बोले मुजफ्फरनगर : महंगी कॉपी-किताबें कर रही जेब खाली
Muzaffar-nagar News - बोले मुजफ्फरनगर : महंगी कॉपी-किताबें कर रही जेब खाली
जनपद में 265 एडेड माध्यमिक व 951 परिषदीय स्कूलों से इतर 98 सीबीएसई और करीब 300 निजी स्कूल भी संचालित हैं, जिनमें 50 हजार से अधिक बच्चे अध्ययनरत हैं। इन निजी स्कूलों का नया सत्र हर साल अभिभावकों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। बच्चों के लिए नए कोर्स की कॉपी-किताबें, स्टेशनरी और यूनिफॉर्म खरीदने के साथ ही स्कूलों द्वारा हर साल लिया जाने वाला एडमिशन शुल्क व इनमें साल-दर-साल होने वाली बढ़ोतरी अभिभावकों का कई माह का बजट बिगाड़ देती है। बूते से बाहर होते जा रहे इन खर्चों को अभिभावकगण निजी स्कूल संचालकों की मनमानी व मोटे कमीशन की दौड़ का नतीजा करार देते हुए सरकार से इस परंपरा पर प्रभावी अंकुश लगाए जाने की मांग कर रहे हैं।
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निजी स्कूलों की मनमानी पर लगे रोक
मुजफ्फरनगर। जनपद में 275 माध्यमिक और 251 परिषदीय विद्यालय हैं वहीं, जिले में 98 सीबीएसई और करीब 300 अन्य निजी स्कूल संचालित हैं। केवल सीबीएसई व अन्य निजी स्कूलों की बात करें तो इनमें 50 हजार से अधिक बच्चे अध्ययनरत हैं। इनमें अधिकांश बच्चे मध्यम आय वर्गीय परिवारों के होते हैं, जिनके अभिभावकों के लिए इन स्कूलों का हर नया सत्र चिंतित करने वाला होता है। इसके पीछे एक ओर जहां हर छात्र-छात्रा से प्रतिवर्ष लिया जाने वाला एडमिशन शुल्क होता है, वहीं दूसरी ओर लगातार महंगी होती जा रही कॉपी-किताबें, स्टेशनरी और यूनिफॉर्म भी अभिभावकों की जेब खाली करते हैं। मध्यमवर्ग से ताल्लुक रखने वाले अभिभावक प्रियांक और राहुल बालियान का कहना है कि निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यवसाय का रूप दे दिया है। एक ओर जहां हर साल प्रतिबंध के बावजूद बच्चों से नई कक्षा में आने पर एडमिशन शुल्क वसूला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एनसीईआरटी से इतर निजी पब्लिकेशंस की अन्य गैर-जरूरी ऐसी किताबें भी बच्चों के कोर्स में जोड़ दी जाती हैं, जिनके कोर्स में होने या न होने से पढ़ाई पर किसी तरह का फर्क नहीं पड़ता है। इसके पीछे केवल चंद निजी स्कूल संचालकों की कमीशनखोरी की लत होती है, जो स्कूलों को व्यवसाय का रूप दे चुके हैं। साल-दर-साल पढ़ाई के ये लगातार बढ़ते जा रहे खर्च मध्यमवर्गीय अभिभावकों का कई महीने का बजट बिगाड़ दे रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन के साथ ही जनप्रतिनिधि भी इस परंपरा पर रोक लगाने में विफल हो रहे हैं। स्कूल संचालकों की इसी मंशा के चलते बच्चों के बस्ते लगातार भारी होते जा रहे हैं, जो मासूमों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं। अभिभावकों ने सरकार से निजी स्कूल संचालकों की इस मनमानी पर प्रभावी अंकुश लगाए जाने के साथ ही इस परंपरा को खत्म किए जाने की खातिर कड़ी शिक्षा नीति बनाए जाने की मांग की है।
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निश्चित दुकान से कॉपी-किताबें लेने को मजबूर अभिभावक
मुजफ्फरनगर। निजी स्कूल संचालकों की मनमानी एनसीईआरटी से इतर कोर्स में अन्य किताबें भी जोड़ने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि उनके द्वारा अभिभावकों को हर साल बच्चों के लिए कॉपी-किताबें लेने के लिए एक निश्चित दुकान से ही लेने के लिए भी बाध्य किया जाता है। अभिभावकों परवेंद्र सिंह व रश्मि वर्मा का कहना है कि इस मंशा को मूर्तरूप देने के लिए बच्चों के कोर्स में हर साल निजी पब्लिकेशंस की ऐसी किताबें जोड़ दी जाती हैं, जो उनके द्वारा निर्धारित दुकानों पर ही मिलती है। वहीं, अभिभावकों पर इन्हीं दुकानों से कोर्स व कॉपी-किताबें लेने का दबाव भी बनाया जाता है। ऐसे में अभिभावक चाहकर भी निजी स्कूल संचालकों द्वारा निर्धारित की गई दुकानों से अलग अन्य किसी दुकान से ये कोर्स व कॉपी-किताबें नहीं ले पाते और मजबूरन इस लूटतंत्र का हिस्सा बनकर रह जाते हैं।
