कैसे एक राक्षस के नाम पर बनी मोक्ष नगरी 'गयाजी', रोचक है पौराणिक कथा
Gaya ji ki kahani: तीर्थ नगरी 'गयाजी' का नाम किसी देवता के नाम नहीं बल्कि असुर के नाम पर पड़ा है। यहां पढ़ें तीर्थ नगरी 'गयाजी' से जुड़ी पौराणिक कहानी-

Gayasur ki kahani: तीर्थस्थल 'गयाजी' को मोक्ष स्थली कहा जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु यहां पितृ देव के रूप में वास करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गया जी का नाम किसी देवता नहीं बल्कि असुर गयासुर के नाम पर पड़ा है। वायु पुराण में असुर 'गया' के तीर्थ बनने की पौराणिक कथा वर्णित है। पढ़ें यहां 'गयाजी' से पौराणिक कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना करते समय असुर कुल में गयासुर को उत्पन्न किया। राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी गयासुर भगवान विष्णु का परम भक्त था। असुर कुल में जन्म लेने के कारण लोग उसे बहुत हेय दृष्टि से देखते थे, इसलिए उसने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा।
गयासुर ने भगवान विष्णु से कहा कि वे उसके शरीर को इतना पवित्र कर दें कि कोई भी उसे देखें, तो उसे मोक्ष मिल जाए। भगवान विष्णु ने वरदान दे दिया। भगवान विष्णु से वरदान मिलने के बाद गयासुर को देखने मात्र से ही लोगों को मोक्ष मिलने लगा। इतना ही नहीं पापी और अधर्मी भी गयासुर के पास पहुंचने लगे और दर्शन मात्र से ही उन्हें मोक्ष मिलने लगा। इससे स्वर्ग लोक की व्यवस्था अस्त-व्यस्त होने लगी। परेशान होकर सभी देवी-देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी गयासुर के पास पहुंचे और उससे कहा कि मैं समस्त देवी-देवताओं के साथ एक यज्ञ करना चाहता हूं। इसके लिए मुझे सबसे पवित्र स्थान की जरूरत है और तुम्हारे शरीर से अधिक पवित्र कोई स्थान इस संसार में नहीं है। यह यज्ञ तुम्हारी पीठ पर होगा।
ब्रह्मा जी की बात सुनकर गयासुर खुशी-खुशी अपना शरीर दान करने के लिए तैयार हो गया। ब्रह्मा जी भगवान विष्ण व भगवान शिव समेत सभी देवी-देवताओं के साथ गयासुर की पीठ पर विराजमान होकर यज्ञ करने लगे। धर्मशिला होने के बावजूद गयासुर का शरीर हिलता डुलता रहा। उसके शरीर को हिलने डुलने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपना दाहिना पैर गयासुर के शरीर पर रखा। भगवान विष्णु का दाहिने पैर के रखते ही गयासुर का शरीर हिलना बंद हो गया। इसलिए उनका एक नाम 'गदाधर' हो गयजूनजज
ऐसे पड़ा गयासुर के नाम पर तीर्थस्थल 'गयाजी': गयासुर के प्राण त्यागने से प्रसन्न होकर देवताओं ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा। गयासुर ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। गयासुर ने कहा,'हे परमेश्वर! आप त्रिदेव सभी देवताओं के साथ अनंतकाल तक इस स्थान पर वास करें और यहां जो भी भक्त श्रद्धा भाव से पूजा करेगा, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो। साथ ही यह स्थान मेरे नाम से जाना जाए।' तब देवताओं ने उसे वरदान देते हुए कहा कि आज से यह स्थान 'गया तीर्थ' के नाम से जाना जाएगा। कहा जाता है कि जिस स्थान पर भगवान विष्णु ने गयासुर की पीठ पर अपना पैर रखा था, वहां पर उनके पांव के निशान बन गए थे जिसे आज विष्णु पद मंदिर के नाम से जाना जाता है।