Struggles of Daily Wage Laborers in Meerut A Tale of Hope and Despair बोले मेरठ : हर दिन दिहाड़ी के लिए जूझता मजदूर, फिर भी सुविधाओं की पहुंच से कोसों दूर, Meerut Hindi News - Hindustan
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बोले मेरठ : हर दिन दिहाड़ी के लिए जूझता मजदूर, फिर भी सुविधाओं की पहुंच से कोसों दूर

Meerut News - मेरठ में दिहाड़ी मजदूरों का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है। हर सुबह ये काम की तलाश में चौराहों पर खड़े होते हैं, उम्मीद करते हैं कि आज काम मिलेगा। लेकिन कई बार उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है। मेहनत के...

Newswrap हिन्दुस्तान, मेरठMon, 5 May 2025 11:26 AM
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बोले मेरठ : हर दिन दिहाड़ी के लिए जूझता मजदूर, फिर भी सुविधाओं की पहुंच से कोसों दूर

मेरठ। दिहाड़ी मजदूरों का जीवन हमारे समाज का वह हिस्सा है, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। उनकी मेहनत से सड़कें बनती हैं, इमारतें खड़ी होती हैं, खेतों में फसल लहलहाती है, और कारखाने चलते हैं। लेकिन इनके जीवन की सच्चाई बेहद कड़वी और दिल को छू लेने वाली होती है। ये लोग एक ऐसी ज़िंदगी जीते हैं, जहां हर दिन जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। आशा और निराशा के बीच जूझती मजदूरों की जिंदगी को एक सहारे की जरूरत है, जो इनकी जिंदगी में खुशियां ला सके। हर सुबह दिहाड़ी मजदूर किसी चौराहे, सड़क किनारे, या निर्माण स्थलों पर इकट्ठा होते हैं।

उनके चेहरे पर एक अनकही दास्तान होती है। हर कोई उम्मीद करता है कि आज काम मिलेगा और घर का चूल्हा जलेगा। लेकिन कभी-कभी उनकी मेहनत और इंतजार व्यर्थ चला जाता है। काम न मिलने पर खाली पेट घर लौटने का दर्द केवल वही समझ सकते हैं। दिहाड़ी मजदूरों को दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद भी पर्याप्त मजदूरी नहीं मिलती। उनकी मेहनत लोगों के सपनों को साकार करती है, लेकिन उनके अपने सपने अक्सर अधूरे रह जाते हैं। निर्माण स्थलों पर, खेतों में या फैक्ट्रियों में, दिनभर पसीना बहाने के बाद भी उन्हें सिर्फ इतना मिलता है, कि बस किसी तरह पेट भर सकें। बेगमपुल पर खड़े मजदूरों से हिंदुस्तान बोले मेरठ की टीम ने उनका दर्द जानने की कोशिश की, उनसे संवाद किया। यहां खड़े मजदूरों को अपने रोजगार के अलावा कुछ नहीं पता, वे नहीं जानते कि एक मई को मजदूर दिवस होता है। अधिकतर मजदूर ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर्ड नहीं हैं। बेगमपुल, एल-ब्लॉक, जेल चुंगी, हापुड़ अड्डा, दिल्ली रोड सहित मेरठ में मजदूरों के खड़े होने के कई अड्डे हैं। जहां से लोग उन्हें काम के लिए ले जाते हैं। मेरठ में रोज दो हजार से ज्यादा मजदूर मुख्य चौराहों पर खड़े मिलते हैं। जो रोज काम की बाट जोहते हैं। चौराहों पर नजर आने वाली मजदूरों की यह भीड़ अल सुबह दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए काम मिलने के इंतजार में रहती है, और जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, इनकी मजदूरी भी घटती चली जाती है। थकहार सैकड़ों मजदूर काम नहीं मिलने के चलते निराशा के साथ घर लौट जाते हैं। रोजी-रोटी की तलाश में दूर-दूर से आते हैं जब शहर गहरी नींद में होता है, तब दिहाड़ी मजदूरों का दिन शुरू हो चुका होता है। शहर के किसी चौराहे पर ये लोग अपनी किस्मत का इंतजार करते हैं। काम मिलने पर ये खुशी से झूम उठते हैं, लेकिन अगर काम नहीं मिलता तो खाली हाथ घर लौटना इनकी मजबूरी बन जाती है। मेरठ शहर के शास्त्रीनगर में के-ब्लॉक चौराहे, जेलचुंगी चौराहे और बेगमपुल पर दिन निकलने से पहले ही दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ लगनी शुरू हो जाती है। इनमें कई मजदूर इसी शहर के होते हैं तो कुछ दूसरे जिलों और प्रदेशों से आए हुए होते हैं। कोई आकर रुकता है तो जगती है आस चौराहों पर खड़े मजदूरों के बीच जब कोई गाड़ी आकर रुकती है, तो उनमें एक आस नजर आती है। इन मजदूरों की भीड़ उस गाड़ी को घेर लेती है, फिर बात होती है, कितने मजदूर चाहिएं। एक या दो मजदूरों को ले जाने की बात होती है और जिनको काम मिलता है उनमें खुशी नजर आती है, लेकिन जिनको काम नहीं मिलता वो फिर निराशा में डूब जाते हैं। फिर इंतजार करते हैं कि कोई उनको लेने आएगा और दो वक्ती की रोटी का जुगाड़ हो जाएगा। समय के साथ कम होती जाती है दिहाड़ी काम के इंतजार में खड़े मजदूरों की दिहाड़ी समय के साथ घटती चली जाती है। सुबह के नौ बजे तक जिसको काम मिल जाता है उसको 500-600 रुपए मिल जाते हैं। दस बजे के बाद यह दिहाड़ी 300-400 तक रह जाती है। वह भी कुछ ही मजदूरों को मिल पाती है, क्योंकि ग्यारह बजते ही उनकी उम्मीदें टूट जाती हैं। धीरे-धीरे बचे हुए मजदूर अपने घरों की ओर लौटने लगते हैं। मन में यही सोचते हुए, कि आज भी काम नहीं मिला, अब खर्चा कैसे चलेगा। हाथ लगती है निराशा बेगमपुल पर काम का इंतजार कर रहे अजय का कहना है कि वह राज मिस्त्री का काम करता है। सुबह से काम मिलने के इंतजार में खड़ा हूं। घर हरदोई में है, लेकिन मैं यहां रहकर परिवार के लिए काम करता हूं, जब काम नहीं मिलता तो खाली हाथ ही घर लौट जाता हूं। वहीं मजदूरी की तलाश में खड़े मैथना गांव के गंगाशरण का कहना है, कि मैं मजदूरी करके अपने परिवार को पाल रहा हूं। कभी काम मिल जाता है तो अच्छा लगता है, लेकिन जब काम नहीं मिलता तो दिक्कतें बढ़ जाती हैं। ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है, यह भी नहीं पता कैसे होता है, लेकिन करवाऊंगा। घर से दूर काम की तलाश बेगमपुल पर काम मिलने के इंतजार में खड़ा हरदोई का रहने वाला अजय, मध्य प्रदेश का अरविंद और हीरालाल, वीरेंद्र शाह सहित कई लोग बिहार के रहने वाले हैं। सभी काम की तलाश में मेरठ में ही रहते हैं। ये लोग अपना दर्द बयां करते हैं, कि कई बार इनको खाली हाथ लौटना पड़ता है। सुबह एक उम्मीद लेकर आते हैं कि आज तो काम मिल ही जाएगा, लेकिन कई बार बिना काम के ही लौटना पड़ता है। वहीं के ब्लॉक लेबर चौराहे पर जफर बिहार से और बंटी बिजनौर से मेरठ में आकर मजदूरी करते हैं। इनका कहना है कि काम के लिए सुबह से ही