बोले काशी- गंगा में ‘प्रदूषण इंडीकेटर बचाने को फंड की दरकार
Varanasi News - वाराणसी में, बीएचयू के प्रशिक्षित युवा गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। दो वर्षों से फंड न मिलने के बावजूद, वे सक्रिय हैं। गंगा में 55 डॉल्फिन का संरक्षण किया जा रहा है। इनका उद्देश्य गंगा...
वाराणसी। सदियों से आमजन उन्हें ‘सूंस या ‘सुईंस के रूप में जानते-पहचाते हैं, वे डाल्फिन गंगाजल के ‘प्रदूषण इंडीकेटर (संकेतक) कही जाती हैं। उनके संरक्षण की मुहिम में बीएचयू में प्रशिक्षित युवाओं ने शुरू की। उनके प्रयासों की देन है कि आज बनारस में सूबे की एकमात्र डाल्फिन सफारी स्थापित हुई है। विगत दो वर्षों से डाल्फिन मित्र के रूप में सक्रिय ये युवा आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। उन्हें दो वर्षों से फंड नहीं मिला है। फिर भी वे सक्रिय हैं तो इसलिए कि उन्हें गंगा से लगाव है। केन्द्र सरकार ने डाल्फिन को राष्ट्रीय जलीय पशु घोषित किया है क्योंकि ये गंगा जल की निर्मलता और अविरलता की सबसे बड़ी प्रमाण हैं।
काशी में गंगा जहां उत्तरवाहिनी हो जाती हैं, उस कैथी क्षेत्र के पास ढकवा के सामने डेढ़ से दो किमी के प्रवाह क्षेत्र में ‘डाल्फिन अभयारण्य चिह्नित किया गया है। इसमें लगभग 55 नर-मादा डॉल्फिन हैं। बनारस के अलावा ये यूपी के नरोरा और बिहार में पटना साहिब भागलपुर से सुल्तानगंज के बहुत थोड़े से क्षेत्र में देखी जाती रही हैं। बनारस में कभी इनकी हलचल को लोग शूलटंकेश्वर से कैथी तक देखते-महसूस करते थे। बीएचयू में प्रशिक्षित डाल्फिन मित्रों की कोशिश है कि वह अनुकूल स्थिति फिर से लौटे। इससे गंगा का वैभव भी पुन: स्थापित होगा। सामने घाट पर ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में डाल्फिन मित्रों ने कहा कि दो वर्षों के दौरान बहुत अनुकूलता आई है लेकिन अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। इन युवाओं के अगुवा सी. शेखर और धर्मेन्द्र पटेल ने बताया कि बीएचयू के महामना मालवीय गंगा शोध केन्द्र में 2021 से 2023 के बीच 700 युवाओं को ‘गंगा मित्र के रूप में ट्रेनिंग मिली। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत ख्यात पर्यावरणविद प्रो. बीडी त्रिपाठी के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग दी गई। पिछले वर्ष दिसंबर में ‘प्रोजेक्ट डाल्फिन शुरू होने के बाद प्रो. त्रिपाठी ने उन युवाओं को काशी में डाल्फिन संरक्षण के लिए सक्रिय किया। धर्मेन्द्र ने कहा कि मेरे जैसे सैकड़ों युवाओं ने शूलटंकेश्वर से कैथी के बीच गंगा में एक-एक प्वाइंट चेक किया। शुरुआत में राजघाट के पास डाल्फिनों की मौजूदगी का संकेत मिला लेकिन वह उत्साहजनक नहीं था। ‘लगातार सर्वेक्षण के क्रम उनकी मौजूदगी ढकवा-कैथी के बाद दिखी तो हम उत्साहित हुए-यह बताते समय धर्मेन्द्र जोश में थे। उनके मुताबिक सात सौ मित्रों की मदद से ढकवा के सामने गंगा में लगभग दो किमी की एरिया में एक-एक कर 55 डाल्फिनों की टैगिंग की