उत्तराखंड में बस्तियों पर सुनवाई का अवसर दिए बिना बुलडोजर ऐक्शन न्यायोचित नहीं: नैनीताल हाईकोर्ट
- प्रार्थना पत्र में यह भी कहा गया कि उन्हें सुनवाई का मौका तक नहीं दिया जा रहा है। सीधे बुलडोजर की कार्रवाई की जा रही है। जिन लोगों ने नदियों, नालों, जल स्रोतों और गधेरों को पाट कर अतिक्रमण किया है और वे चिह्नित भी हो चुके है, उन्हें नहीं हटाया जा रहा है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून जिले के विकासनगर क्षेत्र में झुग्गियों पर शुरू हुई बुल्डोजर की कार्रवाई को लेकर दायर प्रार्थना पत्र पर शनिवार शाम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की। इन बस्ती वालों के विशेष अंतरिम राहत के अनुरोध पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने कार्रवाई संबंधित आदेश पर रोक लगा दी है।
साथ ही राज्य सरकार से कहा है कि सुनवाई का अवसर दिए बिना बस्तियों के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई न्यायोचित नहीं है। क्योंकि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइन भी है, इसलिए उसका अनुपालन आवश्यक है।
प्रार्थना पत्र में यह भी कहा गया कि उन्हें सुनवाई का मौका तक नहीं दिया जा रहा है। सीधे बुलडोजर की कार्रवाई की जा रही है। जिन लोगों ने नदियों, नालों, जल स्रोतों और गधेरों को पाट कर अतिक्रमण किया है और वे चिह्नित भी हो चुके है, उन्हें नहीं हटाया जा रहा है।
इसलिए उनका पक्ष भी सुना जाए। मामले के अनुसार, देहरादून निवासी अजय नारायण शर्मा, रेनू पाल एवं उर्मिला थापर ने उच्च न्यायालय में अलग-अलग जनहित याचिका दायर कर कहा है कि देहरादून में सहस्रध्रारा क्षेत्र की जलमग्न भूमि में भारी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं जिससे जलस्रोतों के सूखने के साथ ही पर्यावरण को खतरा पैदा हो रहा है।
दूसरी याचिका में कहा गया है कि ऋषिकेश में नालों, खालों और ढांग पर बेइंतहा अतिक्रमण कर अवैध निर्माण किए गए हैं। तीसरी जनहित याचिका में कहा गया है कि देहरादून में 100 एकड़, विकासनगर में 140 एकड़, ऋषिकेश में 15 एकड़, डोईवाला में 15 एकड़ के करीब नदियों की भूमि पर अतिक्रमण किया गया है।
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