श्रीकृष्ण-सुदामा के मित्रता से सीख लेने की जरूरत
हनुमान मंदिर डोभरी में चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन कथा वाचक प्रवीण पैन्यूली ने जीवन जीने की कला और श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कैसे भगवान...
हनुमान मंदिर डोभरी में चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन रविवार को कथा वाचक ने विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से जीवन जीने की कला बताई। इसके साथ ही श्रीकृष्ण-सुदामा मित्रता का वर्णन किया गया। कथा वाचक प्रवीण पैन्यूली ने कहा कि मनुष्य का जीवन कई योनियों के बाद मिलता है। सूर्यदेव से सत्रजीत को उपहार स्वरूप मिली मणि का प्रसंग सुनाते हुए मणि के खो जाने पर जामवंत और श्रीकृष्ण के बीच 28 दिन तक चले युद्ध और फिर जामवंती, सत्यभामा समेत से श्रीकृष्ण सभी आठ विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे प्रभु ने दुष्ट भौमासुर के पास बंदी बनी हुई 16 हजार 100 कन्याओं को मुक्त करवाया और उन्हें अपनी पटरानी बनाकर उन्हें मुक्ति दी। उन्होंने कृष्ण और सुदामा की निश्छल मित्रता का वर्णन करते हुए बताया मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्रीकृष्ण सुदामा से समझा जा सकता हैं। सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वार पालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं। इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है। जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना, प्रभु सुदामा-सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे। वहीं सामने सुदामा सखा को देखकर अपने सीने से लगा लिया। उन्होंने सुदामा और कृष्ण की झांकी पर फूलों की वर्षा की। इस दौरान मुख्य यजमान अनंत सोलंकी, अरविंद सोलंकी, अजय सैनी, नीलम रावत आदि मौजूद रहे।
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