who was baba shivanand his followers are reaching kashi in large numbers after his death at the age of 129 years कौन से बाबा शिवानंद? 129 साल की उम्र में जिनके निधन पर भारी संख्‍या में काशी पहुंच रहे अनुयायी, Uttar-pradesh Hindi News - Hindustan
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कौन से बाबा शिवानंद? 129 साल की उम्र में जिनके निधन पर भारी संख्‍या में काशी पहुंच रहे अनुयायी

उनके देहावसान की सूचना पाकर पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक प्रदेश के विभिन्न शहरों में रहने वाले बाबा के अनुयायियों में से कुछ ने काशी के लिए प्रस्थान कर दिया है। वहीं कुछ संसाधनों की प्रतीक्षा में हैं।

Ajay Singh अरविन्द मिश्र, वाराणसीSun, 4 May 2025 08:56 AM
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कौन से बाबा शिवानंद? 129 साल की उम्र में जिनके निधन पर भारी संख्‍या में काशी पहुंच रहे अनुयायी

पद्मश्री बाबा शिवानंद का 129 साल की उम्र में शनिवार की रात निधन हो गया। उनके निधन की सूचना पाकर पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक प्रदेश के विभिन्न शहरों में रहने वाले बाबा के अनुयायियों में से कुछ ने काशी के लिए प्रस्थान कर दिया है। वहीं कुछ संसाधनों की प्रतीक्षा में हैं। अमेरिका और इंग्लैंड में रहने वाले उनके कुछ अनुयायियों ने भी अति शीघ्र काशी पहुंचने की मंशा जाहिर की है। ऐसे में संभव है कि चार मई को देर रात अथवा पांच की सुबह बाबा का अंतिम संस्कार किया जाए।

शरिवार देर रात से उनके निधन की खबर तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी। योग के निरोग रहते हुए समाज की सुदीर्घ सेवा करने के लिए उन्हें वर्ष 2022 में पद्मश्री से अलंकृत किया था। राष्ट्रपति भवन में पद्म अलंकरण से पूर्व समारोह में षाष्टांग दंडवत करने वाले वह देश के पहले मनीषी थे।

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बंगाल में प्रचलित माधुकरी। भिक्षाटन की सबसे कठिन शैली। रोजाना तीन दरवाजों से तीन अंजुरी भीख ही स्वीकार करना इसकी शर्त है। 1896 से 1900 तक यथावत रहे दुर्भिक्ष ने तत्कालीन भारत (वर्तमान में बांग्लादेश) के श्रीहट्ट जिले में माधुकरी दंपति श्रीनाथ गोस्वामी और उनकी पत्नी भगवती देवी की परीक्षा ली। स्वयं सहित बेटी आरती और दुधमुंहे शिवानंद का पेट पालना दुरूह था। चार वर्ष तक चुनौतियों से जूझने के बाद आखिर वह चमत्कारी दिन आया जब नवद्वीप से निकले संत ओंकारानंद गोस्वामी ने याज्ञवल्क्य द्वारा कठोपनिषद में लिखे मंत्र ‘चरनवै मधुविंदति...’को चरितार्थ करते हुए माधुकरी के अमृत पुत्र की पहचान की। उन्होंने चार वर्ष के शिवानंद को उनके माता-पिता से मांग लिया। यहीं से एक बालकरूपी मानव के महामानव बनने की यात्रा का आरंभ हुआ। 129 वर्ष के सुदीर्घ जीवन के बाद महामानव बाबा शिवानंद शनिवार की रात धराधाम से महाप्रयाण कर गए।

नवद्वीप में पड़ी साधना की नींव: चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली बंगाल के नवद्वीप जिले में बालक शिवानंद की मानव सेवा साधना आरंभ हुई। संपूर्ण विश्व घर, प्रत्येक नर-नारी माता पिता, अनासक्तिपूर्ण आनंद और संपूर्ण प्राणिमात्र ही सचल ईश्वर है के मूल संस्कार गुरु ओंकारानंद ने उनमें रोपित किए। वही संस्कार उनके सूत्र रहे। चार वर्ष की अवस्था से मिली योग शिक्षा के निमित्त गुरु दक्षिणा में दिए वचन का पालन करते हुए वह बीते 29 अप्रैल तक नित्य एक घंटा योगासन करते रहे।

...किंतु माता-पिता को दी चरणाग्नि

1902 में एक दिन गुरु ने अचानक आदेश दिया कि तुम सात दिन के लिए अपने घर जाओ। छह साल के शिवानंद जिस दिन घर पहुंचे, उसी शाम बहन आरती का निधन हुआ। सातवें दिन सूर्योदय से पहले मां और सूर्योदय के बाद पिता का स्वर्गवास हुआ। मुखाग्नि का वक्त आया तो बालक ने कर्मकांडियों के विरोध के बाद भी चिता पर माता पिता को चरणाग्नि ही दी।

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78 वर्ष की उम्र में पहली बार स्पर्श की मुद्रा

1925 में गुरु ने एक पत्र देकर उन्हें विश्व भ्रमण पर भेजा। 29 वर्ष के शिवानंद सबसे पहले लंदन पहुंचे। उनकी प्रथम लंदन यात्रा की स्मृति में अब वहां उनकी शिष्या डॉ. शर्मिला सिन्हा ने शिवानंद आश्रम बनाया है। इसके बाद अगले 34 वर्ष तक नार्थ अमेरिका, यूगोस्लोवाकिया, चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया , बर्लिन, हंगरी, ऑस्ट्रेलिया, सोवियत संघ आदि देशों की यात्रा की। इन 34 वर्षों में उन्होंने कभी मुद्रा स्पर्श नहीं की। 78 वर्ष की अवस्था में पहली बार दान देने के लिए उन्होंने मुद्रा का स्पर्श किया था।

सात की संख्या सदा रही है परिवर्तनकारी

सात की संख्या बाबा शिवानंद के लिए सदैव परिवर्तनकारी रही। विश्व भ्रमण के 34 वें वर्ष 1959 में वह एक दक्षिणी अफ्रीकी देश में थे। सात जुलाई को उन्हें अपने गुरु का पत्र पुन: मिला जिसमें तत्काल नवद्वीप लौटने का आदेश था। उनके नवद्वीप लौटने के ठीक सातवें दिन गुरु ओंकारानंद ने शरीर त्याग दिया। गुरु को खोने के सात माह बाद एक भक्त के साथ वह शिलांग आ गए। असम के डिब्रूगढ़ में एक श्मशान में शिव साधना की। 1977 में वृंदावन पहुंचे। यहीं सात माह बिताने के बाद ईश्वरीय संकेत पर वह काशी आकर बस गए।