apara achala ekadashi vrat 2022 parana time shubh muhrat vrat katha upay totke remedies - Astrology in Hindi अपरा या अचला एकादशी व्रत पारण करने से पहले जरूर कर लें ये काम, मोक्ष प्राप्ति की है मान्यता, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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अपरा या अचला एकादशी व्रत पारण करने से पहले जरूर कर लें ये काम, मोक्ष प्राप्ति की है मान्यता

एकादशी व्रत के दिन व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्रत कथा का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत का पारण करने से पहले व्रत कथा का पाठ अवश्य करें।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीThu, 26 May 2022 09:46 PM
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अपरा या अचला एकादशी व्रत पारण करने से पहले जरूर कर लें ये काम, मोक्ष प्राप्ति की है मान्यता

हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अपरा या अचला एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है। आज 26 मई को अपरा या अचला एकादशी व्रत है और अगले दिन यानी कल 27 मई को व्रत का पारण किया जाएगा।  एकादशी व्रत के पारण से पहले व्रती को एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि व्रत कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। 

अपरा एकादशी व्रत पारण का समय- व्रत पारण का समय 27 मई को सुबह 05 बजकर 25 मिनट से सुबह 08 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। द्वादशी तिथि समाप्त होने का समय सुबह 11 बजकर 47 मिनट तक है।

  • अपरा एकादशी व्रत कथा-

भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाले व्रत की कथा इस प्रकार है। महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।

ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनि से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।