खड़े हैं, इंतजार है कि कोई आकर काम देगा और फिर घर की रोजी रोटी चलेगी। कई बार भूखा रहना पड़ता है शास्त्री नगर में के-ब्लॉक चौराहे पर खड़े मजदूरों का कहना है, कि वे सुबह बिना खाना खाए निकलते हैं। इंतजार रहता है, कि कोई उनको काम के लिए लेकर जाएगा और वहीं जाकर खाना खाएंगे। कई बार तो दिनभर भूखे रहना पड़ता है, काम भी नहीं मिलता और ऊपर से पैसे भी नहीं होते। यहां खड़े कई मजदूरों का कहना है कि उन्होंने ई-श्रम में भी पंजीकरण करवा रखा है, लेकिन कुछ नहीं मिल रहा। काम ना मिलने के कारण कई बार बच्चे भी भूखे सोते हैं। सरकारी योजनाओं के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है। कोई बता देता है तो ठीक है, नहीं तो रोज मजदूरी ही करनी है। काम की होड़ में खोती मजदूरी चौराहों पर खड़े मजदूर कई बार कम पैसों में भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। जहां उनको दिहाड़ी 500 से 600 रुपये मिलनी चाहिए, वहीं दिन चढ़ते वह 200-300 रुपये पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। इन जगहों पर यह भी देखने को मिला कि जैसे ही कोई आता है तो हर एक मजदूर खुद को ले जाने की मांग करता है। ऐसे में इनके बीच झगड़ा तक हो जाता है। बस किसी तरह काम मिल जाए, मजदूरी बन जाए और रोजी-रोटी का काम हो जाए। मजदूरों का मौसमी संघर्ष मजदूरों का कहना है कि मौसम की मार हम मजदूरों पर सबसे ज्यादा पड़ती है। गर्मी की तपिश, बारिश की बौछारें और सर्दी की ठिठुरन के बावजूद हमें काम करना पड़ता है। ठंडे फर्श पर सोना, फटे-पुराने कपड़ों के काम करना, और बिना छत के दिन बिताना हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। देखा जाए तो खराब माहौल में काम करना और पर्याप्त पोषण न मिलना उनके शरीर को कमजोर बना देता है। कई बार इनकी बीमारी उनके लिए बड़ा संकट बन जाती है, क्योंकि उनके पास न तो दवा के पैसे होते हैं और न ही डॉक्टर की फीस चुकाने की क्षमता। सुविधाओं और जानकारी की कमी मजदूरों का कहना है कि उनके लिए कोई बीमा या पेंशन जैसी सुविधा नहीं मिलती। कई बार हमारी मेहनत का सही मूल्य भी नहीं मिलता। बड़े शहरों में मजदूरों को अक्सर अपमान और भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। हालांकि, कुछ संस्थाएं मजदूरों की मदद के लिए प्रयास करती रहती हैं। मजदूर कार्ड, मनरेगा जैसी योजनाएं एक आशा जगाती हैं, लेकिन यह प्रयास नाकाफी साबित होता है। मजदूरों को ई-श्रम कार्ड बनवाने के लिए कैंप लगवाएं जाएं और जागरूक किया जाए, लगा-बंधा काम मिले तो कहीं जाकर उनकी तस्वीर बदल सकती है। मजदूरों का दर्द मैं यहां मजदूरी की तलाश में सुबह ही आ जाता हूं। घंटों इंतजार करने के बाद कभी काम मिल जाता है, तो कभी नहीं मिलता। ई-श्रम कार्ड बनवा रखा है, लेकिन आजतक मिला कुछ नहीं। - सुशील कुमार हरदोई में रहता हूं, यहां मेरठ में राज मिस्त्री का काम करता हूं। रोज बेगमपुल पर आकर खड़ा हो जाता हूं और काम के इंतजार में रहता हूं। काम मिलता है तो रोटी भी मिलती है। - अजय कुमार मैं रोज काम के लिए आता हूं, महीने में लगभग 15 दिन ही काम मिलता है, बाकी