Ganga Saptami: शिव की जटाओं से इस दिन निकली थीं मां गंगा
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (03 मई) को भगवान शंकर की जटाओं से मां गंगा ने पृथ्वी की ओर अपनी यात्रा आरंभ की थी। ऐसी मान्यता है कि ‘गंगा सप्तमी’ के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्यों को उसके हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (03 मई) को भगवान शंकर की जटाओं से मां गंगा ने पृथ्वी की ओर अपनी यात्रा आरंभ की थी। ऐसी मान्यता है कि ‘गंगा सप्तमी’ के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्यों को उसके हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा शिव की जटाओं से निकली थीं और गंगा दशहरा के दिन गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।
विष्णु आदि पुराणों के अनुसार गंगा को भगवान विष्णु के बायें पैर के अंगूठे के नख से प्रवाहित होना बताया गया है। गंगा के जन्म के संबंध में पुराणों में अनेक कथाएं हैं। एक मान्यतानुसार भगवान विष्णु के वामन रूप में राक्षस बलि के प्रभुत्व से मुक्ति दिलाने के बाद ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरण धोए और उस जल को अपने कमंडल में भर लिया। इस जल से गंगा का जन्म हुआ।
एक अन्य कथानुसार भगवान शिव ने संगीत के दुरुपयोग से पीड़ित राग-रागिनियों का उद्धार करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और नारद के सम्मुख गान गाया, जिसे सुनकर भगवान विष्णु के शरीर से पसीना निकलने लगा और ब्रह्माजी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी से गंगा का जन्म हुआ।
कुछ अन्य पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान शंकर ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में परिवर्तित किया था। इनमें तीन धाराएं-‘नलिनी’, ‘ह्लादिनी’, ‘पावनी’ पूर्व की तरफ गईं। ‘सीता’, ‘चक्षु’, ‘सिंधु’ पश्चिम की ओर निकलीं, जबकि सातवीं धारा ‘भगीरथी’ पृथ्वी की ओर निकलीं। कूर्म पुराण के अनुसार गंगा सबसे पहले ‘सीता’, ‘अलकनंदा’, ‘चक्षु’ और ‘भद्रा’ के रूप में चार धाराओं में बहती हैं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा ‘मंदाकिनी’ के रूप में, पृथ्वी पर ‘गंगा’ के रूप में और पाताल में ‘भोगवती’ या ‘वैतरणी’ के रूप प्रवाहित हो रही हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार जब गंगा शिव की जटाओं से पृथ्वी की ओर निकली, तो उनके प्रचंड वेग से पृथ्वी पर उथल-पुथल मच गई। इसी क्रम में गंगा ने ऋषि ‘जह्नु’ के आश्रम को भी तहस-नहस कर दिया और उनकी तपस्या भंग हो गई। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने गंगा को दंड देते हुए उसके समस्त जल को पी लिया। यह देखकर देवताओं ने ऋषि से गंगा को मुक्त करने की प्रार्थना की ताकि वे राजा भगीरथ के पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति प्रदान कर सकें। ऋषि जह्नु ने देवताओं की विनती पर गंगा को मुक्त करते हुए उसे अपने दायें कान से बाहर निकाल दिया। इस कारण गंगा का नाम ‘जाह्नवी’ हुआ। इस घटना के बाद से गंगा को ऋषि जह्नु की पुत्री भी कहा जाने लगा।