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सरकार बनाए कड़ी शिक्षा नीति
मुजफ्फरनगर। निजी स्कूल संचालकों की इस मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए अभिभावकों ने सरकार से कमीशनखोरी के इस खेल पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए कड़ी शिक्षा नीति बनाए जाने की मांग की है। अभिभावक स्वाति चौधरी व विशाल का कहना है कि निजी स्कूल संचालकों की मनमानी हर साल बढ़ती जा रही है। एक ओर सरकार जहां सबको शिक्षित करने का जागरूकता अभियान चलाती है, वहीं निजी स्कूल संचालकों की इस मनमानी पर आंखें मूंद लेती है। सरकार को मध्यम वर्गीय परिवारों की पीड़ा को समझते हुए निजी स्कूल संचालकों की मनमानी और लगातार बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए कड़ी शिक्षा नीति बनानी चाहिए।
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--- शिकायतें और सुझाव ---
शिकायतें ---
- निजी स्कूल संचालकों द्वारा कमीशन के खेल में हर साल बच्चों के कोर्स में निजी पब्लिकेशंस की महंगी किताबें जोड़ दी जाती हैं।
- अभिभावकों को महंगे कोर्स व कॉपी-किताबें स्कूल संचालकों द्वारा निर्धारित की गई दुकान से ही लेने के लिए बाध्य किया जाता है।
- प्रतिबंधित होने के बावजूद हर साल अभिभावकों से बच्चों के नई कक्षा में आने पर अलग-अलग नाम से एडमिशन शुल्क वसूला जाता है।
- स्कूलों की यूनिफॉर्म में भी हर दो से तीन साल में बदलाव कर दिया जाता है, जो मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट बिगाड़कर रख देता है।
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सुझाव ---
- निजी स्कूल संचालकों के लिए कोर्स में एनसीईआरटी की किताबों को ही शामिल किए जाने का नियम बनाकर इसका पालन कराना चाहिए।
- अभिभावक किसी भी दुकान से कोर्स व कॉपी-किताबें ले सकें, इसके लिए निजी स्कूल संचालकों को सरकार द्वारा दिशा-निर्देश दिए जाएं।
- हर साल बच्चों के नई कक्षा में आने पर अलग-अलग नाम से वसूले जाने वाले एडमिशन शुल्क पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए।
- निजी स्कूलों में यूनिफॉर्म में बदलाव लाने के लिए सरकार को एक निश्चित समयावधि निर्धारित करनी चाहिए, ताकि मनमानी पर रोक लगे।
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इन्होंने कहा ---
- अभिभावकों के हित में शिक्षा विभाग हमेशा कार्य करता है। स्कूल अभिभावकों को एक दुकान से कोर्स लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। इस तरह की हमारे पास किसी अभिभावक की शिकायत आती है, तो जांच कर कार्रवाई की जाएगी।
राजेश श्रीवास, डीआईओएस
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- निजी स्कूलों की फीस हर साल बढ़ने से समस्या आती है। स्कूलों द्वारा हर साल अलग नाम से एडमिशन शुल्क लिया जाता है। स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें ही स्कूलों में लागू करनी चाहिए।
बलबीर
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- निजी स्कूलों की मनमानी के चलते हर साल निजी पब्लिकेशंस की किताबें सेलेब्स के साथ जोड़ दी जाती है, जिसके चलते आर्थिक रूप से काफी परेशानी होती है।
रमेश
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- हर वर्ष स्कूलों में तरह-तरह के लगाए जाने वाले शुल्क पर नियंत्रण के लिए सरकार को सख्त कानून लागू करने चाहिए, जिससे अभिभावकों को आर्थिक लाभ मिल सके।