गई। तब बढ़ गई जिम्मेदारी सी. शेखर, उत्तम सिंह, निकिता आदि ने बताया कि ढकवा के पास गंगा में डाल्फिन मिलना एक राष्ट्रीय घटना थी। प्रदेश के लिए तो यह बड़ी उपलब्धि थी। इसने डॉल्फिन मित्रों की जिम्मेदारी बढ़ा दी। प्रो. बीडी त्रिपाठी के निर्देशन में योजना बनी कि इन डाल्फिन को सुरक्षित करते हुए उनकी संख्या बढ़ाने के क्या-क्या उपाय होने चाहिए। सबसे बड़ी चुनौती थी डाल्फिन के शिकार पर रोक लगवाने और उनकी जान बचाने की। इसके लिए जन जागरूकता जरूरी थी और उसके केन्द्र में रखे गए मछुआरे। सी. शेखर ने बताया कि डाल्फिन का तेल बहुत महंगा मिलता है। दूसरे, मछलियों की प्रचलित प्रजातियों की तुलना में बहुत बड़ी होती हैं। मछलीपालक उन्हें अपने कार्य-व्यवसाय में बाधक मानते हैं। इसलिए भी उनका शिकार होता रहा है। इसके अलावा मछुआरों के बड़े-बड़े जाल में फंसने से भी डाल्फिन का जीवन संकट में पड़ जाता है। ग्रामीण युवा आए साथ धर्मेन्द्र पटेल ने बताया कि समर्पण, लगन और उत्साह के साथ हमने गंगा तटीय गांवों में डाल्फिन को बचाने के लिए जन जागरण शुरू किया। ग्रामीणों, खासकर मछुआरों को बताया गया कि गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के साथ उनके लिए भी डाल्फिन कितनी जरूरी हैं। मछुआरों से कहा गया कि यदि उनके महाजाल में डाल्फिन फंस जाएं तो उन्हें मारें नहीं बल्कि जाल को फाड़कर उन्हें गंगा में जाने दें। उनके लिए नए जाल का इंतजाम किया जाएगा। बोले-काम आसान नहीं था मगर धीरे-धीरे सकारात्मक परिणाम मिलने लगे। ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं का साथ मिला और अब कम से कम उस अभयारण्य में डाल्फिन सुरक्षित हैं। जैविक खेती पर देते हैं जोर खुशबू, संजना मौर्य ने बताया कि गंगा तटीय गांवों के खेतों में भी रासायनिक खेती होती है, कीटनाशकों को भी बहुतायत से प्रयोग होता है। बारिश के दिनों में खेतों की केमिकल मिट्टी बहकर गंगा में जाती है। उससे डाल्फिन के जीवन पर खतरा होता है। इसलिए रमना से रमचंदीपुर होते हुए कैथी तक के किसानों के बीच जैविक खेती की मुहिम भी प्रोजेक्ट डाल्फिन का अहम हिस्सा बनी। संदीप राजभर, रूबी गुप्ता ने बताया कि हम डाल्फिन मित्र छोटे-छोटे ग्रुप में संवाद, पोस्टर, नुक्कड़ नाटक और रंगोली के माध्यम से भी लोगों को जागरूक करते हैं। मछुआरों से निरंतर आग्रह होता है कि डाल्फिन अभयारण्य में मछलियों के शिकार से बचें। इसके दो फायदे होते हैं। एक-डाल्फिन को निरापद जल क्षेत्र में निरापद वातावरण मिलता है। दूसरा-छोटी मछलियां ही डाल्फिन की मुख्य आहार होती हैं। वे मछुआरों से बचेंगी तो डाल्फिनों के सामने भूखा रहने का संकट नहीं होगा। बना है गंगा नॉलेज सेंटर सी. शेखर ने बताया कि ढकवा गांव के पास गंगा नॉलेज सेंटर भी है। वहां पुस्तकों, चित्रों और समय-समय पर गोष्ठी-संवाद के माध्यम से लोगों को गंगा की संरचना, उसके जलीय जीवों की उपयोगिता और उनके संरक्षण से संबंधित जानकारियां दी जाती हैं। यह सेंटर युवाओं में अधिक लोकप्रिय हो रहा