एक राष्ट्र एक चुनाव' कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं बल्कि राष्ट्रहित में: बंसल
Varanasi News - वाराणसी। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने कहा कि
वाराणसी। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने कहा कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं बल्कि राष्ट्रहित में लिया गया फैसला है, जिसका परिणाम दूरगामी होगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने 2047 तक जो विकसित भारत का सपना देखा है, उसके पूर्ण होने में यह व्यवस्था बड़ी भूमिका निभाएगी। सुनील बंसल एक दिन दौरे पर रविवार की दोपहर बनारस पहुंचे हैं। उन्होंने सिगरा स्थित अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर 'रुद्राक्ष' में भाजयुमो की ओर से 'एक राष्ट्र एक चुनाव' पर आयोजित युवा टाउनहॉल कार्यक्रम को संबोधित किया। सुनील बंसल ने बताया कि एक राष्ट्र एक चुनाव का मामला जेपीसी के समक्ष है, जिसपर आगामी दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर जेपीसी की ओर से विभिन्न वर्गों के साथ उनका पक्ष जाना जाएगा।
इसी क्रम में आज युवाओं से 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के मुद्दे पर मैं केवल यह निवेदन करने आया हूं कि हमें इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसके फायदे के बारे में बताते हुए बंसल ने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव का समर्थन और स्तुति काफी वर्षों से नीति आयोग कर रहा है। उन्होंने बताया कि 1952 से 1967 के बीच में एक राष्ट्र एक चुनाव होते रहे लेकिन 1967 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने राजनीतिक हित के लिए उन्होंने कई राज्यों की सरकारों को भंग किया और दोबारा चुनाव कराया। इसके बाद से अब परंपरा यह है कि प्रतिवर्ष किसी ने किसी राज्य में लोकसभा, विधानसभा, ग्राम पंचायत, नगर निगम अनेक प्रकार के चुनाव होते हैं। उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले लोस चुनाव से पूर्व वहां अलग-अलग समय पर अलग-अलग चुनाव की वजह से 300 दिन तक आचार संहिता लगी रही। जिससे न केवल वहां का विकास कार्य बाधित हुआ बल्कि वहां के रोजगार, व्यापार, शिक्षा सहित अन्य व्यवस्थाओं पर भी असर पड़ा। बताया कि एक लोस चुनाव में 1.35 लाख करोड़ रुपये खर्च होते हैं। निर्वाचन आयोग के अनुमान के हिसाब से पांच साल में 5 से 7 लाख करोड़ रुपये चुनावों पर खर्च होते हैं। आयोग ने ही बताया हैं कि एक वोट पर 1400 रुपये खर्च करता है। बंसल ने कहा कि यदि चुनाव एक साथ होते हैं तो एक सबसे बड़ा फायदा राजनीति कम और विकास ज्यादा होगा। चुनाव के दौरान काम की बजाय चुनावी एजेंडे पर ज्यादा काम होता है। बार-बार चुनाव से केंद्र व राज्य सरकारों को लम्बे समय के लिए पालिसी बनाने में दिक्कत होती है। शार्ट टर्म योजनाएं लाई जाती हैं, इससे आज कई प्रांतों की स्थिति ख़राब है।बताया कि एक बार चुनाव से भारत की जीडीपी 1.5 फीसदी और बढ़ने की सम्भावना है। इसके अलावा कई तरह के आर्थिक बदलाव देखने को मिलेगा। युवाओं को भी राजनीति में ज्यादा मौका मिलने की सम्भवना हैं और परिवारवाद की राजनीति ख़त्म होगी। बार बार चुनाव से राजनितिक वैमनाशयता बढ़ती है और सामाजिक समरसता टूटता है, जिसे एक चुनाव से कम किया जा सकता है। बंसल ने आह्वान किया कि इसे जानभियान बनाना होगा। जिसमें युवाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है। इस पूर्व पद्मभूषण पंडित देवी प्रसाद द्विवेदी, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी प्रियंका सिंह पटेल व रेनू सिंह ने भी संबोधित किया। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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