Challenges of GST Implementation Small Traders Facing Complexities and Legal Issues बोले सहारनपुर : अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन की मांग, Saharanpur Hindi News - Hindustan
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बोले सहारनपुर : अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन की मांग

Saharanpur News - वर्ष 2017 में लागू जीएसटी व्यवस्था ने व्यापारियों के लिए कई जटिलताएँ उत्पन्न की हैं। सहारनपुर जैसे क्षेत्रों में छोटे व्यापारियों को एचएसएन कोड की अनिवार्यता, नोटिस भेजने की प्रक्रिया, और अपील के लिए...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहारनपुरWed, 14 May 2025 04:26 PM
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बोले सहारनपुर : अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन की मांग

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था को वर्ष 2017 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य पूरे देश में एक समान कर व्यवस्था स्थापित करना था। इस नई कर प्रणाली से व्यवसायों में पारदर्शिता, कर संग्रहण में वृद्धि और कर चोरी पर अंकुश लगाने की आशा की गई थी। लेकिन इस व्यवस्था के लागू होने के कुछ ही वर्षों में इसके क्रियान्वयन से संबंधित कई व्यवहारिक समस्याएं सामने आने लगी हैं। इनका सीधा प्रभाव देश के लाखों छोटे, मध्यम और बड़े व्यापारियों पर पड़ा है। विशेष रूप से सहारनपुर जैसे क्षेत्रों में, जहां व्यापारी अधिकतर पारंपरिक पद्धतियों से व्यापार करते हैं और डिजिटल साक्षरता अपेक्षाकृत कम है।

यहां यह नई व्यवस्था अनेक जटिलताओं के साथ सामने आई है। सहारनपुर के जीएसटी अधिवक्ताओं और व्यापारियों के समक्ष जो समस्याएँ उभर कर आई हैं, वे प्रशासनिक प्रक्रियाओं की अस्पष्टता, तकनीकी पेचीदगियों और विभागीय अनदेखी से जुड़ी हुई हैं। जीएसटी वकीलों का कहना है कि जीएसटी अधिनियम के अंतर्गत अब तक अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन नहीं हो पाया है, जिससे प्रथम अपील के उपरांत व्यापारियों को सीधे उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है-जो कि अत्यधिक समयसाध्य और महंगा उपाय है। इसी प्रकार, धारा 73 और 74 के तहत पारित एकपक्षीय आदेशों को पुनः खोलने का कोई प्रावधान नहीं है, जबकि पूर्ववर्ती वैट प्रणाली में ऐसी व्यवस्था उपलब्ध थी। इसके अतिरिक्त, जीएसटी वकीलों का कहना है कि रिटर्न दाख़िल करते समय अनिवार्य रूप से एचएसन कोड की जानकारी देना छोटे व्यापारियों के लिए जटिल और दंडात्मक हो सकता है। नोटिसों का केवल ईमेल पर प्रेषण, न्यायालय में बिना सुनवाई के आदेश पारित करना, और पुराने वैट मामलों की फाइलें उपलब्ध न होने के बावजूद रिकवरी कर लेना-ये सभी समस्याएँ व्यापारी समुदाय के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं। कई बार पूर्व में जमा की गई राशि की पुनः वसूली कर ली जाती है, लेकिन उसका रिफंड समय पर जारी नहीं होता। वहीं स्पेशल इन्वेस्टिगेशन ब्रांच की मनमानी कार्यवाहियाँ और एसपीएल-02 मामलों का लम्बित रहना भी लापरवाही को दर्शाता है। व्यापारियों को राहत देने के लिए पहले की भांति ब्याज माफी योजनाएँ एवं अपील हेतु एमनेस्टी स्कीम आवश्यक हैं, जिससे न्यायसंगत कर निर्धारण हो सके और व्यापारी वर्ग अनावश्यक आर्थिक दबाव से मुक्त हो। ट्रिब्यूनल बेंच का अभाव जीएसटी से संबंधित अपीलों के लिए कोई स्थायी ट्रिब्यूनल बेंच नहीं है। जीएसटी कानून के तहत, एक व्यापारी को अपनी प्रथम अपील जिला स्तर पर संबंधित अपीलीय अधिकारी से करनी होती है। अगर व्यापारी को इस निर्णय से असंतुष्टि होती है, तो उसे सीधे हाई कोर्ट का रुख करना पड़ता है। इससे व्यापारियों को अतिरिक्त समय और संसाधन खर्च करने पड़ते हैं, जबकि