है। दो वर्ष से मानदेय नहीं नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के तहत बीएचयू में महामना मालवीय गंगा शोध केन्द्र सन-2015 में स्थापित हुआ। गंगा की अविरलता और निर्मलता से जुड़े कई तरह के प्रोजेक्ट के अलावा वहां ऐसे युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया जो गंगा के लिए कुछ करने की सोच रखते हों। डाल्फिन प्रोजेक्ट से भी उन्हें एक निश्चित मानदेय पर जोड़ा गया। इधर दो वर्ष से नहीं मिला है। धमेन्द्र पटेल ने कहा कि आर्थिक संकट झेलना पड़ रहा है। फिर भी हम अपने-अपने जेब खर्च को जुटा और मिलाकर लगे हुए हैं। बताया कि बीते नौ मई को हम नई दिल्ली में एनएमसीजी के डायरेक्टर से मिले थे। उन्होंने जल्द ही मानदेय भुगतान का आश्वासन दिया है। शोध केंद्र बंद होने से रुका प्रशिक्षण बीएचयू के महामना मालवीय शोध केंद्र का संचालन रूकने से प्रशिक्षण प्रभावित हो गया है। धर्मेंद्र पटेल, राजेश विश्वकर्मा ने कहा कि अगर केंद्र का संचालन बंद नहीं हुआ होता तो अब तक लगभग पांच से छह हजार लोगों को प्रशिक्षण मिल चुका होता। जब से लोगों को प्रोजेक्ट डॉल्फिन की जानकारी हुई है, तब से वे प्रशिक्षण के लिए आ रहे हैं। केंद्र के माध्यम से लोगों को न सिर्फ डॉल्फिन को बचाने बल्कि गंगा की स्वच्छता आदि का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा था। उनके मुताबिक जुलाई से केंद्र का संचालन शुरू होने की उम्मीद है। वैन से बच्चों को करेंगे जागरूक डॉल्फिन मित्र सरकारी स्कूल के बच्चों को जागरूक करेंगे। चंद्रेश कुमार, सक्षम तिवारी, रोहित गुप्ता, चांदनी विश्वकर्मा ने जोश के साथ बताया कि बच्चों को जागरूक करने के लिए एक वैन तैयार किया गया है। इसमें सरकारी स्कूलों के बच्चों डॉल्फिन दिखाने के साथ ही उनके संरक्षण से जुड़े उपायों जानकारी दी जाएगी। बच्चों को इनकी महत्ता आदि के बारे में बताया जाएगा। इस अभियान का उद्देश्य है कि बचपन से ही बच्चे डॉल्फिन के प्रति जागरूक हो। बताया कि वैन जल्द ही चलाई जाएगी। ‘सन ऑफ रिवर गंगा के लिए जरूरी : प्रो. बीडी त्रिपाठी (फोटो) राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन समेत गंगा से जुड़ी कई नेशनल कमेटियों में बतौर विशेषज्ञ शामिल रहे ख्यात पर्यावरणविद प्रो. बीडी त्रिपाठी ने बताया कि डाल्फिन गंगा के लिए क्यों जरूरी है। 18 मई-2009 को गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया। इसके पहले तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश की अध्यक्षता में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एक बैठक हुई थी। उसमें जयराम रमेश ने नदी वैज्ञानिकों से ऐसी कोई पद्धति विकसित करने का आग्रह किया जिसके जरिए आम आदमी को आसानी से पता चल जाए कि गंगाजल कहां शुद्ध है और कहां अशुद्ध या प्रदूषित। प्रो. त्रिपाठी के अनुसार, लंबे विचार-विमर्श के बाद सभी विशेषज्ञों ने एकमत से डाल्फिन को प्रदूषण इंडीकेटर के रूप में चुना। ऐसा इसलिए क्योंकि गंगा डाल्फिन वहीं रहेगी जहां