुनियादी सुविधा दी जाए। चारों रजिस्ट्री ऑफिस एक जगह बिल्डिंग में हों और उसके आसपास हमारी व्यवस्था हो। सरकार रजिस्ट्री मामले में जो भी फेरबदल कर रही है, उसके लिए दस्तावेज लेखकों की सलाह ली जाए, ताकि उनका रोजगार भी प्रभावित ना हो। साथ ही लोगों की समस्याओं का समय पर निदान हो। हर लेखक को एक यूनिक रजिस्ट्रेशन आईडी और पहचान पत्र दिया जाए, जिससे उनकी प्रोफेशनल वैल्यू बढ़े और किसी भी प्रकार की पहचान संबंधी परेशानी ना हो। तकनीकी प्रशिक्षण की हो व्यवस्था दस्तावेज लेखकों के लिए समय-समय पर कंप्यूटर, टाइपिंग, डिजिटल दस्तावेज बनाने, ऑनलाइन आवेदन करने जैसे विषयों पर वर्कशॉप आयोजित की जाएं। सभी को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, जीवन ज्योति बीमा, पेंशन योजना जैसी सरकारी योजनाओं में शामिल किया जाए। दस्तावेज लेखक संघ की समस्याओं को सुना जाए, जिनका समाधान हो। दस्तावेज लेखक आम आदमी के जीवन की बहुत-सी उलझनों का समाधान कागजों के जरिए करते हैं। उनकी समस्याएं न तो व्यक्तिगत हैं, न ही असंभव। जरूरत है केवल सरकार, समाज और सिस्टम की संवेदनशीलता की। समस्याएं - सर्वर गड़बड़ी के कारण दस्तावेज लेखक होते हैं परेशान - परिसर में बैंच, कुर्सी और छत का कोई ठिकाना नहीं - सरकारी मान्यता के बावजूद होते हैं उपेक्षा का शिकार - डिजिटलीकरण के कारण उठानी पड़ती हैं कई बार दिक्कतें - रजिस्ट्री को लेकर बदलाव में दस्तावेज लेखकों का प्रतिभाग नहीं सुझाव - पहचान के लिए दस्तावेज लेखकों को मिले यूनीक आईडी - रजिस्ट्री ऑफिस के पास शेड या ऑफिस की सुविधा मिले - तकनीकी बदलावों के साथ दस्तावेज लेखकों को मिले प्रशिक्षण - रजिस्ट्री में फेरबदल की सलाह को दस्तावेज लेखक हो शामिल - प्राइवेट कंपनी की जगह दस्तावेज लेखकों को दिए जाएं काम इनका कहना है दस्तावेज लेखकों के साथ सबसे बड़ी समस्या स्थाई जगह की है, हमें रजिस्ट्री ऑफिस के आसपास जगह मिल जाए। - संजय कुमार गुप्ता सर्वर डाउन होने के कारण कई बार रजिस्ट्री का प्रोसेस अटक जाता है, जिसमें देरी होती है, ठीकरा हम पर फूटता है। - मूलचंद मित्तल सर्वर की समस्या से हम ही नहीं खरीदार और बेचने वाले भी जूझते हैं, जिसके चलते कई बार काम में देरी होती है। - सुरेंद्र सिंह जग्गी रजिस्ट्री का समय बदलना चाहिए, कई बार टोकन या भीड़ के कारण समय लग जाता है, काम का समय 5 बजे तक हो। - अमित भारद्वाज चारों रजिस्ट्री ऑफिस एक जगह बिल्डिंग में हों और उसके आसपास हमारी व्यवस्था हो, ताकि लोगों को परेशानी ना हो। - प्रवीण कुमार वर्मा कई बार रजिस्ट्री ऑफिस का सर्वर डाउन होने के कारण काफी परेशानी होती है, इसका ठीकरा हमारे सर फोड़ा जाता है। - अशोक कुमार अरोड़ा आसपास पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है, कचहरी में शौचालय की बड़ी समस्या होती है, खासकर महिलाओं को। - राजीव ऐरन स्टांप और टोकन की साइट एक दूसरे से कनेक्ट होती हैं, अगर एक भी काम नहीं करती तो परेशानी खड़ी हो जाती है। - सुरेंद्र कुमार गौतम कई बार स्टांप की कमांड देते हुए बिजली चली जाती है, जिससे मामला फंस जाता है, फिर तो कई घंटे इंतजार करते हैं। - मोहम्मद अनस दाखिल खारिज की व्यवस्था को लेकर शासन के पास ऐसा सिस्टम ही नहीं है, जिससे पार्टी को सही जानकारी मिल सके। - देव कुमार देखा जाए तो दाखिल खारिज की 35 दिन की समय सीमा होती है, लेकिन उसमें लोगों के छह-छह महीने लग जा रहे हैं। - आदित्य मित्तल रजिस्ट्री से सबसे ज्यादा राजस्व शुल्क सरकार को जाता है, जिसमें हम काफी मेहनत करते है, फिर भी सुविधाएं नहीं हैं। - विनेश कुमार मेरठ में दाखिल खारिज की व्यवस्था नहीं है, इससे कई बार खरीदने और बेचने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। - रविकांत शर्मा सरकार द्वारा लाइसेंस होल्डर दस्तावेज लेखक को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिएं, ताकि हम बेरोजगार ना रहें। - नील कमल त्यागी दस्तावेज लेखकों की एक यूनीक आईडी बने, ताकि हमारी भी अलग पहचान हो, हमें भी सरकारी योजना का लाभ मिल सके। - अनिल शर्मा रजिस्ट्री के चारों ऑफिसों को एक जगह बिल्डिंग में शिफ्ट किया जाए, ताकि लोगों को इधर-उधर ना भागना पड़े। - संजीवन यादव दस्तावेजों के रखरखाव के काम प्राइवेट कंपनी को ना दिए जाएं, इससे लोगों के महत्वपूर्ण डाटा चोरी होने का खतरा रहता है। - मनोज चौहान कुराली

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