helicopter crash in Uttarakhand Why are these accidents happening know science behind it 40 दिनों में 5 हादसे, उत्तराखंड में क्यों क्रैश हो रहे हेलीकॉप्टर? इसके पीछे की पूरी कहानी जानें, Uttarakhand Hindi News - Hindustan
Hindi Newsउत्तराखंड न्यूज़helicopter crash in Uttarakhand Why are these accidents happening know science behind it

40 दिनों में 5 हादसे, उत्तराखंड में क्यों क्रैश हो रहे हेलीकॉप्टर? इसके पीछे की पूरी कहानी जानें

उत्तराखंड में पिछले 40 दिनों में 5 हेलीकॉप्टर हादसे हुए हैं। पिछले साल भी ऐसे हादसे हुए। आखिर उत्तराखंड में इस तरह के हादसे क्यों होते हैं? समझिए

Anubhav Shakya लाइव हिन्दुस्तान, रुद्रप्रयागTue, 17 June 2025 07:08 AM
share Share
Follow Us on
40 दिनों में 5 हादसे, उत्तराखंड में क्यों क्रैश हो रहे हेलीकॉप्टर? इसके पीछे की पूरी कहानी जानें

उत्तराखंड, जहां हिमालय की गोद में बसे चारधाम यात्रियों को अपनी ओर खींचते हैं, आजकल एक दुखद वजह से सुर्खियों में है। हाल के दिनों में यहां हेलीकॉप्टर क्रैश की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जो न केवल तीर्थयात्रियों के लिए खतरा बन रही हैं, बल्कि एविएशन सुरक्षा पर भी सवाल उठा रही हैं। 15 जून 2025 को रुद्रप्रयाग के गौरीकुंड में हुए ताजा हादसे ने सबको झकझोर दिया, जिसमें सात लोगों की जान चली गई। आखिर इन हादसों के पीछे का विज्ञान और कारण क्या हैं? आइए समझते हैं।

15 जून का दिल दहलाने वाला हादसा

बीते 15 जून को आर्यन एविएशन का एक हेलीकॉप्टर केदारनाथ से गुप्तकाशी की ओर उड़ान भर रहा था। सुबह करीब 5:30 बजे गौरीकुंड के जंगलों में यह हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया। हेलीकॉप्टर में सवार पायलट राजवीर सिंह चौहान, विक्रम सिंह रावत, विनोद देवी, तृष्टि सिंह, राजकुमार सुरेश, श्रद्धा राजकुमार जायसवाल और दो साल की मासूम काशी की इस हादसे में मौत हो गई। शुरुआती जांच में खराब मौसम को इसका मुख्य कारण बताया गया, जिसमें कम दृश्यता और घने बादल शामिल थे। हादसे के बाद हेलीकॉप्टर में आग लग गई, जिससे मलबा पूरी तरह बिखर गया। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तुरंत राहत कार्य में जुट गईं, लेकिन खराब मौसम ने बचाव कार्य को और चुनौतीपूर्ण बना दिया।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस हादसे पर गहरा दुख जताया और सोशल मीडिया पर लिखा, “एसडीआरएफ, स्थानीय प्रशासन और अन्य रेस्क्यू दल राहत कार्यों में जुटे हैं। बाबा केदार से सभी यात्रियों के सकुशल होने की कामना करता हूं।”

40 दिनों में 5 हादसे: आंकड़े जो डराते हैं

उत्तराखंड में हेलीकॉप्टर हादसों का यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले 40 दिनों में चारधाम यात्रा मार्ग पर पांच हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कई लोगों की जान गई है। आंकड़ों पर नजर डालें:

  • 8 मई 2025: उत्तरकाशी के गंगनानी में एक हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ, जिसमें छह लोगों की मौत हुई और एक यात्री गंभीर रूप से घायल हुआ।
  • 2 मई 2025: बद्रीनाथ से लौट रहा एक हेलीकॉप्टर खराब मौसम के कारण राइंका ऊखीमठ में आपात लैंडिंग (इमरजेंसी लैंडिंग) करनी पड़ी। इस हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई।
  • 17 मई 2025: केदारनाथ में एक हेली एंबुलेंस क्रैश लैंडिंग का शिकार हुई, सौभाग्यवश सभी यात्री सुरक्षित रहे।
  • 7 जून 2025: केदारनाथ के लिए उड़ान भर रहे एक हेलीकॉप्टर की तकनीकी खराबी के कारण रुद्रप्रयाग में हाईवे पर क्रैश लैंडिंग हुई। इसमें कोई जनहानि नहीं हुई।
  • 15 जून 2025: गौरीकुंड में आर्यन एविएशन का हेलीकॉप्टर क्रैश, सात लोगों की मौत।