ट्रिब्यूनल बेंच का अभाव न्याय की गति को धीमा करता है और प्रक्रिया को महंगी बना देता है। जीएसटी वकीलों की मांग है कि जीएसटी के तहत स्थायी ट्रिब्यूनल बेंच की स्थापना की जाए, ताकि व्यापारियों को न्याय मिलने में कोई बाधा न आए। धारा 73 और 74 के तहत एकपक्षीय आदेशों की समस्या जीएसटी अधिनियम की धारा 73 और 74 के तहत व्यापारियों को एकपक्षीय आदेश का सामना करना पड़ता है। जब कोई आदेश जारी किया जाता है, तो उसे खोलने का या फिर पुनः विचार करने का कोई प्रावधान नहीं है, जैसा पहले वेट (वाणिज्य कर) और व्यापार कर अधिनियम में था। इससे व्यापारी और अधिवक्ता दोनों को बहुत कठिनाई होती है। केवल अपील करने का विकल्प बचता है, जो अक्सर लंबे समय और उच्च खर्च का कारण बनता है। अधिवक्ताओं का कहना है कि जीएसटी अधिनियम में धारा 32 जैसे प्रावधान को फिर से लागू किया जाए, जिससे व्यापारी को अपने आदेशों को पुनः खोलने का अधिकार मिल सके। एचएसएन डिटेल छोटे व्यापारियों के लिए वैकल्पिक हो जीएसटी रिटर्न भरते समय व्यापारी और अधिवक्ता को एचएसएन (हमेंडेड स्टैंडर्ड नंबर) की डिटेल देने की अनिवार्यता होती है। हालांकि, यह व्यवस्था बड़े व्यापारियों के लिए सुविधाजनक हो सकती है, लेकिन छोटे व्यापारियों के लिए यह एक बड़ी समस्या बन गई है। छोटे व्यापारी अक्सर इस तरह की तकनीकी जानकारी से परिचित नहीं होते हैं और इसके कारण उन्हें दंड का सामना करना पड़ता है। अधिवक्ताओं का कहना है कि छोटे व्यापारियों के लिए एक छूट या सरल प्रक्रिया अपनाई जाए। एचएसएन को केवल बड़े व्यापारियों के लिए अनिवार्य किया जाए और छोटे व्यापारियों के लिए इसे वैकल्पिक रखा जाए। प्रमुख सचिव द्वारा आदेश की समय सीमा अधिवक्ताओं का कहना है कि अभी के समय में प्रमुख सचिव द्वारा अपीलीय अधिकारियों को आदेश देने की एक समय सीमा तय की गई है। इससे अपीलीय अधिकारी न्यायिक विवेक का सही उपयोग नहीं कर पाते और कई बार जल्दबाजी में निर्णय लेते हैं। इससे व्यापारियों को न्याय नहीं मिल पाता, क्योंकि उनकी समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। अधिवक्ताओं का कहना है कि प्रमुख सचिव के आदेश की समय सीमा में लचीलापन लाया जाए, ताकि अपीलीय अधिकारी हर मामले पर पर्याप्त समय देकर निर्णय ले सकें। मेल के नोटिस नहीं चल पाती जानकारी एक और प्रमुख समस्या यह है कि जीएसटी विभाग के नोटिस मेल के माध्यम से भेजे जा रहे हैं। यह व्यवस्था छोटे व्यापारियों के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि अधिकांश व्यापारी तकनीकी रूप से इतने साक्षर नहीं होते हैं। इसके कारण कई व्यापारियों को नोटिस का सही समय पर पता नहीं चल पाता और वे दंड का शिकार हो जाते हैं। अधिवक्ताओं का कहना है कि नोटिसों को मैन्युअल रूप से भेजने की व्यवस्था की जाए, जैसा कि वेट और व्यापार कर में था। साथ ही व्यापारियों को उनके क्षेत्रीय कार्यालय से नोटिस भेजे जाएं, ताकि वे इसे ठीक से समझ सकें और समय पर कार्रवाई कर सकें। एसआईबी पर मनमानी कार्रवाई का आरोप अधिवक्ताओं की ओर से एसआईबी द्वारा व्यापारियों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाईयों में मनमानी का आरोप है। उनका कहना है कि कई व्यापारियों को बिना किसी उचित कारण के परेशान किया जा रहा है और उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। इस तरह की कार्यवाहियां व्यापारी के लिए अतिरिक्त मानसिक और वित्तीय दबाव का कारण बनती हैं। अधिवक्ताओं की मांग है कि एसआईबी की कार्यप्रणाली पर कड़ी निगरानी रखी जाए, ताकि व्यापारियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई बिना उचित कारण के न हो। साथ ही किसी भी कार्रवाई से पहले उचित जांच प्रक्रिया अपनाई जाए और व्यापारी को अपनी सफाई देने का अवसर दिए जाने की मांग की। एसपीएल-02 का निस्तारण ना होना