जल की गहराई कम से कम 12 से 18 फीट हो, वहां डीओ या डिजाल्व ऑक्सीजन की मात्रा 5 से 8 के बीच होनी चाहिए। वहां के जल में बीओडी यानी बायो ऑक्सीजन डिमांड का मानक 3 मिलीग्राम से अधिक न हो। ये तीन प्रमुख अनुकूलताएं जहां नहीं होंगी, वहां डाल्फिन सर्वाइव नहीं कर पाएगी। इसलिए यह गंगा जलप्रदूषण की पहचान करने का सबसे सरल माध्यम है। इसे ‘सन ऑफ रिवर भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि यह प्राचीन जीव करीब 10 करोड़ साल से भारत में मौजूद है। वैसे इसकी भारत में आधिकारिक खोज गंगा सन- 1801 में हुई थी। मादा की औसत लम्बाई नर डाल्फिन से अधिक होती है। एक विकसित डाल्फिन का वजन 80 से 100 किलो तक हो सकती है। इसकी औसत आयु 28 वर्ष रिकार्ड की गई है। शोध बताते हैं कि डाल्फिन के संरक्षण के लिए सम्राट अशोक ने कई सदी पूर्व पहल की थी। आंखें नहीं होतीं गांगेय डाल्फिन को प्रो. बीडी त्रिपाठी ने एक रोचक जानकारी दी कि गैंगेटिक या गांगेय डाल्फिन की आंखें नहीं होतीं। वे अंधी होती हैं। वे इकोलोकेशन (प्रतिध्वनि निर्धारण) और सूंघने की अपार क्षमताओं से अपना शिकार और भोजन तलाशती हैं। यह भी कि डाल्फिन मछली प्रजाति में शामिल नहीं हैं। ये स्तनधारी जलीय जीव हैं जो सांस लेने के लिए समय-समय पर जल के ऊपरी सतह पर आती रहती हैं। उन्होंने कहा कि पहले कभी सामनेघाट से राजघाट के सामने बीच गंगा में डाल्फिन (सुईंस) दिखती थीं, तब वे सांस लेने ही ऊपर आती थीं। वन विभाग के भी हैं डाल्फिन मित्र डाल्फिन अभयारण्य को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के बाद प्रदेश सरकार ने इस साल 22 मार्च को वन विभाग के जरिए डाल्फिन सफारी की शुरुआत की। यह डाल्फिन अभयारण्य में ही बना है। यहां विशेष नौका से एक बार में सात पर्यटकों के भ्रमण की सुविधा है। प्रवेश नि:शुल्क है जिसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। सफारी के उद्घाटन के समय ही वन विभाग ने 11 डाल्फिन मित्रों की भी नियुक्ति की। इन पर पर्यटकों को सफारी भ्रमण कराने के साथ गंगा के अलग-अलग तटीय क्षेत्रों में जन जागरूकता की जिम्मेदारी है। विभाग के मुताबिक गाजीपुर के पटना और बलिया में माल्देपुर को भी डॉल्फिन सफारी शुरू करने के लिए चिह्नित किया जा रहा है। गाजीपुर के पटना में तीन किमी क्षेत्र में 30 और बलिया में माल्देपुर क्षेत्र के चार किमी में 25 डॉल्फिन हैं। सुनें हमारी बात महामना मालवीय शोध केंद्र बंद होने से डॉल्फिन मित्रों को कई परेशानी हो रही है। केंद्र खोलने की बात चल रही है। - सी शेखर डॉल्फिन बचाने के लिए फंड मिलता था। दो माह से फंड नहीं आया है। डॉल्फिन मित्र खुद के खर्चे से काम कर रहे हैं। - धर्मेंद्र पटेल नाविकों में डॉल्फिन संरक्षण के प्रति जागरूकता आई है, लेकिन आम लोगों में अभी कमी है। इसके लिए प्रयास की जरूरत है। - राजेश कुमार विश्वकर्मा महामना गंगा शोध केंद्र खुला रहता तो कम से कम 5-6 हजार लोगों को गंगा की स्वच्छता और डॉल्फिन बचाने का प्रशिक्षण मिला होता। - राधा