पिछले रिकॉर्ड: 2013 में केदारनाथ आपदा के दौरान वायुसेना का एमआई-17 हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ, जिसमें 20 लोगों की जान गई थी। 2018, 2019 और 2022 में भी तकनीकी खराबी और खराब मौसम के कारण कई हादसे हुए।

हादसों के पीछे का विज्ञान

उत्तराखंड में बार-बार होने वाले हेलीकॉप्टर हादसों के पीछे कई वैज्ञानिक और तकनीकी कारण हैं।

-1. हिमालय में पल-पल बदलता मौसम

हिमालय की ऊंची चोटियां और गहरी घाटियां मौसम को पलक झपकते बदल देती हैं। गौरीकुंड जैसे इलाकों में अचानक कोहरा, घने बादल और तेज हवाएं दृश्यता को लगभग शून्य कर देती हैं। हेलीकॉप्टर पायलट्स के लिए लो विजिबिलिटी सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि यह नेविगेशन को मुश्किल बनाता है। 15 जून के हादसे की जांच में भी यही कारण सामने आया। वैज्ञानिक रूप से, हिमालय में मौसम का तेजी से बदलना जेट स्ट्रीम और स्थानीय थर्मल डायनामिक्स का परिणाम है, जो अचानक दबाव और तापमान में बदलाव लाता है।

2. हवा का खेल: डाउनड्राफ्ट और टर्बुलेंस

पहाड़ी इलाकों में हवा का बहाव मैदानी इलाकों से बिल्कुल अलग होता है। हिमालय की चोटियों पर हवा अचानक नीचे की ओर धकेलने वाली होती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में 'डाउनड्राफ्ट' कहते हैं। यह हेलीकॉप्टर को अचानक नीचे खींच सकता है। इसके अलावा, घाटियों में हवा की तेज टर्बुलेंस (हवा का अचानक झटका) भी पायलट के लिए मुश्किलें खड़ी करती है।

3. ऑक्सीजन की कमी: इंजन और पायलट दोनों पर दबाव

हिमालय की ऊंचाई पर हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में 'लो एयर डेंसिटी' कहते हैं। इससे हेलीकॉप्टर के इंजन को पर्याप्त शक्ति नहीं मिल पाती, और लिफ्ट (उठान) कम हो जाती है। साथ ही, पायलट को भी सांस लेने में दिक्कत हो सकती है, जिससे उसकी निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।

ये भी हैं हादसों के पीछे की वजहें

तकनीकी खामियां और रखरखाव

कई हादसों में तकनीकी खराबी एक बड़ा कारण रही है। उदाहरण के लिए, 7 जून 2025 को रुद्रप्रयाग में एक हेलीकॉप्टर को तकनीकी खराबी के कारण आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी। पुराने हेलीकॉप्टरों का उपयोग, अपर्याप्त रखरखाव और सिंगल-इंजन हेलीकॉप्टरों (जैसे Bell-VT-QXF) का इस्तेमाल जोखिम को बढ़ाता है। सिंगल-इंजन हेलीकॉप्टर में इंजन फेल होने पर बैकअप की कोई गुंजाइश नहीं होती, जो हिमालय जैसे कठिन इलाकों में खतरनाक है।

नेविगेशन सिस्टम की कमी

उत्तराखंड के हेलीपैड्स पर आधुनिक रडार और नेविगेशन सिस्टम की कमी एक गंभीर समस्या है। पायलट्स को मोबाइल फोन के जरिए नेविगेशन करना पड़ता है, जो बेहद असुरक्षित है। बिना उन्नत रडार और जीपीएस सिस्टम के, पायलट्स को मौसम और इलाके की चुनौतियों का सामना करना मुश्किल हो जाता है।

मानकों की अनदेखी

कई बार एविएशन कंपनियां खराब मौसम की चेतावनियों को नजरअंदाज कर उड़ान भरती हैं। डीजीसीए (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने हाल के हादसों के बाद सख्त नियम लागू करने की बात कही है, जिसमें उड़ान से पहले मौसम की सटीक जानकारी और हेलीकॉप्टर की तकनीकी जांच अनिवार्य होगी। फिर भी, व्यावसायिक दबाव के चलते कुछ कंपनियां जोखिम लेती हैं, जो हादसों का कारण बनता है।

पायलट की ट्रेनिंग

पहाड़ी इलाकों में हेलीकॉप्टर उड़ाने के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत होती है। लेकिन कई बार कम अनुभवी पायलटों को भी ये जिम्मेदारियां दे दी जाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पहाड़ी उड़ानों के लिए पायलट को कम से कम 1,000 घंटे का उड़ान अनुभव होना चाहिए, लेकिन कई बार इससे कम अनुभव वाले पायलट भी उड़ान भरते हैं।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।