Goddess Baglamukhi Jayanti: Goddess Baglamukhi is the one who gives victory in war know how to worship देवी बगलामुखी जयंती: युद्ध में विजय दिलाने वाली देवी हैं बगलामुखी, जानें कैसे करें इनकी पूजा, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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देवी बगलामुखी जयंती: युद्ध में विजय दिलाने वाली देवी हैं बगलामुखी, जानें कैसे करें इनकी पूजा

दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या देवी बगलामुखी की जयंती वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इन्हें देवी पार्वती का उग्र स्वरूप माना जाता है। बगलामुखी देवी को युद्ध और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाली देवी माना जाता है।

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानTue, 29 April 2025 08:55 AM
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देवी बगलामुखी जयंती: युद्ध में विजय दिलाने वाली देवी हैं बगलामुखी, जानें कैसे करें इनकी पूजा

दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या देवी बगलामुखी की जयंती वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इन्हें देवी पार्वती का उग्र स्वरूप माना जाता है। बगलामुखी देवी को युद्ध और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाली देवी माना जाता है। वशीकरण और कीलन की शक्ति देने वाली देवी बगलामुखी के पीतांबरा, ब्रह्मास्त्र रूपिणी आदि नाम भी हैं। इनका वाहन बगुला पक्षी है।

पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में पृथ्वी भीषण तूफान के कारण नष्ट होने वाली थी। पृथ्वी लोक की ऐसी हालत देखकर भगवान विष्णु चिंतित होकर भगवान शिव के पास गए। भगवान शंकर ने उन्हें कहा, ‘इस संकट को सिर्फ आदिशक्ति ही दूर कर सकती हैं।’ विष्णु ने देवी की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर मां जगदंबा सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में बगलामुखी के रूप में प्रकट हुईं और उन्होंने समस्त प्राणियों की रक्षा की।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक राक्षस ने सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का ग्रंथ चुरा लिया और पाताल लोक में जाकर छिप गया। उस राक्षस से मुक्ति दिलाने के लिए देवी बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। उन्होंने बगुले का रूप धर कर अपनी शक्ति से उस राक्षस का वध किया और ग्रंथ ब्रह्माजी को सौंप दिया।

पाैराणिक मान्यता के अनुसार सबसे पहले ब्रह्माजी ने बगलामुखी साधना का उपदेश सनकादि ऋषियों को दिया था। सनकादि ऋषियों से प्रेरित होकर देवर्षि नारद ने भी देवी की साधना की थी। देवी के दूसरे उपासक भगवान विष्णु ने भगवान परशुराम को यह विद्या प्रदान की और उन्होंने इस विद्या को द्रोणाचार्य को प्रदान किया।

वैदिक काल में सप्तऋषियों ने देवी बगलामुखी की साधना की थी। भगवान कृष्ण ने भी महाभारत के युद्ध से पूर्व पांडवों से मां बगलामुखी की साधना करवाई थी। इनकी साधना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। देवी बगलामुखी की दो भुजाएं हैं। इनके दाहिने हाथ में गदा है तथा बायें हाथ से एक दानव की जीभ पकड़कर उसे मारते हुए दर्शाया जाता है। देवी की यह छवि उनके स्तंभन स्वरूप को प्रदर्शित करती है।

देवी बगलामुखी में सोलह शक्तियां विराजमान हैं। ये शक्तियां- मंगल, वश्या, अचलाय, मंडरा, स्तंभिनी, बलाय, जृम्भिणि, मोहिनी, भाविका, धात्री, कलना, भ्रामिका, कल्पमासा, कालकर्षिणि, भोगस्थ और मंदगमना हैं।

देवी बगलामुखी के पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग होता है। इनका रंग स्वर्ण के समान पीला है, इसलिए मां बगलामुखी की साधना में पीले वस्त्र धारण किए जाते हैं। देवी बगलामुखी की साधना के लिए हरिद्रा गणपति (रात्रि गणपति) की आराधना पहले की जाती है। भारत में मां बगलामुखी के तीन प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर हैं। दतिया (मध्य प्रदेश), नलखेड़ा-आगर मालवा जिला (मध्य प्रदेश) तथा कांगड़ा (हिमाचल) में हैं।

अरुण कुमार जैमिनि

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