एसपीएल-02 से जुड़ी समस्याएं भी व्यापारियों के लिए बड़ी चुनौती बन गई हैं। इस संबंध में निस्तारण में अनावश्यक देरी हो रही है, जिससे व्यापारियों को वित्तीय नुकसान हो रहा है। अधिवक्ताओं का कहना है कि एसपीएल-02 के मामलों का शीघ्र निस्तारण किया जाए। एक समय सीमा तय की जाए, जिसके भीतर इन मामलों का समाधान हो सके। वैट रिकवरी के बिना नोटिस का मुद्दा विभाग द्वारा वैट संबंधी रिकवरी निकाली जाती है, लेकिन बिना नोटिस तामील किए व्यापारी के खाते को अटैच कर लिया जाता है। यह व्यापारी के अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि खाता अटैच करने से पहले व्यापारी को उचित नोटिस दिया जाना चाहिए। अधिवक्ताओं का कहना है कि वैट संबंधी रिकवरी से पहले व्यापारी को नोटिस तामील किया जाए, ताकि उसे अपनी स्थिति पर विचार करने का अवसर मिले। रिकवरी की प्रक्रिया और रिफंड का न होना विभाग द्वारा पुरानी रिकवरी की गई राशि से संबंधित रिफंड जारी नहीं किया जा रहा है, जबकि कई मामले ऐसे हैं, जहां व्यापारियों ने पहले ही अपनी डिमांड चुका दी है। रिफंड न मिलने से व्यापारियों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है। अधिवक्ताओं का कहना है कि रिफंड प्रक्रिया को त्वरित किया जाए और सभी लंबित रिफंड मामलों का शीघ्र समाधान किया जाए। ब्याज माफी योजना लागू हो वैट की पुरानी डिमांड पर ब्याज की गणना अत्यधिक हो रही है, जिससे व्यापारियों के लिए पुरानी रकम चुकाना मुश्किल हो जाता है। व्यापारियों की स्थिति को देखते हुए ब्याज माफी योजना की आवश्यकता है। अधिवक्ताओं का कहना है कि ब्याज माफी योजना लागू की जाए, विशेष रूप से उन व्यापारियों के लिए जिन्होंने अपना व्यापार बंद कर दिया है। जीएसटी कानून में सुधार की आवश्यकता है ताकि व्यापारी और अधिवक्ता दोनों को न्याय और सुविधा मिल सके। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को सही दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है। व्यापारियों को न्यायिक प्रणाली का पूरा लाभ मिलना चाहिए, और इसके लिए इन सुधारों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है। ------------------------------------------------------------ बोले जीएसटी अधिवक्ता 1.जीएसटी कानून के तहत व्यापारियों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एचएसएन डिटेल्स देने की अनिवार्यता छोटे व्यापारियों के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। इससे छोटे व्यापारी डरे हुए हैं, क्योंकि उन्हें इसकी प्रक्रिया और दंड के बारे में जानकारी नहीं होती। -अंकित गर्ग, जीएसटी अधिवक्ता 2.ट्रिब्यूनल बेंच का अभाव व्यापारियों के लिए एक गंभीर समस्या है। पहले अपीलीय अधिकारी के निर्णय के बाद सीधे हाई कोर्ट जाना पड़ता है, जिससे समय, पैसे और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है। ट्रिब्यूनल बेंच की स्थापना से को राहत मिलेगी। -सीएम शर्मा, जीएसटी अधिवक्ता 3.जीएसटी से जुड़ी समस्याएं बहुत बढ़ गई हैं। खासकर छोटे व्यापारी जिन्हें किसी भी प्रक्रिया का सही तरीका नहीं पता, उनके लिए यह प्रणाली बोझ बन गई है। एचएसएन डिटेल्स जैसी जटिलताओं के कारण, कई व्यापारी दंड का शिकार हो जाते हैं। -प्रियंक भारद्वाज,जीएसटी अधिवक्ता 4.जीएसटी के तहत अपीलीय अधिकारियों द्वारा जल्दबाजी में निर्णय लेने की समस्या बढ़ गई है। प्रमुख सचिव द्वारा आदेश की समय सीमा तय करने के कारण, अधिकारी न्यायिक विवेक का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते। इससे व्यापारी को न्याय मिलने में देरी होती है। -अमित गोयल,जीएसटी अधिवक्ता 5.एसआईबी की मनमानी कार्रवाई व्यापारियों के लिए अत्यधिक परेशानी का कारण बन रही है। बिना उचित कारण के व्यापारी को उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। -रवि प्रकाश शर्मा,जीएसटी अधिवक्ता 6.