दिन तो बस खाली रहकर ही काम चलाना पड़ता है, कई बार काम नहीं मिलता तो भट्टों पर ईंट पाथते हैं। - बाबूराम घर से बिना खाना खाए निकलता हूं, कि काम पर जाकर खाऊंगा, लेकिन काम नहीं मिलता तो वापस ही भूखे लौटना पड़ता है। काम मिल जाता हैतो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो जाता है। - शहजाद सुबह से इसी उम्मीद में खड़े हैं, कि काम मिल जाएगा, लेकिन अभी तक कोई आया ही नहीं। घर पर खाली हाथ जाना अच्छा नहीं लगता, कम पैसों पर भी काम करने को तैयार रहता हूं। - सुरेश रोज काम मिलने का इंतजार करता हूं, लेकिन कई बार बिना काम के ही वापस जाना पड़ता है। काम मिलने से घर की व्यवस्था बनती है, कई बारे तो बहुत इंतजार करना पड़ता है। - गंगाशरण दिहाड़ी मिल जाती है तो अच्छा लगता है, लेकिन कल भी काम मिलेगा कोई उम्मीद नहीं होती। सुबह से खड़ा हूं, मगर कोई अभी तक लेने नहीं आया। सोचता रहता हूं, घर कैसे चलेगा। - राजू काम मिल ही जाएगा, इसकी कोई उम्मीद नहीं होती। आधे से ज्यादा मजदूरों को काम नहीं मिलता, जो खाली हाथ अपने घर लौट जाते हैं। कभी तो खाने-पीने के भी लाले पड़ जाते हैं। - रंजीत आजकल काम ही नहीं बचा है, यहां मजदूर दिनभर इंतजार करने के बाद लौट जाते हैं। कुछ ही लोगों को काम मिलता है। दस बजे के बाद तो काम मिलने की उम्मीद ही खत्म हो जाती है। - रामबीर मजदूर लोग हैं, रोज कमाना और रोज ही खाना होता है। काम ना मिले तो खाना भी नहीं बनता, किसी तरह पेट पाल रहे हैं। कई बार आकर इंतजार करने के बार खाली हाथ लौट जाता हूं। - शाहिद दिहाड़ी के जो रुपये तय होते हैं, कई बार काम ना होने के वजह से बहुत कम रुपये में काम करना पड़ता है। काम से घर की रोजी-रोटी चल जाती है, नहीं तो भैया ऐसे ही जिंदगी चलती है। - आदेश एक टाइम खाने का बंदोबस्त हो जाए, बस इसकी उम्मीद में हम यहां खड़े रहते हैं। सुबह से कई लोग आए भी, लेकिन उनके साथ दूसरे मजदूर चले गए। अब हमे काम मिलेगा कोई गारंटी नहीं। - इंतजार समस्या - मजदूरों को नियमित आय का अभाव होता है - ठेकेदार और नियोक्ता मजदूरों का पूरा भुगतान नहीं करते - स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं - शिक्षा और कौशल की कमी के कारण बेहतर अवसर नहीं मिलते - अक्सर असुरक्षित और खराब परिस्थितियों में काम करते हैं - दैनिक आय पर निर्भरता के कारण आर्थिक संकट रहता है - मजदूर अक्सर स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं समाधान: - मजदूरों को नियमित रोजगार मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए - सरकार द्वारा अधिक रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं - अधिकारों की रक्षा के लिए श्रम कानूनों को प्रभावी बनाएं - स्वास्थ्य, जीवन बीमा और पेंशन योजनाएं लागू की जाएं - मजदूरों को निःशुल्क प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान की जाए - मजदूरों को निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाएं - मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित की जाए

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