फर्जी नाम और पते पर एक माह जेल में रहा रेलवे का अपराधी
Varanasi News - - पूर्वोत्तर रेलवे की पुलिस फोर्स ने रेलवे एक्ट में गाजीपुर निवासी को पकड़ा -

- एक माह तक शातिर के जेल में रहने के बाद रेलवे पुलिस की आंख खुली - गाजीपुर के आरोपी का पता आजमगढ़ दर्शाया, नाम भी दूसरा बदल दिया था वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। रेलवे का एक अपराधी करीब एक माह तक फर्जी नाम और पते के आधार पर न केवल कोर्ट में पेश हुआ, बल्कि न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजा गया। करीब एक माह तक वह जेल में रहा, तब जाकर उसका असली नाम और पता सामने आया। अब पूर्वोत्तर रेलवे के गाजीपुर की आरपीएफ को उसके जमानतदारों की तस्दीक करने को कहा गया है। पूरे माामले में आरपीएफ की लापरवाही सामने आई है।
गाजीपुर में बीते साल रेलवे की संपत्ति चोरी हुई थी। मामले में गाजीपुर स्टेशन की आरपीएफ ने ही 17 नवंबर 2024 को मुकदमा दर्ज किया था। इस मामले में बीते 26 मार्च को कथित तौर पर एक युवक को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी होने पर आरपीएफ की ओर से कोर्ट में प्रस्तुत कागजात में उसका नाम सूरज राजभर दर्शाया गया। रिमांड प्रपत्र, नकल चिट, जीडी, केस डायरी आदि प्रस्तुत कर वाराणसी स्थित पूर्वोत्तर रेलवे के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट में पेश किया गया। इसी नाम और पते पर न्यायिक अभिरक्षा में लेते हुए जेल भेजा गया। जेल भेजने करीब एक माह बाद मामला तब खुला, जब गाजीपुर के मदरह के सिंगेरा निवासी विशाल सिंह नामक युवक के परिजन बेटे के लापता होने की बात कहकर पुलिस तक पहुंचे। गाजीपुर पुलिस को बताया कि एक दिन कुछ पुलिसकर्मी आये और उसे लेकर चले गये। फिर तब से पता नहीं है। इस बीच पता चला कि गाजीपुर की आरपीएफ ने एक युवक को जेल भेजा है। महिला गाजीपुर के आरपीएफ थाने पर गई। वहां बताया कि उसका बेटा नहीं मिल रहा है। बेटे की तस्वीर भी दिखाई। उच्चाधिकारियों से गुहार लगाई, तब आरपीएफ ने पुष्टि शुरू की। आजमगढ़ के पूर्व में दिये गये पते पर ग्राम प्रधान से पुष्टि कराने पर नाम-पता अपुष्ट मिला। फिर गाजीपुर के पते के आधार पर ग्राम प्रधान से पुष्टि हुई। इसके बाद विवेचक के पैरों तले जमीन खिसक गई। नाम और पता बदलने को दिया पत्र आरपीएफ की ओर से वाराणसी स्थित पूर्वोत्तर रेलवे के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पत्र दिया गया है। वाराणसी जेल में बंद विशाल सिंह का असली नाम और पता बदलने की गुहार लगाई है। अब उसके जमानतदारों का सत्यापन शुरू किया गया है। अधिवक्ता बोले, बड़ी लापरवाही फौजदारी मामलों के अधिवक्ता हरिओम त्रिपाठी का कहना है कि इस तरह की बड़ी लापरवाही है। गिरफ्तारी के तत्काल बाद परिजनों को सूचित करने का नियम है। आरपीएफ ने जानबूझकर ऐसा नहीं किया या फिर आरोपी के बताये नाम और पते पर ही विश्वास कर जेल भेज दिया। उसके पहचान पत्रों की जांच भी नहीं की गई।
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