मौर्या कृषि, घरेलू और औद्योगिक कचरे से गंगा में प्रदूषण बढ़ने के साथ डॉल्फिन का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। - संजना मौर्या कई बार जाल में फंसने से डॉल्फिन की मृत्यु हो जाती है। जिस क्षेत्र में डॉल्फिन हैं, वहां मछली पकड़ने पर रोक लगनी चाहिए। - निकिता डॉल्फिन राष्ट्रीय जलीय जीव है। जैसे अन्य जीवों के संरक्षण के प्रयास चल रहे हैं, वही प्रयास डॉल्फिन के लिए भी जरूरी हैं। - खुशबू गर्मी में गंगा का जलस्तर कम होने लगता है और तापमान बढ़ता है। इससे डॉल्फिन के जीवन पर असर पड़ता है। - उत्तम सिंह डॉल्फिन को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। लोग जागरूक होंगे तो संरक्षण में अपना सहयोग देंगे। - चांदनी विश्वकर्मा शूलटंकेश्वर से नमो घाट के बीच गंगा में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के ठोस उपाय होने जरूरी हैं। यह पर्यावरण के लिए उपयोगी होगा। -रूबी गुप्ता अभयारण्य में मछुआरों से मछलियां बचेंगी तो डाल्फिनों के सामने भूखा रहने का संकट नहीं होगा। इसे कड़ाई से सुनिश्चित करना चाहिए। -चंद्रेश कुमार मोटर चालित नावों और क्रूज की तेज आवाज का असर डॉल्फिन पर पड़ता है। इससे उनकी निश्चिंतता खत्म हो जाती है। संदीप राजभर ........................................................................ सुझाव 1- ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन में जुटे युवाओं को मानदेय मिलना आवश्यक है। स्थानीय प्रशासन को भी सुविधाओं का इंतजाम करना चाहिए। 2- महामना गंगा शोध केंद्र का संचालन जल्द से जल्द शुरू होना चाहिए। यहां की ट्रेनिंग से लोग जुड़ेंगे और डॉल्फिन बचाने के लिए आगे आएंगे। 3- डॉल्फिन बचाने के लिए आमजन में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए योजना बनाकर अभियान चलाया जाए। 4- स्वच्छ गंगा के लिए कृषि, घरेलू और औद्योगिक कचरे को गंगा में जाने से रोकना होगा। डॉल्फिन के लिए भी यह जरूरी है। 5- जिस क्षेत्र में डॉल्फिन हों, वहां मछली पकड़ने पर प्रतिबंध लगना चाहिए। डॉल्फिन के संरक्षण के लिए यह आवश्यक है। शिकायतें 1- दो साल से डाल्फिन मित्रों का फंड नहीं आ रहा है। डॉल्फिन मित्र स्वयं के पैसे से काम कर रहे हैं। जबकि संरक्षण के लिए फंड की जरूरत है। 2-महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र को बंद करने की बात चल रही है। गंगा और डॉल्फिन मित्रों के प्रयास से उसे बंद करने से रोका गया है, लेकिन अभी इसमें काम नहीं हो रहा है। 3- डॉल्फिन के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव है। नाविकों में भी अपेक्षा के अनुरूप जागरूकता नहीं आई है। 4- गंगा किनारे के कृषि, घरेलू और औद्योगिक कचरे से गंगा प्रदूषण बढ़ रहा है। कई बार इससे डॉल्फिन की मौत का खतरा बढ़ जाता है। 5- लोग मछली पकड़ने के लिए लोग जाल लगाते हैं। इसमें फंसने से डॉल्फिन की मौत हो जाती है। कई बार ऐसे मामले हुए हैं।
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