बिना व्यापारियों से संपर्क किए वैट संबंधी रिकवरी को जीएसटी पोर्टल से एडजस्ट करना गलत है। विभाग द्वारा बिना नोटिस के व्यापारी के खाते को अटैच करना एक अव्यवस्था है। ऐसे मामलों में सुधार की आवश्यकता है। -राकेश जैन,जीएसटी अधिवक्ता 7.जीएसटी प्रणाली में सुधार की बहुत जरूरत है, खासकर उन मामलों में जहां अपील दाखिल करने का मौका नहीं मिलता। व्यापारियों को समय पर सूचना नहीं मिलती और इसके कारण उन्हें अपील का मौका नहीं मिलता। -अनिल गुप्ता,जीएसटी अधिवक्ता 8.जीएसटी पोर्टल से जुड़ी समस्याएं व्यापारियों के लिए एक जटिल मुद्दा बन गई हैं। यदि जीएसटी की पुरानी रिकवरी पहले ही चुका दी गई हो और पोर्टल से उसे फिर से एडजस्ट कर दिया जाए, तो यह गलत है। -दीपक जैन,जीएसटी अधिवक्ता 9.ब्याज माफी योजना से व्यापारियों को बहुत मदद मिल सकती है, खासकर उन व्यापारियों के लिए जो अपनी पुरानी डिमांड को ब्याज के साथ चुका नहीं पा रहे हैं। ब्याज माफी योजना के तहत राहत मिलने से व्यापारियों की स्थिति में सुधार हो सकता है। -शिशिर वत्स,जीएसटी अधिवक्ता 10.वैट की पुरानी डिमांड के लिए ब्याज माफी की योजना लागू की जानी चाहिए। ब्याज की राशि बहुत अधिक हो रही है और कई व्यापारी अपने पुराने कर्ज को चुका नहीं पा रहे हैं। ऐसे व्यापारियों के लिए ब्याज माफी का लाभ बहुत मददगार होगी। -जसविंदर सिंह अरोड़ा,जीएसटी अधिवक्ता 11.जीएसटी अधिनियम में छूटे हुए अपीलों के लिए समय बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। व्यापारी कभी-कभी सूचना के अभाव में अपील दाखिल करने से चूक जाते हैं और इसके बाद उन्हें भारी दंड का सामना करना पड़ता है। -राजेश वधवा,जीएसटी अधिवक्ता 12.कई मामलों में नोटिस मेल के माध्यम से भेजे जाते हैं, जो छोटे व्यापारियों के लिए एक बड़ी समस्या बन जाते हैं। इस पर सुधार की जरूरत है ताकि व्यापारियों को समय पर सही सूचना मिल सके। -विकास शर्मा,जीएसटी अधिवक्ता 13.व्यापारी की स्थिति और भी जटिल हो जाती है जब वह विभाग की अव्यवस्थित कार्यवाहियों का सामना करता है। इसके लिए आवश्यक है कि हर मामले को उचित रूप से जांचा जाए और कार्रवाई की जाए। -राजीव खुराना,जीएसटी अधिवक्ता 14.व्यापारी को उचित समय पर न्याय मिलना चाहिए। वर्तमान में, अपीलों के लिए कोई उचित समय सीमा नहीं है और व्यापारियों को न्याय पाने में अत्यधिक समय लगता है। सुधार की आवश्यकता है ताकि व्यापारियों को जल्दी और सही निर्णय मिल सके। -जसबीर सिंह,जीएसटी अधिवक्ता 15.जीएसटी कानून के तहत व्यापारियों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई में पारदर्शिता होनी चाहिए। विभाग की मनमानी कार्रवाई से व्यापारी परेशान हैं। ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए व्यावहारिक और पारदर्शी प्रणाली की आवश्यकता है। -कुलविंदर सिंह राठौर,जीएसटी अधिवक्ता 16.छोटे व्यापारियों को जीएसटी से जुड़े मुद्दों में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जब तक उन्हें सही दिशा और मार्गदर्शन नहीं मिलता, तब तक यह प्रणाली उनके लिए बोझ ही साबित होगी। -अब्दुल रहमान,जीएसटी अधिवक्ता 17.जीएसटी के तहत जो व्यवस्थाएं लागू की गई हैं, वे व्यापारियों के लिए बहुत जटिल हो गई हैं। विशेष रूप से छोटे व्यापारियों के लिए सिस्टम में सुधार किया जाना चाहिए ताकि वे समय पर सही जानकारी प्राप्त कर सकें। -शिवम,जीएसटी अधिवक्ता 18.जीएसटी प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, विशेषकर छोटे व्यापारियों के लिए। अगर छोटे व्यापारियों के लिए कुछ राहत देने के उपाय लागू होते है, तो वे निश्चित रूप से जीएसटी के तहत अपनी डिमांड को बेहतर तरीके से पूरा कर पाएंगे। -हर्ष कपूर,जीएसटी अधिवक्ता

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