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Adi Shankaracharya Jayanti: जब शंकराचार्य को ज्ञान देकर अंतर्धान हो गए भगवान शंकर

Adi Shankaracharya Jayanti: पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार आदि शंकराचार्य को भगवान शिव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भगवान शंकर के दर्शन से आचार्य शंकर को बहुत बल मिला। पढ़ें यह रोचक किस्सा-

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, डॉ. दशरथ ओझाTue, 29 April 2025 10:28 AM
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Adi Shankaracharya Jayanti: जब शंकराचार्य को ज्ञान देकर अंतर्धान हो गए भगवान शंकर

Adi Shankaracharya jayanti: आदि शंकराचार्य जयंती 2 मई 2025 को है। शंकराचार्य नित्य-प्रति गंगा में स्नान करके तर्पण किया करते थे। सूर्योदय से पूर्व उनकी पूजा पूर्ण हो जाती। एक दिन सूर्योदय होते-होते वे पूजा समाप्त करके विश्वनाथ मंदिर जा रहे थे। उन्होंने देखा कि गली में शमशान घाट में काम करने वाला एक व्यक्ति चार कुत्तों को चारों दिशाओं में बिठाए हुए रास्ता रोके खड़ा है। शंकराचार्य ने बहुत नम्र भाव से कहा, ‘आप एक ओर हट जाएं तो मैं विश्वनाथजी के दर्शन करने चला जाऊं।’ उस व्यक्ति ने शुद्ध संस्कृत में उनका प्रतिवाद करते हुए कहा, ‘ओ संन्यासी! मार्ग से किसे हटा रहे हो? मेरे इस शरीर को या इसकी आत्मा को? हमने तुम्हारा शास्त्रार्थ सुना है। तुम्हारा सिद्धांत है कि वह पूर्ण ब्रह्म सर्वत्र सब में, तुम में और मुझ में एक समान विद्यमान है। पर तुम मुझे इस तरह दूर भगा रहे हो मानो मैं तुमसे भिन्न कोई और हूं? यदि तुम इस शरीर को हटाना चाहते हो, जो अन्न से बना हुआ है तो जो मांस-मज्जा तुम्हारे शरीर में है, वही मेरे में है। यदि तुम शुद्ध चैतन्य को अलग करना चाहते हो तो वह तो यहां-वहां सर्वत्र है। फिर तुम किसे हटाना चाहते हो? क्या इस पवित्र गंगा में प्रतिबिंबित सूर्य की आभा उस बिंब से अलग है, जो मेरे निवास स्थान के समीप एक गंदे तालाब में पड़ती हुई दिखाई दे रही है?’

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उस व्यक्ति की अकाट्य युक्ति सुन कर और संस्कृत भाषा का शुद्ध व्यवहार देखकर शंकर स्तंभित रह गए। उनकी आंखें आश्चर्य से विस्फारित हो उठीं। उन्होंने उसे प्रणाम किया। उन्हें यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई कि इस नगरी के सबसे निम्न वर्ग में भी वेदांत की ध्वनि गूंज रही है। उन्होंने उसकी स्तुति में पांच श्लोकों अर्थात ‘मनीषा पंचक’ की रचना की। उस व्यक्ति को गुरु रूप में स्वीकार करते हुए कहा, ‘ब्रह्म सच्चिदानंद है, वह सर्वत्र विद्यमान है। अतः मुझ में और तुम में कोई भेद नहीं।’ ‘मनीषा पंचक’ नामक स्तोत्र में ब्रह्म की विलक्षण व्याख्या की गई है। ज्यों ही ‘मनीषा पंचक’ के पांचों श्लोक समाप्त हुए, वह व्यक्ति न जाने कहां अंतर्धान हो गया। उसके स्थान पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हो गए। उन्होंने आचार्य शंकर को आशीर्वाद देते हुए यह आज्ञा दी कि जनता में और विशेषकर पंडे-पुजारी समाज में, जो अंधविश्वास फैला है, शास्त्र का मर्म बिना समझे यज्ञ-हवन, कर्मकांड की जो प्रक्रिया जनता को भ्रम में डाल रही है, जिसके कारण देश अज्ञान के अंधकार में डूबता चला जा रहा है और उसकी सारी राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक शक्तियां धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। उनका संस्कार करने के लिए वेद-शास्त्र का बुद्धिसंगत अर्थ करना होगा। आध्यात्मिक दृष्टि का इतना लोप होता जा रहा है कि अंधविश्वास को ही जनता शास्त्र का प्राथमिक अर्थ मानने लगी है।

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भगवान शंकर के दर्शन से आचार्य शंकर को बहुत बल मिला। शंकराचार्य को आदेश देकर भगवान शंकर अंतर्धान हो गए। शंकराचार्य भगवान शंकर की उस दैवी मूर्ति का ध्यान करते हुए अपनी पर्णकुटी में लौट आए।