योग्य डॉक्टर इलाज के साथ झेल रहे अव्यवस्था और अविश्वास की चुनौती
Sambhal News - शहर में 65 निजी अस्पताल संचालित हो रहे हैं, जहां डॉक्टरों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मरीजों का डॉक्टरों पर भरोसा कम हो रहा है, जिससे डॉक्टरों को सुरक्षा और प्रशासनिक सहयोग की कमी महसूस...

शहर में वर्तमान समय में करीब 65 छोटे-बड़े निजी अस्पताल संचालित हो रहे हैं, जहां 100 से अधिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हजारों मरीजों को स्थानीय स्तर पर ही कम खर्च में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करा रहे हैं। हालांकि, इन अस्पतालों को संचालित करने वाले योग्य और अनुभवी डॉक्टर इन दिनों कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाएं देने के साथ-साथ अब उन्हें सुरक्षा, प्रशासनिक सहयोग और सामाजिक विश्वास के अभाव से भी लड़ना पड़ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि पहले मरीज और उनके परिजन डॉक्टरों पर पूर्ण विश्वास करते थे, लेकिन अब यह भरोसा लगातार कम हो रहा है। इलाज के दौरान अगर कोई अनहोनी घट जाती है, तो तीमारदार तोड़फोड़ और अभद्रता पर उतर आते हैं। कई बार डॉक्टर और अस्पताल स्टाफ को जान का खतरा भी महसूस होता है, लेकिन न स्वास्थ्य विभाग और न जिला प्रशासन की ओर से किसी प्रकार की सुरक्षा या सहायता मुहैया कराई जाती है। वे सुरक्षा के अभाव में लगातार डर के साये में इलाज कर रहे हैं। ऐसे माहौल में न केवल सेवाएं प्रभावित होती हैं, बल्कि डॉक्टरों का मनोबल भी गिरता है। एक और गंभीर समस्या शहर में झोलाछाप डॉक्टरों की बढ़ती सक्रियता है। ये बिना डिग्री और अनुभव के मरीजों को झांसे में लेकर इलाज का झूठा भरोसा देते हैं। जब मरीज की हालत बिगड़ जाती है, तब उसे किसी योग्य चिकित्सक के पास भेज दिया जाता है। इस स्थिति में कई बार मरीज को बचा पाना मुश्किल हो जाता है, और दोष योग्य डॉक्टरों पर मढ़ दिया जाता है।
एनओसी समेत कई तकनीकी अड़चनें
संभल। निजी अस्पताल संचालकों को अग्निशमन विभाग से एनओसी लेने, बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण, और स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्टिंग जैसी प्रक्रियाओं में भी तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों के पंजीकरण, नवीनीकरण व अन्य प्रशासनिक कार्यों में विलंब और भ्रांतियों के चलते डॉक्टरों को मानसिक और आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। शहर के डॉक्टरों ने प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से मांग की है कि उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए, साथ ही अस्पताल संचालन से जुड़ी प्रक्रियाएं सरल बनाई जाएं। मरीज व उनके तीमारदार डॉक्टरों पर भरोसा रखें और किसी भी विपरीत परिस्थिति में संयम बनाए रखें, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं निर्बाध रूप से जारी रह सकें।
शहर के रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों को अस्पताल के संचालन के लिए तमाम मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं, अग्निशमन विभाग की एनओसी भी उनमें से एक है। अग्निशमन विभाग से एनओसी लेने और रिन्युअल कराने में बहुत दिक्कतें हैं, ऐसे में अग्निशमन विभाग एनओसी की मान्यता कम से कम 5 वर्ष की होनी चाहिए, और एनओसी की प्रक्रिया सरल की जानी चाहिए।
डॉ. संजय वार्ष्णेय, बाल रोग विशेषज्ञ अध्यक्ष आईएमए।
योग्य चिकित्सकों की सुरक्षा, सम्मान और मनोबल के लिए भी संकट का कारण बनती जा रही है। शासन, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की संवेदना का अधिकारी केवल रोगी ही नहीं, बल्कि वह चिकित्सक भी है जो अपनी व्यावसायिक और मानवीय जिम्मेदारियों का पूरी निष्ठा से पालन करता है। रोगियों की सहायता के लिए हेल्पलाइन और पोर्टल उपलब्ध हैं, वैसे ही चिकित्सकों की समस्याओं के समाधान के लिए भी एक समर्पित हेल्पलाइन और शिकायत पोर्टल की व्यवस्था की जाए।
डॉ. बिलाल वारसी, दंत रोग विशेषज्ञ।
अस्पताल संचालन के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के लिए डॉक्टरों को तमाम समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। हर वर्ष रजिस्ट्रेशन रिन्युअल कराना पड़ रहा है। विभाग को चाहिए कि वह रजिस्ट्रेशन के रिन्युअल की समय सीमा बढ़ाकर 5 वर्ष करें और इस कार्य के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से सहयोग दिया जाए।
डॉ. नजम खान, रेडियोलॉजिस्ट।
अस्पताल संचालन के लिए डॉक्टरों को प्रदूषण प्रमाण पत्र बनवाने के लिए मुरादाबाद के चक्कर काटने पड़ते हैं, प्रशासन को चाहिए कि वह जिले में ही प्रदूषण प्रमाण पत्र बनवाने की व्यवस्था करे और लॉ इन ऑर्डर के लिए डॉक्टरों को सुरक्षा मुहैया कराए।
डॉ. प्रशांत वार्ष्णेय, ह्दय रोग विशेषज्ञ।
शासन की नई गाइडलाइन जारी हुई है, जिसमें बेड के अनुसार, रजिस्ट्रेशन की समय सीमा तय की गई है। यह सब सरकार के स्तर से तय होता है। अगर किसी डॉक्टर को रजिस्ट्रेशन कराने में कोई समस्या होती है, तो वह उसका समाधान कराएंगे। जिस डॉक्टर के पास जो डिग्री है, वह उसी के अनुरुप अपना कार्य करें, हम पूरा सहयोग करेंगे।
- डॉ. तरुण पाठक, सीएमओ।
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