पुरूषोतम
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- स्कूल संचालकों द्वारा हर साल कोर्स में निजी पब्लिकेशंस की महंगी किताबें जोड़ दी जाती है, जिससे कोर्स बेवजह महंगे हो जाते हैं और अभिभावकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
जितेंद्र
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- स्कूलों द्वारा हर वर्ष बढ़ाए जाने वाले शुल्क पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। निर्धारित दुकानों से कोर्स खरीदने की बाध्यता हो हटाया जाना चाहिए।
राहुल बालियान
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- निजी स्कूलों में हर दो साल के बाद यूनिफॉर्म में बदलाव कर दिया जाता है, जिस कारण आर्थिक रूप से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यह परंपरा बंद होनी चाहिए।
जितेंद्र कुमार
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- निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को शामिल करने के लिए सरकार को सख्त नियम बनाने चाहिए, जिससे अभिभावकों का बजट खराब न हो।
कोमल
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- निजी स्कूलों द्वारा बच्चों के नई कक्षा में आने पर हर साल अलग से एडमिशन शुल्क वसूला जाता है, जिस पर सरकार को रोक लगाने के लिए कड़ी शिक्षा नीति बनानी चाहिए।
राजेश छाबड़ा
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- अभिभावकों को महंगे कोर्स से निजात मिले, इसके लिए स्कूल संचालकों द्वारा निर्धारित की गई दुकानों से कोर्स लेने की बाध्यता को हटाया जाना चाहिए।
शाहिद मलिक
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- स्कूलों में हर दो से तीन साल के बाद यूनिफॉर्म में बदलाव कर दिया जाता है, जिस कारण अभिभावकों को आर्थिक रूप से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसके लिए निश्चित समयसीमा होनी चाहिए।
विशाल
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- निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को सख्ती के साथ लागू किया जाना चाहिए, जिसको लेकर सरकार को सख्त नियम बनाने चाहिए, ताकि अभिभावकों का बजट खराब न हो।
प्रियांक
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- निजी स्कूलों द्वारा हर वर्ष बढ़ाए जाने वाले शुल्क पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। इसके साथ ही तरह-तरह के लगने वाले शुल्क पर भी सरकार को सख्त कानून बनाने चाहिए।
स्वाति चौधरी
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- निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को शामिल करने के लिए सरकार को प्रभावी कदम उठाने चाहिए, जिससे अभिभावकों को आर्थिक रूप से राहत मिल सके।
परवेन्दर
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- निजी स्कूलों के कोर्सेस में प्राइवेट पब्लिकेशंस की महंगी किताबें जोड़ने पर प्रतिबंध होना चाहिए। इससे कोर्स अत्यधिक महंगे हो जाते हैं, जिससे अभिभावकों की जेब पर असर पड़ता है।
बरखा वर्मा
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- निजी स्कूलों द्वारा कोर्स को एक निश्चित दुकान से लेने के लिए बाध्य किया जाता है, जहां कमीशन के चलते कॉपी-किताबें व कोर्स अत्यधिक महंगे मिलते हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए।
रश्मि वर्मा
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- निजी स्कूलों की फीस व कोर्स की साल-दर-साल बढ़ती महंगाई मध्यम वर्गीय परिवारों का बजट बिगाड़ रही है। सरकार को इस पर रोक के लिए कड़ी शिक्षा नीति बनानी चाहिए।
नेहा
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